आज से 46 साल पहले, 1979 में, दुनिया में तीन ऐसी घटनाएँ हुईं जिनका गहरा असर मुसलमानों और उनकी सोसाइटी पर पड़ा, और इन घटनाओं ने उनकी दशा और दिशा दोनों को बदल दिया.ये घटनाएँ थीं: ईरान में रिवॉल्यूशन, अफगानिस्तान में सोवियत संघ का आक्रमण, और मक्का के ग्रैंड मस्जिद की घेराबंदी.इन घटनाओं पर आधारित प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन की एक किताब भी है, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र ग्लेशियोलॉजी (ग्लेशियर अध्ययन) रहा है.प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन जामिया हमदर्द के प्रो चांसलर रहे हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ कालीकट के चांसलर भी रह चुके हैं.
इन्हीं से इन घटनाओं और विभिन्न मुद्दों पर 'आवाज द वॉयस' के चीफ एडिटर आतिर खान ने एक विशेष बातचीत की.इस बातचीत में प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन ने बताया कि उनका भारतीय मुसलमानों में गहरी रूचि है. खासकर उनके सामाजिक और शैक्षिक विकास के बारे में.उन्होंने कहा कि जब वे कालीकट यूनिवर्सिटी में थे, तो उन्हें भारतीय मुसलमानों के जीवन और उनके बर्ताव को समझने का अच्छा मौका मिला.
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि, "मैंने देखा कि उत्तर भारत के मुसलमान और केरल के मुसलमानों में बहुत अंतर है." इस अंतर को समझते हुए उन्होंने अपनी किताब"The Muslims of North India: Frozen in the Past" लिखी.इस किताब में उन्होंने न केवल भारतीय मुसलमानों की समस्याओं को उजागर किया, बल्कि उनके शैक्षिक विकास के बारे में भी लिखा.
1979 और उसके प्रभाव पर प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन का विश्लेषण
जब उनसे पूछा गया कि उनकी किताब में 1979 के घटनाक्रम का क्या प्रभाव था, तो प्रोफेसर इकबाल ने कहा कि 1979 में हुए तीन प्रमुख घटनाओं—ईरानियन रिवॉल्यूशन, अफगानिस्तान में सोवियत संघ का आक्रमण और मक्का में ग्रैंड मस्जिद की घेराबंदी—ने मुसलमानों की सोच और उनकी राजनीति को एक नया दिशा दिया.
विचारधाराओं के प्रतिस्पर्धा और शिया-सुन्नी विभाजन
प्रोफेसर इकबाल ने यह भी उल्लेख किया कि 1979 के बाद दो प्रमुख विचारधाराओं का प्रतिस्पर्धा शुरू हुआ—शिया विचारधारा, जो ईरान से आई थी, और वहाबी विचारधारा, जो सऊदी अरब से उत्पन्न हुई थी."दोनों विचारधाराएं एक दूसरे से टकराती थीं, और यह टकराव केवल धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी था," उन्होंने कहा.
सऊदी अरब का प्रभाव और वहाबी विचारधारा
उन्होंने यह भी बताया कि सऊदी अरब में वहाबी विचारधारा ने कैसे अपना प्रभाव बढ़ाया और कैसे इसका असर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अन्य देशों में हुआ.वहाबी विचारधारा के प्रभाव से ही, मुस्लिम समाज में एक आक्रामकता और कट्टरता का रुझान बढ़ा. उन्होंने कहा,"यह विचारधारा लोगों को एक ऐसे रास्ते पर ले गई, जिससे समाज में एक तरह की असहिष्णुता और हिंसा बढ़ी."
क्या सुन्नी समाज अधिक आक्रामक हो रहा है?
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या सुन्नी समाज अधिक आक्रामक हो रहा है, तो प्रोफेसर ने कहा कि 1979 के बाद सुन्नी समाज में एक रिवाइवल हुआ है."मुसलमानों के बीच एक नई आक्रामकता और संघर्ष की भावना का जन्म हुआ है.यह समाज के विकास में बाधा डाल रहा है."
प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन की किताब और विचारधाराओं का विश्लेषण यह दर्शाता है कि 1979 में हुई घटनाएँ केवल एक ऐतिहासिक मोड़ नहीं थीं, बल्कि इन घटनाओं ने मुस्लिम समाज में गहरे धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक बदलावों को जन्म दिया.उनका कहना था कि इन घटनाओं के कारण जो विचारधाराएँ और आंदोलनों की शुरुआत हुई, उसने पूरी मुस्लिम दुनिया में एक नई दिशा और पहचान दी, जो आज भी महत्वपूर्ण है.
प्रस्तुति: मोहम्मद अकरम