पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर घेरने तक जारी रहेगा भारत के हुसैनी फंड का अभियान, कैसे यहां पढ़ें

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 02-02-2021
पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों की हत्याओं के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान में शामिल युवा.
पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों की हत्याओं के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान में शामिल युवा.

 

 

 

- बढ़ रहा शिया के खिलाफ अत्याचार

- तीन दशक में 30हजार शिया बने निशाना

- दो किताबों में है हत्या की दास्तां

लखनउ के आल इंडिया शिया हुसैनी फंड का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मिलेगा. ताकि राजनायिक स्तर पर हस्ताक्षेप करके शिया कौम के साथ होने वाले अत्याचार को रोका जा सके.

मलिक अगसर हाशमी / नई दिल्ली

पाकिस्तान के बलूचिस्तान के क्वेटा में हजारा शिया समुदाय के 11लोगों की आतंकवादियों के हाथों हत्या का मामला पुराना पड़ चुका है. शवों को कई दिनों तक सड़कों पर रखकर प्रदर्शन करने के कारण प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात बाद ऊपरी तौर पर पाकिस्तान में सब कुछ सामान्य सा लगता है.

मगर भारत का ‘आल इंडिया शिया हुसैनी फंड’ इससे इत्तेफाक नहीं रखता. संगठन के महासचिव सैयद हसन मेहंदी का कहना है कि शिया और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लिए ‘कब्रगाह’ बने चुके पाकिस्तान में कभी भी, कुछ भी हो सकता है. इस लिए इसके खिलाफ उनके संगठन का अभियान बदस्तूर जारी रहेगा. वह चाहते हैं कि आतंकवाद की तरह अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर भी पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंच पर घेराबंदी हो.

सैयद मेहंदी हसन इसे सिरे चढ़ाने के लिए पिछले तीन दशकों से देश-विदेश में अभियान छेड़े हुए हैं. इसमें सक्रिय रूप् से भाग लेने वालेे 11 पाकिस्तानी शिया को देश छोड़ना पड़ गया. उनके पाकिस्तानी साथी फिलहाल दुबई में रहकर अभियान को आगे बढ़ाने में लगे हैं.

मस्जिद में नरसंहार के बाद आंदोलन का उठाया बीड़ा

बहरहाल, ‘आवाज द वाइस’ से विशेष बातचीत में आल इंडिया शिया हुसैनी फंड के महासचिव सैयद हसन मेहंदी ने बताया कि वह और कौम के कुछ मुअज्जिज लोगों ने 1974 में भारत की शिया कौम की विधवाओं एवं गरीब बच्चों के आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए संस्था का गठन किया था. सब कुछ सामान्य चल रहा था.

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पाकिस्तान के खिलाफ शिया समर्थक हस्ताक्षर करते हुए. 


यह काम आज भी चल रहा है, पर 29 वर्ष पहले पाकिस्तान की एक शिया मस्जिद में उनके समुदाय के लोगों के नरसंहार के बाद संस्था की प्राथमिकताएं बदल गईं. अब हर समय यह प्रयास होता है कि कैसे शिया समेत दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों पर होने वाले अत्याचार के मुद्दे पर पाकिस्तान पर नकेल डाली जाए.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के खिलाफ अभियान

वह बताते हैं कि ईरान को नई उंचाईयों देने वाले आयतुल्लाह खुमैनी से चर्चित सैयद रूहोल्लाह मुसावी खुमैनी जब जीवित थे, तो उन्होंने इस मामले को लेकर उनसे मुलाकात की थी. इसके अलावा पाकिस्तान में शिया समुदाय पर होने वाले अत्याचार के मुद्दे पर वह लंदन, काठमांडू सहित कई देशों में होने वाले सम्मेलनों में भी भाग लेते रहे हैं. इसके अलावा समर्थन जुटाने को भारत में सात बार इस मसले पर कान्फ्रेंस भी आयोजित कराई है.

