ईरान आज भी नहीं भूला वह पाकिस्तानी करतूत, जब 11 ईरानियों की हत्या हुई थी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 09-08-2021
23 साल पहले 11 ईरानियों की निर्मम हत्या
23 साल पहले 11 ईरानियों की निर्मम हत्या

 

नई दिल्ली. ठीक 23 साल पहले आठ अगस्त को उत्तरी अफगान शहर मजार-ए-शरीफ में आठ राजनयिकों और एक पत्रकार सहित 11 ईरानियों की निर्मम हत्या कर दी गई थी.

यह हत्याएं 1998 में तब की गई थी, जब तालिबान ने शहर पर कब्जा कर लिया था, जिसे व्यापारिक केंद्र के रूप में जाना जाता था और तब सिल्क रोड के साथ वाणिज्य फलता-फूलता था. यह घटना ईरान और पाकिस्तान के बीच संबंधों को खराब करने में अहम रही है. दुखद घटना के अंगारे अभी भी सुलग रहे हैं.

अपनी लंबी यादों के लिए जाने जाने वाले ईरानियों ने एक बार फिर कहा है कि उनकी तरफ से त्रासदी का कोई अंत नहीं है.

शनिवार को जारी ईरान के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया, आठ अगस्त इस्लामी गणतंत्र ईरान की राजनयिक शाखा के लिए सबसे कड़वे दिनों में से एक है.

बयान में कहा गया है, 23 साल पहले, इसी दिन ईरानी राजनयिक और एक ईरानी रिपोर्टर अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में देश के वाणिज्य दूतावास में कायरता के एक कृत्य में और तेहरान के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय नियमों, संधियों और मानव एवं इस्लामी कॉमन सेंस के प्रति प्रतिबद्धताओं के उल्लंघन में शहीद हो गए थे.

अप्रत्याशित रूप से, विदेश मंत्रालय ने कसम खाई है कि वह तब तक आराम से नहीं बैठेंगे, जब तक कि घटना के सभी आयामों का खुलासा नहीं हो जाता. बयान में कहा गया है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान इस मुद्दे को ईरानी सरकार और राष्ट्र की एक स्पष्ट मांग के रूप में आगे बढ़ाने का वचन देता है, जब तक कि घटना के छिपे हुए पहलू सामने नहीं आते.

इसने जोर देकर कहा कि तेहरान इस घटना के शहीदों की स्मृति का सम्मान करता है और एक बार फिर, आतंकवाद के निष्पादित कृत्य की कड़ी निंदा करता है.

विश्लेषकों का कहना है कि ईरान का रोष पाकिस्तान पर केंद्रित है, क्योंकि हत्याओं को अंजाम देने में पाक स्थित कट्टर सुन्नी संगठन सिपाह-ए-शहाबा पाकिस्तान (एसएसपी) का हाथ होने का संदेह है.

यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि एसएसपी, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के लिंक के साथ, अति-कट्टरपंथी लश्कर-ए-जहांगवी (एलईजे) सहित कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों की मदरशिप है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एलईजे का गठन रियाज बसरा के नेतृत्व में एसएसपी से अलग होने के बाद हुआ था.

इस्लाम की देवबंदी परंपरा की विचारधारा को साझा करते हुए तालिबान के साथ गठबंधन करने के बाद यह अफगानिस्तान में समृद्ध हुआ. कई प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए गए, जहां शिया विरोधी आतंकवादियों को पाकिस्तानी अपराधियों और आतंकवादियों के साथ प्रशिक्षित किया गया, जिन्होंने डूरंड रेखा के पार शरण ली थी. 2002 में बसरा मारा गया था, लेकिन समूह का अल-कायदा के साथ जुड़ाव रहा.

एसएसपी को जैश-ए-मोहम्मद का जनक भी माना जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने प्रतिबंधित किया हुआ है. एक लीक अमेरिकी केबल के अनुसार, तथाकथित कश्मीर जिहाद का हिस्सा माने जाने वाले समूह की जड़ें एसएसपी से जुड़ी हैं और आईएसआई द्वारा संरक्षित है. केबल ने खुलासा किया, जेईएम का खुफिया एजेंसियों के साथ लंबे समय से संबंध रहा है और यह एकमात्र आतंकवादी संगठन है जिसे अभी भी इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) की सुरक्षात्मक छत्रछाया प्राप्त है.

ईरानियों ने यह सुनिश्चित किया है कि 8 अगस्त की कुख्यात घटना की स्मृति समय के साथ फीकी नहीं पड़ेगी.

8 अगस्त को ईरान में राष्ट्रीय पत्रकार दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो आईआरएनए संवाददाता महमूद सारेमी की याद में मनाया जाता है, जो वाणिज्य दूतावास के हमले में मारे गए थे. इस घटना पर आधारित फिल्म मजार शरीफ का निर्देशन जाने-माने ईरानी फिल्म प्रोड्यूसर अब्दुलहसन बरजीदेह ने किया था.