मिर्जा मरयम की ‘मोहल्ला लाईब्रेरी’ अब अभियान बन गई है

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 02-07-2021
औरंगाबाद की मोहल्ला लाईब्रेरी में किताबें लेने के लिए जुटी बच्चों की भीड़
औरंगाबाद की मोहल्ला लाईब्रेरी में किताबें लेने के लिए जुटी बच्चों की भीड़

 

शाहताज खान / पुणे-औरंगाबाद

मिर्जा मरयम अपनी बारहवीं लाइब्रेरी का उदघाटन कर रही हैं. डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से पहली मोहल्ला लाइब्रेरी 8 जनवरी 2021 को मरयम के घर की गैलरी में शुरू की गई थी. कुछ ही समय में एक छोटी सी अलमारी में 300 से ज्यादा किताबें पूरे मुहल्ले के आकर्षण का केंद्र बन गई थीं. बच्चे मुफ्त में कोई भी किताब अपने घर ले जा सकते थे. पांच से छह बजे के बीच इस लाइब्रेरी के दरवाजे खुलते हैं.

तुम मुझे 5000 दो, मैं तुम्हें लाइब्रेरी दूंगी

मिर्जा मरयम और उनके पिता मिर्जा अब्दुल कय्यूम ने देखा कि बच्चे किताबों में काफी रुचि ले रहे हैं. बस यहीं से मोहल्ला-मोहल्ला लाइब्रेरी को औरंगाबाद की गरीब बस्तियों तक पहुंचाने के मिशन की शुरुआत हुई. ‘तुम मुझे 5000 रुपए दो, मैं तुम्हें एक लाइब्रेरी दूंगी’ यह नारा अब एक तहरीक बन चुका है.

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मिर्जा मरयम

कुछ ही महीनों में बच्चों के लिए 12 मोहल्ला लाइब्रेरियां खोली जा चुकी हैं.

मरयम बताती हैं कि 5000 रुपए में से 2000 रुपए की अलमारी और 3000 रुपए की किताबों का प्रबंध किया जाता है. बच्चों की इन लाइब्रेरियों को बच्चे ही संभालते हैं.

छोटा सा ख्वाब

इकरा प्राइमरी स्कूल औरंगाबाद में छठी कक्षा की छात्रा मिर्जा मरयम के पिता की किताबों की दुकान है. बहुत छोटी उम्र से ही मरयम को किताबें पढ़ने का शौक था. वह जब भी पिता के साथ दुकान पर जातीं, तो अपनी पसंद की कुछ किताबें घर ले आतीं. धीरे-धीरे मरयम के पास 156 किताबें जमा हो गई.

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मिर्जा मरयम के पिता मिर्जा अब्दुल कय्यूम, जिनके पुस्तकालय से शुरू हुआ मिर्जा मरयम का सफर 


14 नवंबर को बाल दिवस पर मरयम के पिता ने 150 खूबसूरत किताबों का तोहफा उन्हें दिया. और मरयम के लाइब्रेरी शुरू करने के ख्वाब को हकीकत में बदलने में उनकी सहायता की.

महत्व किताबों का

अक्सर होता यह है कि किताबें पढ़ने के बाद उन्हें रद्दी में बेच दिया जाता है. परन्तु मासूम मिर्जा मरयम ने अपने किताबों के खजाने को लाइब्रेरी की शक्ल में लोगों के बीच रख दिया. जहां ये किताबें एक हाथ से दूसरे हाथ में जाकर उनके ज्ञान में वृद्धि का कारण बन रही हैं.

किताब सुनने में मजा है

बच्चों की दिलचस्पी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक चार-पांच साल का बच्चा नदीम, पांच बजे से पहले ही लाइब्रेरी खुलने की प्रतीक्षा में रहता है.

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लाईब्रेरी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर 


मरयम मुस्कुराते हुए बताती हैं कि एक बार मैंने नदीम से पूछा कि आपको तो पढ़ना नहीं आता है और आप हमेशा कहानियों की किताब क्यों ले कर जाते हैं, तो उसने बताया कि मेरी दादी मुझे किताब में मौजूद कहानियां पढ़ कर सुनाती हैं. और मेरी दादी ही मुझे समय पर किताब लेने के लिए भेजती हैं.

मिशन मोहल्ला-मोहल्ला लाइब्रेरी

अब मिर्जा मरयम का ‘मोहल्ला-मोहल्ला लाइब्रेरी’ एक मिशन बन गया है. वे एक वर्ष में औरंगाबाद में 50 लाइब्रेरियां खोलने का संकल्प ले कर चल रही हैं. जिसे पूरा करने में रीड एंड लीड फाउंडेशन एंड फेम उनका सहयोग कर रही है.

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लाईब्रेरी स्वतंत्रता सैनानी बेगम हजरत महल के नाम पर 


हमारी लाइब्रेरी

मिर्जा मरयम की हर लाइब्रेरी बच्चों द्वारा संचालित की जाती है. मरयम के साथ अब 30बच्चों की एक टीम पूरी मेहनत से इस जिम्मेदारी को संभाल रही है. किताबों में बच्चों की रुचि देखकर अभिभावक भी हैरान हैं और अपने बच्चों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं.

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बच्चियों को पुस्तकें देती हुई मिर्जा मरयम


किताबों से बच्चों की दूरी चिंता का विषय बन गई थी, लेकिन मिर्जा मरयम की लाइब्रेरियों ने सिद्ध कर दिया कि बच्चे आज भी किताबें पढ़ने में रुचि रखते हैं. कहानियां सुनना उन्हें आज भी पसंद है.