पाकिस्तानः ‘गुड फील‘ या राजनीतिक अर्थव्यवस्था का दिवालियापन

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 13-06-2021
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मेहमान का पन्ना

 
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इम्तियाज आलम
 
कुछ ही हफ्तों में, वित्त मंत्री शौकत फयाज तरीन इतने उदार हो गए कि आर्थिक गिरावट में भी, उन्होंने एक ‘अच्छे एहसास‘‘ की आशा की किरण दिखा दी है. भले ही अगले चुनाव में प्रधानमंत्री इमरान की तरह हाथ क्यों न मलना पड़े. इमरान खान को करीब तीन साल तक हाथ मलना पड़ा है.
 
बेचारा विपक्ष  भी दांत पीसकर रह गया कि कहें तो क्या कहें. उनकी आर्थिक विचारधारा भी वैसी ही है. नव-उदार अर्थव्यवस्था के समान. ऐसे में सामाजिक मरुस्थलीकरण के दशक में बिलावल भुट्टो के सरकारी कर्मचारियों के वेतन में केवल 10 प्रतिशत की वृद्धि और न्यूनतम वेतन 20,000 रुपये निर्धारित करने के खिलाफ चिल्लाने के अलावा कुछ नहीं रह जाता है.
 
अब दस्त नगर अर्थव्यवस्था के संकट में ऐसा बजट कैसे बना सकता है जिसमें बजट घाटा 8.5 लाख करोड़ रुपये के बजट में करीब आधा यानी 4 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 7.4 फीसदी) हो जाएगी, जिसकी पूर्ति रुपये के नए कर्ज 4 ट्रिलियन से की जाएगी. 
 
सरकार ने दावा किया है कि आईएमएफ की शर्तों का पालन नहीं किया गया है.बावजूद इसके उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 3. 3.1 अरब या 496 अरब रुपये मिलने की उम्मीद है. वेतनभोगी वर्ग के लिए आईएमएफ की 150 अरब रुपये की मांग टेलीफोन, इंटरनेट और पेट्रोलियम लेवी के माध्यम से पूरी की गई है.
 
383 अरब रुपये के नए अप्रत्यक्ष कर लगाए गए हैं. वित्त मंत्री ने भले ही कोई आर्थिक तंगी काटी हो, लेकिन 2023 के चुनावों के लिए सत्ताधारी दल की राजनीतिक जरूरतों को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के विकास कार्यक्रम को 40 प्रतिशत बढ़ाकर 900 अरब रुपये और 64 अरब रुपये अलग-अलग कर दिया गया है ताकि एसेंबली के सदस्यों के लिए विकास परियोजनाओं को शुरू करने और बजट पारित करने के लिए तरिन समूह सहित नाराज सदस्यों के वोट प्राप्त करने के लिए कहा गया है.
 
मदद और रियायत दी जाती हैं तो पूंजीपति वर्ग को ही. नौकरीपेशा, वेतनभोगी और गरीब मजदूरों को लाचार सिसकने के लिए छोड़ दिया गया है. केवल एक सानिया निश्तार हैं जिन्होंने 260 अरब रुपये के धर्मार्थ कार्यक्रमों के माध्यम से बेहतर काम किए हैं. 
 
केंद्र की वित्तीय स्थिति पर जरा गौर करेंः 4.4 लाख करोड़ रुपये नकद में से 3.1 लाख करोड़ रुपये कर्ज और ब्याज चुकाने के बाद केंद्र के पास 1.4 लाख करोड़ रुपये बचते हैं, जबकि रक्षा पर 1.370 लाख करोड़ रुपये खर्च करने के बाद उसके पास 1.4 लाख करोड़ रुपये की कमी होती है.
 
100 अरब रुपये. अब नागरिक प्रशासन (479 बिलियन) और पेंशनभोगियों (480 बिलियन) (सशस्त्र बलों के पेंशन के लिए 360 बिलियन सहित) और वार्षिक विकास कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक खजाने में एक पैसा भी नहीं बचेगा.
 
