एम मिश्रा / लखनऊ
अवध की बेगमों के इतिहास और संस्कृति को संजोए कल्चरल फेस्टिवल का शुक्रवार से सलेमपुर हाउस में भव्य शुभारंभ हुआ. पॉश व सलेमपुर हाउस के संयुक्त प्रयास से अवध की प्रतिष्ठित महिला शख्सियतों को समर्पित एग्जीबिशन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अवध की ऐतिहासिकता व सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिल रही है.
संयोजक सैय्यद रुश्दी हसन ने बताया कि 25 मार्च से 30 मार्च तक इसका सलेमपुर हाउस में आयोजन किया जा रहा है. इसके बारे में आयोजक सुशील सीतापुरी ने बताया कि सलेमपुर हाउस में बेगम थीम पर आयोजित यह छह दिवसीय कार्यक्रम इस रियासत की अहम शख्सियत रहीं राजकुमारी खैरुन्निसा को समर्पित है.
पॉश एग्जिबीशन की आयोजक सलेमपुर परिवार की बहू अस्मा हसन हैं. इस आयोजन में अवध की पांच महान शख्सियत बेगम हजरत महल, बेगम अख्तर, कुर्रतुल ऐन हैदर , रानी स्वरूप कुमारी बख्शी व बेगम हमीदा हबीबुल्ला पर केंद्रित ऐतिहासिक व सांस्कृतिक चर्चा आयोजित किया जा रहा है.
प्रतिदिन विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा, जिसमें युवाओं व बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा. इसमें गायन, नृत्य व योग विधाओं को शामिल किया गया है. इस दौरान विशेष योग कार्यक्रम भी संचालित होगा. वहीं, लोगों को सांस्कृतिक आयोजन संग फेस्टिवल में शाॅपिंग का आनंद देने के लिए विभिन्न उत्पादों के प्रतिष्ठान सजाए गए हैं.
27 मार्च को सम्मानित होंगी विभूतियां
संयोजक सैय्यद रुश्दी हसन ने बताया कि 27 मार्च को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाएगा. कार्यक्रम के समापन पर प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी सम्मानित करने का कार्यक्रम है.
जानिए, अवध की पांच बेगमों के बारे में
कुर्अतुल ऐन हैदर
उन्हें ऐनी आपा के नाम से भी जाना जाता है. कुर्रतुल ऐन हैदर (20 जनवरी 1927 - 21 अगस्त 2007) प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं. उनका जन्म 20 जनवरी 1926अलीगढ़ में हुआ था. उनके पिता ‘सज्जाद हैदर यलदरम‘ उर्दू के जाने-माने लेखक होने के साथ ब्रिटिश शासन के राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की इत्यादि देशों में तैनात रहे थे. उनकी मां ‘नजर‘ बिन्ते-बाकिर भी उर्दू की लेखिका थीं.
वो बचपन से रईसी व पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ीं. प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ के गांधी स्कूल से प्राप्त की. उसके बाद अलीगढ़ से हाईस्कूल पास किया. लखनऊ के आई.टी. कॉलेज से बी.ए. व लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया.
फिर लंदन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल में शिक्षा ग्रहण की. विभाजन के समय उनके भाई-बहन व रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए. लखनऊ में अपने पिता की मौत के बाद कुर्रतुल ऐन हैदर भी अपने बड़े भाई मुस्तफा हैदर के साथ पाकिस्तान पलायन कर गईं.
लेकिन 1951 में लंदन चली गई. वह बीबीसी लंदन से जुड़ीं तथा दि टेलीग्राफ की रिपोर्टर व इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबन्ध सम्पादक भी रहीं. कुर्रतुल ऐन हैदर लेस्ट्रेड वीकली की सम्पादकीय टीम में थीं. मौलाना अबुल कलाम आजाद के प्रयासों से कुर्रतुल ऐन हैदर लंदन से आकर मुंबई में रहने लगीं.
उन्होंने बहुत कम आयु में लिखना शुरू किया था. अपनी पहली कहानी मात्र छह वर्ष की अल्पायु में ही लिखी थी. ’बी चुहिया‘. वह जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अतिथि प्रोफेसर भी रहीं. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी काम किया. 1956 में उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास आग का दरिया प्रकाशित हुआ था.
बेगम हजरत महल
वह नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं. उनका जन्म 1820 जुलाई 1820 और मृत्यु अप्रैल 1879) में हुआ था. वह अवध की बेगम के नाम से प्रसिद्ध थीं. अंग्रेजों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने लखनऊ पर कब्जा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हकूमत को बरकरार रखा.
अंग्रेजों के कब्जे से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबजादे बिरजिस कद्र को अवध के वली (शासक) नियुक्त करने की कोशिश की थी. मगर उनका शासन जल्द खत्म होने की वजह से उनकी यह कोशिश असफल रह गई.
उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया. अंततः उन्होंने नेपाल में शरण मिली जहाँ उनकी मृत्यु 1879 में हुई. उनका जन्म फैजाबाद में हुआ था.बेगम हजरत महल की प्रमुख शिकायतों में से एक यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सड़कें बनाने के लिए मंदिरों और मस्जिदों को आकस्मिक रूप से ध्वस्त किया था.
लखनऊ में बेगम हजरत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बंदूक चलाना सिखाया.
बेगम अख्तर
बेगम अख्तर के नाम से प्रसिद्ध, अख्तरी बाई फैजाबादी (7 अक्टूबर 1914- 30 अक्टूबर 1974) भारत की प्रसिद्ध गायिका थीं, जिन्हें दादरा, ठुमरी व गजल में महारत हासिल थी. उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार पहले पद्मश्री तथा सन 1975 में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उन्हें ‘‘मल्लिका-ए-गजल‘‘ के खिताब से नवाजा गया था. वह फैजाबाद में पैदा हुई थीं.
लोकप्रिय लेखिका शिवानी अपने खास अंदाज में उनके बारे में लिखती हैं, “बालिका अख्तरी को बचपन से ही संगीत से कुछ ऐसा लगाव था कि जहां गाना होता, छुप छुप कर सुनती और नकल करती. घर वालों ने पहले तो इन्हें रोकना चाहा पर समुद्र की तरंगों को भला कौन रोक सकता था!
यदि कोई चेष्टा भी करता, तो शायद लहरों का वह सशक्त ज्वार भाटा उसे ही ले डूबता. २०14 की फिल्म डेढ़ इश्कियां में विशाल भारद्वाज ने बेगम अख्तर की प्रसिद्ध ठुमरी हमरी अटरिया पे का आधुनिक रीमिक्स रेखा भारद्वाज की आवाज में प्रस्तुत किया.
स्वरूप कुमारी बक्शी
वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता स्वरूप कुमारी बख्शी का निधन जीवन के 100 साल पूरे होने के कुछ दिन पहले की हो गया. उनका जन्म 22 जून 1919 को हुआ था.वह उत्तर प्रदेश की कई बार मंत्री रहीं, पर कभी सरकारी आवास नहीं लिया.
हमेशा राजभवन में रहती थीं.सर्दियों में भी वी सुबह 7.30 से 11 बजे तक राजभवन के अपने ऑफिस में बैठती थीं. उनसे मिलने का वालों की भीड़ लगी रहती थी. कोई भी उनके पास से निराश होकर नहीं लौटता था. यदि कोई उन्हें मिठाई आदि देता तो वह उसे बाहर गरीबों में बंटवा देती थीं.बख्शी दीदी परिवार में इकलौती थीं. उनकी सिर्फ एक बेटी ऊषा मालवीय हैं. ऊषा के भी एक बेटी है.
हमीदा हबीबुल्ला
हमीदा हबीबुल्ला (20 नवंबर 1916 से 13 मार्च 2018) पूर्व राज्य सभा सदस्य, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता थीं. वह भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह की मां थीं. वह वर्ष 1969 से 1974 तक बाराबंकी (उ.प्र.) जिले की हैदरगढ़ सीट से विधानसभा सदस्य और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहीं. वर्ष 1976-1982 तक वे राज्यसभा सदस्य भी रहीं.
हमीदा का जन्म लखनऊ में हुआ था. उनके पिता नवाब नजीर यार जंग बहादुर हैदराबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे. वे पुणे के खडकवासला में नेशनल डिफेंस अकादमी के संस्थापक कमांडेंट मेजर जनरल इनायत हबीबुल्ला की पत्नी थीं. पति की सेवानिवृत्ति के बाद 1965 में सक्रिय राजनीति में उतरीं और हैदरगढ़ (बाराबांकी) से विधायक बनीं.
तत्पश्चात 1971-1973 के बीच वे उत्तर प्रदेश की सामाजिक और हरिजन कल्याण राज्य मंत्री रहीं. वह 1976 से 1982 तक वह राज्यसभा की सदस्य भी रहीं.उनके बेटे आईएएस वजाहत हबीबुल्लाह भारत के पहले चीफ इनफॉरमेशन कमिश्नर रहे हैं.
वह लखनऊ की जानी-मानी शख्सियत थीं. उनका जीवन भारतीय महिलाओं खासकर अल्पसंख्यक महिला समुदाय को अपने तरीके से जीवन जीने और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है. सांसद और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुकीं बेगम ‘सेवा चिकनकारी’ की प्रमुख थी.
इन सबसे बढ़कर वह प्रगतिशील भारतीय मुस्लिम महिला का एक प्रभावी चेहरा थी. लखनऊ के कमांड अस्पताल में 13 मार्च 2018 की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली.