तालिबान का नया ‘‘संस्करण‘‘ क्या होगा ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-07-2021
 तालिबान का नया ‘‘संस्करण‘‘ क्या होगा?   अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से पाकिस्तान के हाथ, पैर फूले हुए हैं. जफर महमूद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनके इस लेख में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की अफगानिस्तान में  कारस्तानियों एवं आतंकवादी
तालिबान का नया ‘‘संस्करण‘‘ क्या होगा? अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से पाकिस्तान के हाथ, पैर फूले हुए हैं. जफर महमूद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनके इस लेख में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की अफगानिस्तान में कारस्तानियों एवं आतंकवादी

 

 
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से पाकिस्तान के हाथ, पैर फूलेहुए हैं. जफर महमूद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनके इस लेख में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की अफगानिस्तान में  कारस्तानियों एवं आतंकवादी संगठन तहरीके तालिबान पाकिस्तान के भविष्य को लेकर चिंता प्रकट की गई है.

 
हर पांच सितारा होटल में इनडोर मौसम समान होता है, लेकिन काबुल के इस होटल में तापमान नियंत्रण के बावजूद, इलेक्ट्रॉनिक वॉक-थ्रू गेट, नाखून काटने वाले सैनिक और हाथों में चमकती राइफलें थीं. यह 2010 का जिक्र है.
1965 के बाद अफगान-पाकिस्तान ट्रांजिट व्यापार समझौते का नवीनीकरण किया जा रहा था. पहले दौर की बातचीत खत्म हो गई है. लंच के कुछ घंटे बाद दूसरा दौर शुरू हुआ. मुझे अफगान वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी द्वारा कॉफी के लिए आमंत्रित किया गया था.
 
बातचीत के दौरान, मैंने युवा अधिकारी से पूछा, ‘‘आप कब तक सोचते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका काबुल सरकार को वित्तीय सहायता और सैन्य सुरक्षा प्रदान करना जारी रखेगा ? ‘‘ उसने बस सर हिलाया. लेकिन मेरे दूसरे प्रश्न के डंक ने उन्हें यह कहने पर मजबूर कर दिया, ‘‘एक बार ओसामा बिन लादेन को पकड़ लिया गया, तो अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो की उपस्थिति का क्या औचित्य होगा?‘‘
 
उनकी प्रतिक्रिया अफगान सरकार की इच्छा का प्रतिबिंब थी. ‘‘अमेरिकी जनमत अफगानिस्तान में लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहता है. यह आतंकवाद के जरिए थोपी गई तालिबान की शरिया व्यवस्था को स्वीकार नहीं करता है.
 
अमेरिकी लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और महिलाओं के अधिकार चाहते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका तालिबान को फिर से सत्ता में नहीं देखना चाहेगा. ‘‘मुझे याद है कि उन्होंने यह कहते हुए सुना था कि 9-11के तुरंत बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगान धरती से अल कायदा को खत्म करने और ओसामा बिन लादेन को संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रत्यर्पित करने की मांग की थी. जिसे तालिबान सरकार ने मान्यता नहीं दी थी.
 
बिखरी हुई अमेरिकी जनता के दिल में आग अफगानिस्तान की गोलाबारी से आग की लपटों से ही शांत हो सकती थी. इस गतिरोध से निकलने का रास्ता अमेरिकी सरकार के लिए सीमित था. यह विचार युवा अधिकारी को यह याद दिलाने के लिए भी आया कि ओसामा बिन लादेन की मौत में अमेरिकी हित खनिज संसाधनों को बनाए रख सकता है जो अफगानिस्तान के पास नहीं है.
 
एक साल बाद, 2011 में, जब अमेरिकी सरकार ने ओसामा बिन लादेन की मौत की घोषणा की, तो उम्मीद थी कि अफगानिस्तान पर अमेरिकी नीति एक या दो साल में बदल जाएगी. लेकिन यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि यह अवधि दस साल तक चली.मेरे छात्र दिनों के दौरान, वियतनाम युद्ध ने हमारी समझ को बढ़ाया था.
 
यह अनुभव किया गया है कि जब संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बड़े देश का सैन्य प्रतिष्ठान युद्ध में शामिल हो जाता है, तो समूह हित जंजीर बन जाते हैं. कंपनियां लगातार सेना को नए हथियार बेचने की कोशिश कर रही हैं. यदि वियतनाम युद्ध के दौरान नेप्च्यून बम का घातक रूप से अनावरण किया गया था, तो डेजी कटर के विनाश को देखने के लिए अफगानिस्तान की सैन्य कार्रवाई में यह पहली बार होगा.
 
जहां युद्ध की कीमत करदाताओं पर वित्तीय बोझ है, वहीं औद्योगिक-सैन्य परिसर से जुड़े भ्रष्ट तत्वों की जेब भारी है. युद्ध में सैनिकों की मृत्यु एक अवांछनीय कृत्य है, लेकिन उनकी लाशों पर गिरने वाले कुछ फूल सरदारों के कंधों पर चमकते हैं.
 
हम नहीं जानते कि अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस लेने के फैसले को अमेरिकी प्रतिष्ठान ने समर्थन दिया था या नहीं, लेकिन राष्ट्रपति बिडेन की घोषणा से अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया में हलचल मच गई. आज, युद्ध शुरू होने के बीस साल बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति अपने राष्ट्र से वादा कर रहे हैं कि वह इस व्यर्थ युद्ध का एक और पीढ़ी का हिस्सा नहीं बनाएंगे.
 
निकासी इतनी तेज है कि अमेरिकी बलों ने रात के अंधेरे में बगराम एयर बेस को खाली करा लिया. अमेरिकियों का पक्ष लेने वाले अफगानों को तुरंत तीसरे देश में स्थानांतरित किया जा रहा है जहां संयुक्त राज्य में उनके शरण आवेदनों पर फैसला किया जाएगा.
 
भारत के हाथ-पैर भी सूज गए हैं. पाकिस्तान के साथ दुश्मनी की आड़ में अपनाई गई अफगान नीति पश्चिम द्वारा हमें घेरने का एक असफल प्रयास था. क्षेत्र के अन्य देश भी लगातार बदलती स्थिति से चिंतित हैं. चीन अमेरिका पर आरोप लगा रहा है.
 
अफगानिस्तान की सीमा से लगे मध्य एशियाई देश किसी भी संभावित खतरे से निपटने की तैयारी कर रहे हैं. अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय हाई अलर्ट पर हैं. दैनिक समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि अफगानिस्तान में अधिक जिले तालिबान के अधीन हैं.
 
पाकिस्तान अफगान गृहयुद्ध से भागने के लिए चिंतित है. प्राप्तकर्ता अफगान नागरिक पाकिस्तानी सीमा पार करेंगे. एक और सवाल यह उठता है कि स्थानीय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जिसे पाकिस्तानी सेना ने अपने खून से नियंत्रित किया था? क्या अफगानिस्तान की नई सरकार आईएसआईएस को पनपने देगी?
 
इस मुद्दे की अभी भी जांच की जा रही है कि कतर में वार्ता के दौरान अमेरिका और तालिबान नेतृत्व किन मुद्दों पर सहमत हुए हैं.
 
लेख पाकिस्तान के ‘जंग’ अखबार से साभार