जब हमने इंग्लैंड को उसके घर में घुसकर पहली बार धूल चटाई थी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 24-08-2021
फोटो सौजन्यः राजदीप सरदेसाई का ट्विटर
फोटो सौजन्यः राजदीप सरदेसाई का ट्विटर

 

मंजीत ठाकुर

तालिबान-अफगानिस्तान के चक्कर में हमलोग लॉर्ड्स में भारत की ऐतिहासिक और प्रचंड जीत का जश्न नहीं मना पाए. अब कल यानी बुधवार से लीड्स में भारत के इंग्लैंड दौरे का तीसरा टेस्ट मैच शुरू हो रहा है, तो बिला शक हमारी निगाहें शमी-सिराज पर जाकर टिकेंगी.

बहरहाल, वह कल होगा. आज यानी मंगलवार 24 अगस्त, 2021 को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक सुनहरे दिन के रूप में याद किया जाना चाहिए. आज द ओवल में टेस्ट मैच में इंग्लैंड पर भारत की ऐतिहासिक जीत की 50वीं सालगिरह है. पचास साल हो गए जब हमने 1971में इंग्लैंड में इंग्लैंड को पहली बार टेस्ट सीरीज में हराया था.

बेशक, इंग्लैंड को उसके घर में हराना भारतीय क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण क्षण था. इसने भारतीय क्रिकेटरों को नया आत्मविश्वास दिया और उन्हें एहसास कराया कि वह किसी से कम नहीं हैं. लेकिन, तब भी यह जीत सिर्फ क्रिकेट के मैदान की सीमाओं तक सीमित नहीं रही और उसका असर पूरे भारतीय समाज पर पड़ा.

 

आज से पचास साल पहले की बात है, तब अंग्रेजों की टीम तीन साल से अपराजेय बनी हुई थी. दुनियाभर की किसी भी टीम ने उसको एक भी मैच हराया नहीं था, और भारत की टीम अजीत वाडेकर की अगुआई में सीरीज खेलने वहां पहुंची थी. तब, इंग्लैंड के कप्तान रे इलिंगवर्थ थे और लगातार 19टेस्ट मैचों में टीम का नेतृत्व करते हुए उसको अजेय बनाए हुए थे. उस समय उनकी टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम माना जाता था.

 

उस दौरे पर मेहमान टीम को कमजोर माना जा रहा था. हालांकि, इससे पहले भारत वेस्ट इंडीज को सीरीज में पीट चुका था लेकिन उस समय कैरेबियाई खिलाड़ी ठीक प्रदर्शन नहीं कर पाए थे. लेकिन, इंग्लैंड की टीम चौतरफा ताकत थी और प्रचंड आत्मविश्वास से लैस थी.

इस दौरे में तीन टेस्ट मैच खेले जाने थे. इनमें से पहले दो ड्रॉ हो गए इसलिए सबकी निगाहें ओवल के तीसरे और अंतिम टेस्ट पर थी.

यह मैदान, जिसे केनिंग्टन ओवल के नाम से भी जाना जाता है, ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण खेल आयोजनों की मेजबानी के लिए मशहूर है. इसी जगह पर इंग्लैंड ने 1880में अपना पहला टेस्ट मैच खेला था. परंपरा है कि सीजन का आखिरी टेस्ट इसी मैदान पर होता है. तो एक तरह से भारतीय जीत के अफसाने को गढ़ने के लिए इससे बेहतर क्या कैनवस सेट हो सकता था भला!

इस जीत को मुमकिन बनाने वाला व्यक्ति दिखने में साधारण और खेलने में वाकई असाधारण था. देखने में साधारण इसलिए क्योंकि देहयष्टि से वह खिलाड़ी पतले और कमजोर थे. बचपन में उनको पोलियो हो गया था. पर बड़ी कोशिशों के बाद यह हुआ कि पोलियोग्रस्त उनका दाहिना हाथ क्रिकेट की गेंदे को जबरदस्त फिरकी देता था. यह थे चंद्रशेखर. उनको उस वक्त दुनिया का सबसे खतरनाक फिरकी गेंदबाद माना जाता था. उस समय के ब्लास्टर कहे जाने वाले विवियन रिचर्ड्स चंद्रशेखर की टॉप स्पिन और गुगली से मात खा चुके थे.

बहरहाल, ओवल टेस्ट में इलिंगवर्थ ने टॉस जीता और बल्लेबाजी के लिए उपयुक्त पिच पर रन कूटने के लिए पहले बल्लेबाजी का फैसला किया. इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने उनके फैसले को सही साबित किया और जॉन जेमिसन (82), रिचर्ड हटन (81) और विकेटकीपर एलन नॉट की 90रन की शानदार बल्लेबाजी की बदौलत उनकी टीम ने अपनी पहली पारी में कुल 355रन बनाए.

पहली पारी में अपने शानदार कैच के लिए मशहूर एकनाथ सोलकर ने अपनी धीमी मध्यम गति की गेंदबाजी से तीन विकेट हासिल किए, जबकि बेदी, वेंकटराघवन और चंद्रशेखर की स्पिन तिकड़ी ने दो-दो विकेट लिए.

बल्लेबाजी में भारत कुछ खास नहीं कर सका और महज दिलीप सरदेसाई और फारुख इंजीनियर ही पचासा लगा सके. भारत पहली पारी में इंग्लैंड से 71रन पीछे रह गया. रे इलिंगवर्थ खुद 70रन देकर पांच विकेट लेकर शीर्ष विकेट लेने वाले गेंदबाज के रूप में उभरे. जाहिर है, इंग्लैंड 71 रनों की लीड के साथ आत्मविश्वास से भरा हुआ था. और दूसरी पारी में बल्लेबाजों की देहभाषा भी यही कह रही थी.

पर उसके बाद विकेट पर जादू हो गया. बी.एस. चंद्रशेखर की गेंदें खतरनाक मोड़ लेकर घूमने लगीं. इंग्लैंड के शीर्ष क्रम के चार बल्लेबाज उनकी गेंदों पर भरतनाट्यम करते हुए पवेलियन लौट आए.

उसके बाद, वेंकटराघवन ने बड़े खतरे और विकेट कीपर एलन नॉट को आउट किया. इसके बाद चंद्रशेखर दोबारा आक्रमण पर लौट आए और उनने इंग्लैंड के पुछल्ले बल्लेबाजों पर अपना नश्तर फेरा. चंद्रशेखर ने महज 38रन देकर छह विकेट लिए और इंग्लैंड की दूसरी पारी 101रनों पर सिमट गई. अब भारत को इंग्लैंड में अपनी पहली श्रृंखला जीतने के लिए केवल 173रन चाहिए थे.

पर इंग्लैंड क्या ऐसे ही हार मानने वाला था. तेज गेंदबाज जॉन स्नो विकेट पर आग उगल रहे थे. उन्होंने सुनील गावस्कर को सिफर पर चलता कर दिया. खतरनाक स्पिनर डेरेक अंडरवुड ने अशोक मांकड़, दिलीप सरदेसाई और एकनाथ सोलकर को आउट किया.

लेकिन अंत में फारूख इंजीनियर और सैयद आबिद अली ने भारत को जीत की ओर खींच लिया. मैच कैसे खत्म हुआ, इसके बारे में एक दिलचस्प कहानी है. इंजीनियर अधिक प्रतिष्ठित बल्लेबाज थे और जाहिर तौर पर उन्होंने आबिद अली को एक सिंगल लेने और अपना विकेट नहीं गंवाने का निर्देश दिया.

लेकिन हैदराबाद के इस ऑलराउंडर को अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा था और उनके दिमाग में कुछ और ही विचार थे. उन्होंने बजाए एक रन लेने के स्क्वायर कट लगाते हुए चौका जड़ दिया.

और भारत ने इंग्लैंड में जाकर इंग्लैंड को पहली बार मात दे दी.