अगर कोई वित्त मंत्री इन संकटग्रस्त वित्तीय स्थितियों में एक चाल दिखाता है, तो आंकड़ों में हाथ धोने के कौशल को छोड़कर क्या कहा जाए. 7.4 प्रतिशत का बजट घाटा भी पूरा कर लिया जाए, तो 5.892 के संघीय राजस्व लक्ष्य की पूर्ति  हो जाएगी, संभव नहीं है. बशर्ते कि प्रांत 570 अरब रुपये बचाएं और संघीय घाटे को पूरा करें. 506 अरब रुपये के अतिरिक्त कर का दावा किया गया है जो पूरा होता नहीं दिख रहा है.
 
पाकिस्तान में लगभग हर सरकार में, पहले मांग पर नियंत्रण करें और फिर आपूर्ति में वृद्धि करें, के मंत्र में अमल होता रहा है. इसी मंत्र पर राजकोषीय चक्र चलता रहा है. हर सरकार पिछली सरकार के घाटे को पूरा करने की मांग का समर्थन करती रही है और अगले चुनाव में ‘गुड फील‘ का माहौल बनाने के लिए आपूर्ति श्रृंखला खोल देती है.
 
इमरान सरकार वही कर रही है जो पिछली सरकारें करती रही हैं. अगली सरकार भी यही चक्र दोहराएगी. इस दुष्चक्र में कोई भी वास्तव में उत्पादक अर्थव्यवस्था, गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए गंभीर प्रयास नहीं कर रहा है और न ही सत्ता विकास की दिशा में प्रगति के बारे में सोचता है.
 
बस यही हो रहा है. समय बिताएं और अपना किराया खुद कमाए और घर जाएं. गैर-उत्पादक राज्य व्यय बढ़ रहे हैं और मुक्त-खाने वाले शोषक वर्ग श्रमिकों द्वारा बनाए गए अधिशेष मूल्य को अधिकतम करने और सार्वजनिक खजाने में अपना बकाया जमा करने के इच्छुक नहीं हैं.
 
देश की आय और व्यय के बीच बढ़ते अंतर को आंतरिक और बाह्य ऋण द्वारा कवर किया गया है, जो पिछले तीन वर्षों में 3 ट्रिलियन रुपये बढ़कर 3.8 ट्रिलियन रुपये हो गया है, जो कि 2018 की तुलना में अगले दो वर्षों में दोगुना हो जाएगा. चिंता की बात यह है कि मुस्लिम दुनिया में एकमात्र परमाणु शक्ति की कुल राष्ट्रीय आय मुश्किल से 300,300 अरब है.
 
हमारी कृषि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी हुई है या जमींदारों द्वारा अतिरिक्त आर्थिक उत्पीड़न के अधीन है. अब इमरान सरकार में हम खाने-पीने का देश बन गए हैं. उद्योग दैनिक आवश्यकताओं के उत्पादन तक सीमित है और औद्योगिक उत्पादन के लिए सभी प्रकार के कच्चे माल के साथ-साथ मध्यवर्ती वस्तुओं के आयात की आवश्यकता होती है.
 
निर्यात उद्योग वस्त्र और चमड़ा या चावल और फलों के निर्यात तक सीमित हैं. अयूब खान के आयात का वैकल्पिक औद्योगीकरण काम नहीं आया, और न ही निर्यात क्षेत्र को प्रोत्साहन देने से कोई बड़ा फर्क पड़ा. एक छोटा सा विकास भी केवल व्यापार और सेवाओं के क्षेत्रों में हुआ है, जिसमें सामाजिक सेवाओं का प्रावधान शामिल नहीं है, अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार के क्षेत्र में कुछ नहीं हो पाया.
 
चौथी औद्योगिक क्रांति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिक और सूचना क्रांति दुनिया में हो चुकी है और संसद के बजट सत्र में ‘मोदी का दोस्त देशद्रोही है‘ जैसे नारे लगाए जा रहे हैं या इस्लामोफोबिया के खिलाफ नारे लग रहे हैं. हालांकि, पीड़ित पश्चिमी भय से, वे सदियों पुराने आदिम विनिमय की प्राकृतिक अर्थव्यवस्था में लौटने के आध्यात्मिक सपनों के शिकार हो जाते हैं.
 
दस्त नगर अर्थव्यवस्था की परजीवी सुरक्षा राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का असली सवाल मुफ्तखोर शोषक वर्गों और उत्तर-औपनिवेशिक सत्ता का उदय है.
 
पाकिस्तान के अखबार ‘जंग’ से साभार. संपादित अंश दिए गए हैं.