आल इंडिया शिया हुसैनी फंड यहीं नहीं रुका. पाकिस्तान में कौम के लोगों को प्रताड़ित एवं हत्या करने के विरोध में 27 बार लखनऊ में और दो बार दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास पर प्रदर्शन भी कर चुका है. संगठन की ओर से दो बार संयुक्त राष्ट्र संघ को चिट्ठी लिखी गई. क्वेटा की घटना पर 10 हजार लोगों के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन संरासं को सौंपा गया था.

तीन दशक में तीस हजार मारे गए

सैयद हसन मेहंदी का दावा है कि पिछले तीन दशकों में पाकिस्तान में 30 हजार से अधिक शिया मारे गए. उनका कहना है कि भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद  उनकी कौम को कभी इस तरह की परेशानी नहीं झेलनी पड़ी. यहां तक कि पाकिस्तान के खिलाफ आंदोलनों में देश के सुन्नी मुसलमानों का बड़ा तबका भी उनके साथ खड़ा है. मगर पाकिस्तान में इसके उलट माहौल है. वहां कट्टरवादियों के साथ आतंकवादी संगठन शिया समुदाय के पीछे पड़े हैं.

क्वेटा में 11 हजारा शियाओं की हत्या में इस्लामिक स्टेट के कारिंदों ने हाथ होना स्वीकार किया था. आईएसआईएस के अलावा जैश-ए-मुहम्मद भी उनके पीछे पड़ा है.

जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो 

मेहंदी कहते हैं कि पाकिस्तान के अलावा सीरिया, इराक, सीरिया, तुर्की, मलेशिया में भी शिया कम्युनिटी को निशाना बनाया जा रहा है. इसके विरूद्ध आवाज बुलंद करने को तीन दशक पहले आल इंडिया हुसैनी फंड की ओर से ‘नवरोज’ नामक तीन भाषाओं हिंदू, उर्दू एवं अंग्रेजी में वीकली पेपर निकालने का निर्णय लिया गया था, जिसका प्रकाशन आज भी जारी है. सैयद हसन मेहंदी बताते हैं कि पहले अंग्रेजी एवं उर्दू के अखबार पाकिस्तान भेजे जाते थे.

इसके अलावा पेपर का निगेटिव भी भेजा जाता था, ताकि जरूरत के हिसाब से अखबार की अधिक प्रतियां छपवाई जा सकें. वह बताते हैं कि इस बारे में जब तत्कालीन पाकिस्तान सरकार को पता चला, तो तत्काल इस पर  रोक लगा दी गई. 1992 में अखबार का वितरण करने और वहां से शियाओं पर होने वाले जुल्म के मुतल्लिक खबरें भेजने के आरोप में 11 पाकिस्तानियों शियाओं को देश से निकाल दिया गया था.

मेहंदी बताते हैं कि पाकिस्तान की करतूत पर उन्होंने दो किताबें लिखीं हैं-‘जिहाद बनाम आतंकवाद’ एवं ‘पाकिस्तान की सरजमीं शियाओं के खून से लाल’. एक किताब में पाकिस्तान में शियाओं की हत्या से संबंधित घटनाएं सचित्र संकलित कर छापी गई हैं. मेहेंदी ने बताया कि पाकिस्तान में अखबार पर प्रतिबंध लगने के बाद ‘नवरोज डॉट इन’ नाम से न्यूज पोर्टल शुरू किया गया। ताकि इसके माध्यम से पाकिस्तान के शिया समुदाय को अखबार पढ़ाया जा सके .

उनके मुताबिक, पाकिस्तान में शिया सहित तमाम अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अत्याचार को लेकर जल्द ही आल इंडिया शिया हुसैनी फंड का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मिलेगा. ताकि राजनायिक स्तर पर हस्ताक्षेप कर उनकी कौम के साथ होने वाले अत्याचार को रोका जा सके.