वॉशिंगटन डीसी
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए नए आयात शुल्कों (टैरिफ्स) को अदालत द्वारा रद्द किए जाने के बाद व्हाइट हाउस ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की घोषणा की है। ट्रंप प्रशासन इस फैसले को निलंबित करने की मांग कर रहा है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कराइन लेविट ने प्रेस ब्रीफिंग में स्पष्ट कहा, “हम यह कानूनी लड़ाई अदालत में जीतेंगे।” उन्होंने कहा कि प्रशासन "बागी जजों" से निपटने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
जब उनसे पूछा गया कि इस कानूनी अनिश्चितता के बीच अन्य देश अमेरिका से व्यापार वार्ता क्यों जारी रखेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया कि अमेरिका के व्यापार राजदूत को कई देशों से इस बारे में सकारात्मक संकेत मिले हैं और वे अमेरिका के साथ काम जारी रखने को तैयार हैं।
गुरुवार की ब्रीफिंग में लेविट ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु ईशिबा के बीच फोन पर बातचीत हुई, जिसमें टैरिफ से संबंधित विषयों पर चर्चा की गई।
उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रपति के कैबिनेट के सदस्य—सेक्रेटरी लटनिक, सेक्रेटरी बेसेंट और राजदूत जेमीसन ग्रीयर—दुनिया भर में अपने समकक्षों के संपर्क में हैं और उन्हें यह संदेश दे रहे हैं कि अमेरिका अब भी व्यापार वार्ता के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रेस सचिव लेविट ने कहा, "दुनियाभर के देशों को मुख्य वार्ताकार, राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप पर भरोसा है। वे इस फैसले की बेतुकी प्रकृति को भी समझते हैं और जानते हैं कि प्रशासन यह लड़ाई जीतने वाला है। हमने आपातकालीन अपील पहले ही दाखिल कर दी है और इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने का पूरा इरादा है।”
व्हाइट हाउस के वकीलों ने गुरुवार को फेडरल सर्किट की कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील दायर कर बुधवार को आए फैसले को लागू होने से रोकने की मांग की। यह कदम उस दूसरे अदालत के निर्णय के बाद उठाया गया है, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने अधिकारों की सीमा लांघते हुए टैरिफ लगाए।
इन अदालती फैसलों को छोटे व्यवसायों और राज्यों के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है, जिन्होंने इन टैरिफ नीतियों को अदालत में चुनौती दी थी। ये नीतियां ट्रंप के आर्थिक और विदेश नीति एजेंडे की मूल धारा रही हैं।
लेविट ने इस फैसले को “न्यायिक अतिक्रमण” बताते हुए उसकी आलोचना की। उन्होंने दावा किया कि ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ व्यापार घाटे को संतुलित करने के लिए थे और ये "कानूनी रूप से वैध और लंबे समय से अपेक्षित कदम" थे।
इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत का अगला दौर 5-6 जून को भारत में होने जा रहा है। यह संभावित समझौता दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है और आपसी व्यापार और निवेश के नए रास्ते खोल सकता है।
अमेरिका के पूर्व वाणिज्य विभाग अधिकारी रे विक्री ने चेतावनी दी कि यदि वाशिंगटन की “धमकाने वाली” नीति जारी रही तो भारत-अमेरिका व्यापार समझौता नहीं हो पाएगा।
विक्री ने ANI से कहा, “ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता लगभग तैयार हो गया था। उम्मीद है कि यह दोबारा संभव हो सके, लेकिन यह ‘बुली करने वाली नीति’ से नहीं होगा जो अब सामने आ रही है।”
ट्रंप ने यह भी दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में अमेरिका ने मध्यस्थता की थी और दोनों देशों को "काफी व्यापार" की पेशकश की थी।
हालांकि भारत ने इस दावे को खारिज किया है और साफ किया है कि दोनों देशों की सेनाओं ने सीधे बातचीत कर आपसी समझ के आधार पर संघर्ष विराम की स्थिति बनाई थी।
यह संघर्ष विराम उस समय हुआ जब पाकिस्तान के DGMO ने भारतीय DGMO, लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को कॉल कर बातचीत की थी। यह वार्ता भारतीय सेना द्वारा "ऑपरेशन सिंदूर" के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में स्थित 9 आतंकवादी ठिकानों को तबाह किए जाने के बाद हुई थी।
विक्री ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन व्यापार घाटों को लेकर “भ्रमित” है। उन्होंने बताया, “व्यापार घाटा केवल अन्य देशों की अनुचित नीतियों की वजह से नहीं होता, बल्कि यह अमेरिका की अपनी बचत और खर्च करने की आदतों से भी जुड़ा है।”