पहले अपना ऊंट बांधो, फिर अल्लाह पर भरोसा रखो: अलीना

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 30-01-2021
‘मिट्टी कैफे’ दिव्यांगों को रोजगार का अभिनव एवं सफल प्रयोग है. यह है ‘मिट्टी कैफे’ और उसकी टीम.
‘मिट्टी कैफे’ दिव्यांगों को रोजगार का अभिनव एवं सफल प्रयोग है. यह है ‘मिट्टी कैफे’ और उसकी टीम.

 

 

नई दिल्ली. 28 वर्षीय अलीना की सफलता इस विभाजनकारी दुनिया में आशा की एक किरण है, जो हमें जगाती है. उनकी कहानी हमें यह बताती है कि हम इस विभाजनकारी और सांप्रदायिक सोशल मीडिया में जो मैसेज सुबह-सबेरे पढ़ते हैं, वे अर्द्धसत्य हैं. सच्चाई यह है कि हम जिस समाज में रहते हैं, उसमें पर्याप्त दया-भावना है.

अलीना आलम अपने जीवन में हजरत मोहम्मद साहब के इस कथन पर दृढ़ता से यकीन करती हैं कि “पहले अपने ऊंट को बांधो, और फिर अल्लाह पर अपना भरोसा रखो.” इसका अर्थ है कि पहले अपना कर्तव्य निभाएं और बाकी अल्लाह पर छोड़ दें.

वह मानती हैं कि अल्लाह में उनके यकीन ने ही उन्हें आज एक कामयाब महिला बनाया है.

वे टीईडी स्पीकर हैं

वे मानती हैं कि अल्लाह में उनके विश्वास ने ही आज उन्हें एक सफल महिला बनाया है. वे लाखों लोगों को प्रेरित करने वाली एक मशहूर टीईडी (आजकल 5 से 20 मिनट में अपनी बात रखने का चलन है) स्पीकर हैं.

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‘मिट्टी कैफे’ में शत प्रतिशत दृष्टि बाधित गौरी परोसती हैं व्यंजन. 


वे कहती हैं, "मुझे वास्तव में अपने देश के विकास की परवाह है. अगर किसी एक समुदाय का नुकसान होता है, तो दूसरे समुदाय का भी नुकसान होगा. हमारी खुशी अन्योन्याश्रित (एक-दूसरे पर आश्रित) है. मेरा सपना लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है और हर उस व्यक्ति को जागरूक करना, जिसे इसकी जरूरत है."

कॉमनवेल्थ यूथ अवार्ड्स के लिए नामित

अलीना हाल ही में तब मशहूर हुईं, जब इस साल के कॉमनवेल्थ यूथ अवार्ड्स के लिए 18 देशों के 20 असाधारण युवाओं में उनका नाम भी शामिल किया गया.

यह अवार्ड उन कॉमन वेल्थ देशों के उत्कृष्ट युवा पुरुषों और महिलाओं को चिन्हित करता है, जिनकी परियोजनाएं अपने समुदायों के जीवन में परिवर्तन ला रही हैं और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर रही हैं.

पिछले साल 43 राष्ट्र मंडल देशों से 1,000 से अधिक प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं. जजों के कठोर निर्णय से पुरस्कार की प्रत्येक क्षेत्रीय श्रेणियों में फाइनलिस्ट का चुनाव किया गया. इनमें अलीना भी शामिल हैं.

नीरो की क्रूरता से मिली दिशा

जिस दिन अलीना ने रोमन सम्राट नीरो की कहानी सुनी, उसी दिन उनकी जिंदगी बदल गई. नीरो ने अपने एक उत्सव में उजाला करने के लिए युद्ध बंदियों को जलाने का फैसला किया था.

इस कहानी ने उन्हें झटका दिया. उन्होंने महसूस किया कि वे जिंदा जलाए जा रहे लोगों के प्रति असंवेदनशील होकरए नीरो की तरह व्यवहार कर रही थीं. उसी पल उन्होंने फैसला किया कि वह निशक्तजनों के लिए काम करेंगी, जिनसे बदतमीजी की जाती है और जिन्हें ठुकराया जाता है.

फिर शुरू हुआ ‘मिट्टी कैफे’

इसलिए अलीना ने ‘मिट्टी कैफे’ नाम से एक फूड चेन शुरू की, जिसे निशक्तजनों द्वारा चलाया जा रहा है.

आज, वे ‘मिट्टी कैफे’ की सीईओ हैं, जिसकी अब 14 ब्रांचेज हो गईं हैं और इनफोसिस, एसेंचर, एएनजेड बैंक और कई अन्य कॉर्पोरेट कार्यालयों में इस कैफे की मौजूदगी है.

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‘मिट्टी कैफे’ का आंतरिक दृश्य.


अलीना का मंत्र लेकर हाल ही में ‘स्टारबक्स’ ने चीन में दिव्यांगों द्वारा चलाया जाने वाला रेस्तरां खोला है.

