कम उम्र में कामरान के काम फरिश्ते जैसे

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 15-07-2021
कामरान के काम
कामरान के काम

 

कानपुर / सन्देश तिवारी

जिस उम्र में लोग अपने भविष्य का सपना संजोते हैं, उस महज 17 साल की कम उम्र में कामरान ने गरीब, मजबूरों और बंदों की सेवा का ख्वाब देखा. यह ख्वाब इतना मजबूत है कि उन्होंने आजीवन अपने को इनकी सेवा में समर्पित कर दिया. स्कूल में पढ़ने के दौरान उसने अपने पिता से समाजसेवा की जिद की. पिता को लगा कि बड़ा होकर तो उसकी इच्छा बदल जाएगी और अभी पढ़ने की उम्र हैं. फिर भी कामरान की जिद पर उन्होंने अपने बेटे को आश्वस्त किया कि वह उसके सेवा के क्षेत्र में जाने कोई विरोध नहीं करेंगे और इजाजत दे दी. कोरोना काल में तो कामरान ने किसी फरिश्ते के किरदार को निभाया. जब लोग ऑक्सीजन कमी से मर रहे थे. उसी दौरान, कामरान ने घर-घर, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी को पूरा किया और लोगों की जान बचाकर उनकी दुआएं ली. आज कामरान ने करीब 20 लोगों की एक संस्था ‘जुल्म के खिलाफ’ का आगाज किया है. इसी के जरिये वे मुसलमानों की बेहतरी के काम कर रहे हैं.

समाज के लोगों के लिए कुछ करने के जज्बे में कामरान की मंशा उसके पिता की इजाजत के बाद और अधिक बलवती हो गई. अब कामरान के लिए समाज सेवा जिद हो गई है.

कानपूर के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में शुमार बेकानगंज, चमनगंज, बाबू पुरवा आदि सभी कामरान को अपने घरों जैसे लगने लगे. यहां कोई भी समस्या कामरान को अपनी समस्या लगती हैं. यहां पर गलियों, नालियों की सफाई करने में कामरान को अपने समाज की सेवा का मजा आता है.

साल 2020 से समाजिक कार्यकर्ता बनकर इन मोहल्लों को लेकर वे आगे बढ़ रहा हैं. वे इन मोहल्लों में अपनी टीम भी बना रहे हैं. जहां पर लोगों में जरूरतमंदों के लिए रोटी और हरसंभव मदद की जागरूकता बढ़ाई है.

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कामरान को है सामाजिक कार्यों का जुनून


कामरान ने बताया कि यह उनके लिए आसान नहीं था. अपमान सहने के बाद भी वे अपने इरादे पर अटल रहे और आगे भी रहेंगे. कामरान के मुताबिक गन्दी नालियों की सफाई मुसलमानी इलाके में एक बड़ी चुनौती है. यहां काम करने से कई बार उन्हें घृणा की नजर से देखा गया, लेकिन उसका काम नहीं रुका और आज उसके पास 20 लड़कों की टीम है.

परिवेश को भी बदलना होगा

कानपुर के बाबू पुरवा निवासी कामरान कहते हैं कि शिक्षा में बदलाव से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि परिवेश को भी बदलना होगा. सेल्फ केन्द्रित शिक्षा प्रणाली की बजाय मनुष्य का आन्तरिक विकास करने वाली शिक्षा होनी चाहिए, जिससे उनके जैसे बिना लालच के समाजसेवियों को प्रोत्साहन मिले. मुसलमानों का आंतरिक सुरक्षा का विकास ही राष्ट्र और समाज और इस्लाम के विकास की सीढ़ी है. इसे छोड़कर न घर चल सकता है और न देश.

उन्होंने कहा कि समाजसेवा भाव सिर्फ किसी परिवार व समाज की अंग नहीं, बल्कि राष्ट्र की भी अंग हैं.

मिला सम्मान

कामरान के कामों की असली कीमत उसे मिले सम्मान से पूरी होती है. कामरान के मुताबिक जब उसने ये समाजसेवा भाव का मन बनायातो उसे सिर्फ जूनून था. उसे कुछ नहीं पता था कि लोग क्या कहेंगे और उसे क्या सम्मान मिलेगा .लेकिन उसके कार्य खुशबु फैलते रहे और उसे गली मोहल्लों के बड़ों से सम्मान मिलता रहा. कई समाजसेवी संस्थाओं ने उसे रियल हीरो जैसे सम्म्मान दिए.