जन्माष्टमी पर पाकिस्तान में मंदिर पर हमला, श्रीकृष्ण की प्रतिमा तोड़ डालीें

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 31-08-2021
जन्माष्टमी पर पाकिस्तान में मंदिर पर हमला
जन्माष्टमी पर पाकिस्तान में मंदिर पर हमला

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
 
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रहीम यार खान में गणेश मंदिर पर हमला और देवी-देवताओं की प्रतिमा को खंडित करने की घटना पर उठा बवाल अभी पूरी शांत भी नहीं हुआ कि पड़ोसी देश से एक और ऐसी घटना सामने आई है. जन्माष्टमी के दिन न केवल मंदिर पर हमला किया गया भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा खंडित कर दी गई.
 
इस घटना पर पाकिस्तान के नेशनल असेंबली के सदस्य लाल महली ने चिंता प्रकट की है. इमरान खान सरकार से पूछा है कि ऐसी वारदात कब रुकेंगी ?मंदिर में तोड़-फोड़ और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति खंडित करने की वारदात पाकिस्तान के सिंध प्रांत के खिपरो कस्बे की है.
 
सोशल मीडिया पर श्रीकृष्ण की खंडित प्रतिमा को कई लोगांें ने साझा किया है, जिस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया आ रही है. ऐसे ही लोगों में पाकिस्तान की लेखिका सुरक्षा देदाई भी हैं. उन्होंने ट्विट किया-‘‘यह शर्मनाक है.’’
 
घटना को लेकर पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील राहत आस्टीन का कहना है कि कुछ लोग मंदिर को अस्थायी बताकर मामल को रफा-दफा की फिराक में हैं. राहत ने घटना पर एक के बाद एक दो ट्वीट किए हैं. साथ ही एक वीडियो भी साझा किया है.
 
राहत आस्टीन का कहना है,‘‘इस वीडियो में रिपोर्टर कहता है भगवान कृष्ण की मूर्ति को मंदिर में तोड़ा गया है. अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कुछ लोग क्या कहना चाहते हैं. 
 
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि कुछ दोस्त मुझसे कह रहे हैं कि हमला करना ‘‘ठीक‘‘ था, क्योंकि यह सिर्फ एक अस्थायी पूजा स्थल था, जबकि इस वीडियो की पहली पंक्ति में, घटनास्थल पर मौजूद रिपोर्ट स्पष्ट रूप से एक ‘‘मंदिर‘‘ के बारे में बात करता है जिसका अर्थ है ‘‘हिंदू मंदिर‘‘. वह स्थायी या अस्थायी के बारे में उल्लेख नहीं करता है.‘‘ इसके साथ सवाल यह भी है कि क्या धार्मिक स्थल अस्थायी होगा तब भी कोई इस तरह हमला कर वहां तोड़-फोड़ मचा सकता है ?
 
दरअसाल, यह पाकिस्तान के मानसिक दिवालियापन और वहां की हवा में घुला मजहबी कट्टरपंथ का नतीजा है कि अल्पसंख्यकों और उनके धर्मस्थालों पर हमले लगातार बढ़ रहे है. लोगों को प्रताड़ित किया जाता है. तकरीबन ढाई वर्ष पहले इमरान खान सरकार पाकिस्तान में इस वादे के साथ सत्ता में आई थी कि वह देश के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और आगे बढ़ने का अवसर पर प्रदान करेंगी.
 
मगर अब तक हो इसके उलट रहा है. नौकरियों में अल्पसंख्यकों के लिए निम्न दर्जों के ओहदे के अलावा और कोई जगह नहीं. यहां तक कि पिछले ढाई वर्षों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं. कमसिन हिंदू लड़कियों के अपहरण, कन्वर्जन और बलात्कार की घटनाओं में बढ़ौतरी हुई है.
 
पिछले साल मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाओं में इमरान सरकार में इजाफा हुआ है. हर साल एक हजार से अधिक अल्पसंख्यक लड़कियों के अपहरण, कन्वर्जन और बलात्कार की घटनाएं दर्ज की जा रही हैं.
 
हद तो यह कि पाकिस्तान में जब कोरोना और लॉकडाउन के चलते अल्पसंख्यकों के सामने रोजी-रोटी का भारी संकट पैदा था तो कुछ लोगों ने रोटी के बदले इस्लाम कबूलने का अभियान शुरू कर दिया था. चिंताजनक पहलू यह है कि ऐसे मामले को पाकिस्तान में न कोई नेता उठा रहा है और न ही मेन स्ट्रीम मीडिया.
 
मानवाधिकार कार्यकर्ता आस्मा जहांगीर की मृत्यु के बाद तो लगता है कि अब ऐसे सवाल उठाने वाला पाकिस्तान में कोई बचा ही नहीं. ताजे मामले में सरकार खामोश है.