‘मिट्टी कैफे’ का कारोबार 2019-20 में 3 करोड़ रुपये था. अलीना के लिए यह आमदनी से ज्यादा समाज में परिवर्तन लाने की ‘तीन वर्षीय यात्रा’ है. 

समाज में दया भाव की कमी नहीं है

अलीना कहती हैं, "कुछ साल पहले, मैं बहुत यात्रा करती थी. जब भी मैं हिमाचल प्रदेश और पंजाब गई, मैं गुरुद्वारों में और रेलवे स्टेशनों पर रही. वहां मैंने पाया कि हमारे आस-पास कितनी दया-भावना है."

उनकी सहकर्मी स्वाति बताती हैं, “अलीना बेहद भावुक युवती हैं और वह हर इंसान की क्षमता पर विश्वास करती हैं.” अलीना के मॉडल की सादगी यह है कि वह भोजन के माध्यम से लोगों को जोड़ती हैं. 

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अलीना अपनी उत्साही टीम के साथ. 


दिव्यांगों को प्रशिक्षण एवं रोजगार

अब ‘मिट्टी कैफे’ शारीरिक और मानसिक दिव्यांगों को देश के विभिन्न कैफे और किचिन में काम करने के लिए प्रशिक्षित करता है और रोजगार देता है.

इस संगठन की आउटरीच पहल दिव्यांग अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करती है. ‘मिट्टी कैफे’ ने 700 से अधिक दिव्यांगों को प्रशिक्षित किया है और 10 लाख कमजोर समुदाय के लोगों और बेघरों भोजन परोसा है.

जीवन में हार नहीं मानी

जब अलीना के मन में दिव्यांगों की मदद करने का विचार आया, तो उन्होंने विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों और प्रबंधन संस्थानों को पत्र लिखना शुरू किया, तो उन्हें खेद व्यक्त करते हुए जवाब मिले, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी.

इसी दौरान देशपांडे फाउंडेशन ने हुबली के लिए एक प्रस्ताव दिया. फाउंडेशन ने उन्हें इस अभिनव धारणा वाला उद्यम शुरू करने के लिए मुफ्त स्थान उपलब्ध करवाने की पेशकश की, जो एक खुली जगह थी और उसमें मोटे-मोटे चूहे रहते थे.

लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी के लफ्जों में, ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.’ अलीना ने शुरुआत की, तो कई छात्र उनकी मदद को स्वेच्छा से आगे आए. किसी ने उन्हें एक पुराना रेफ्रिजरेटर उपहार में दे दिया, तो प्लंबर ने अपना पारिश्रमिक नहीं लिया. लोग ऐसी मदद तब तक देते रहे, जब तक ‘मिट्टी कैफे’ का पहला आउटलेट अस्तित्व में नहीं आ गया. ‘मिट्टी’ विविधता में एकता लाती है. तब से अलीना और उनके सहयोगियों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

ये हैं ‘मिट्टी कैफे’ के कर्मचारी

एक नजर ‘मिट्टी कैफे’ के कर्मचारियों पर डालते हैं. एक कर्मचारी कीर्ति हैं, जो व्हीलचेयर का खर्च नहीं उठा सकती थीं, लक्ष्मी सुन या बोल नहीं सकती हैं, भैरप्पा बौने हैं, सबीहा को मल्टीपल स्केलेरोसिस है, हेमंत को पाल्सी है और गौरी 100प्रतिशत दृष्टि बाधित हैं.

कभी ‘मिट्टी कैफे’ में साक्षात्कार के लिए कीर्ति रेंगते हुए पहुंची थीं. आज उनके मातहत 116 व्यक्ति काम कर रहे हैं. वे भी एक प्रेरक वक्ता बन गई हैं. अलीना और उनकी टीम ने कई नए बिजनेस लीडर दिए हैं.

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यही हैं वो कीर्ति, जिन्हें ‘मिट्टी कैफे’ ने नया बिजनेस लीडर बनाया है. 


रूपा का ‘कन्यादान’

अलीना ने अपनी स्कूली शिक्षा कोलकाता से पूरी की और मुंबई के सोफिया कॉलेज से मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन की है. अंत में उन्होंने अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय से डेवलपमेंट स्टडीज में स्नातकोत्तर किया.

अलीना को गायन का शौक है और अखबारों की उत्सुक पाठक हैं. उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने आस-पास होने वाली घटनाओं से खुद को जागरूक रखें.

अलीना के पिता कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करते थे और मां एक गृहिणी हैं। उनके भाई-बहन भी उपकी मदद करते हैं। उन्हें अपने परिवार से यह संस्कार मिला है कि अकेला पैसा खुशियां नहीं दे सकता है।

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रूपा का ‘कन्यादान’ करतीं अलीना.


दिलचस्प बात यह है कि युवा अलीना ने हाल ही में रूपा का ‘कन्यादान’ किया था, जब उसकी भैरप्पा से शादी हुई. दोनों ‘मिट्टी कैफे’ में ही काम करते हैं.