पश्तून राष्ट्रवाद का उभार पाकिस्तान की अखंडता को सीधा खतराः विशेषज्ञ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 01-02-2022
पश्तून राष्ट्रवाद का उभार
पश्तून राष्ट्रवाद का उभार

 

तेल अवीव. डूरंड रेखा के पार पश्तून राष्ट्रवाद पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई हैए क्योंकि यह समस्या देश के बजाय अपने कबीले के प्रति वफादारी पर केंद्रित है.

द टाइम्स ऑफ इजराइल के एक ब्लॉग पोस्ट में एक इतालवी राजनीतिक सलाहकारए लेखक और भू.राजनीतिक विशेषज्ञ सर्जियो रेस्टेली ने कहा कि तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं. इसलिए पश्तून मातृभूमि का महत्व शायद अफगानिस्तान के जातीय रूप से विविध क्षेत्रों के नियंत्रण से अधिक महत्वपूर्ण है. इस्लामाबाद और रावलपिंडी के लिएए कबीले के प्रति वफादारी पर केंद्रित यह जातीय.आधारित पश्तून राष्ट्रवाद समस्याग्रस्त हैए क्योंकि यह धर्म.आधारित पाकिस्तानी राष्ट्रवाद.एक जातीय पाकिस्तानी.पंजाबी कथा के विपरीत है.

रेस्टेली ने कहा कि अधिक मौलिक रूप सेए यह 1947 में भारत के अंश से पाकिस्तान के निर्माण के लिए बहुत ही मूल कारण को भी चुनौती देता है. यह बलूच आबादी सहित अन्य बढ़ते अलगाववादी आंदोलनों के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में भी काम करता हैए जिससे पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता को सीधे खतरा होता है.

डूरंड रेखा 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा हैए जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान को विभाजित करती हैए लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पश्तूनों को भी अलग करती है. पश्तूनिस्तान के माध्यम से एक रेखा खींचती है और पश्तूनों को दो देशों में विभाजित करती है.

टाइम्स ऑफ इजराइल ने रिपोर्ट दी है कि यह दोनों देशों के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक साबित हुआ हैए जबकि पाकिस्तान लाइन की औपचारिकता पर जोर देने का इच्छुक है. लगातार अफगान सरकारों ;1990 के दशक में अपने पिछले अवतार में तालिबान शासन सहितद्ध ने इस कृत्रिम रेखा को पहचानने से इनकार कर दिया है.

उन्होंने इस लाइन को अफगानिस्तान.पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में सबसे प्रमुख जनजाति पश्तून राष्ट्रवाद को दबाने के प्रयास के रूप में माना है.

रेस्टेली ने कहा कि इस तर्क से प्रेरितए पाकिस्तान हाल के वर्षों में इस सीमा पर बाड़ लगाने के प्रयास कर रहा है. इस तरह के प्रयासों ने 2017 में अपने ष्आतंकवाद.विरोधीष् अभियानों के हिस्से के रूप में गति पकड़ी है.

इसके अलावाए दशकों से समर्थन देने के बावजूदए अफगानिस्तान और तालिबान से निपटने के लिए अब पाकिस्तान में गंभीर बेचौनी और विरोधाभास है.

इसके अलावाए पाकिस्तान पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट ;पीटीएमद्ध से सावधान हैए जिसने 2018 में भाप इकट्ठा की और पाकिस्तानी सेना द्वारा संघीय प्रशासित जनजातीय क्षेत्रों ;एफएटीएद्ध में अपने आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर कियाए जो एक पूर्व अर्ध स्वायत्त क्षेत्रए बाद में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में विलय हो गया.

पाकिस्तानी प्रतिष्ठान पश्तून राष्ट्रवाद को पीटीएम द्वारा दिए जा सकने वाले कर्षण की संभावना से डर गया था. इसके बादए पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने 90 प्रतिशत से अधिक लाइन पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया है.

हालांकिए अफगान तालिबान ने अब पाकिस्तान की कार्रवाइयों के लिए खड़े होने का फैसला किया हैए जिसमें तालिबान सैनिकों की बाड़ लगाने के काम में लगे पाकिस्तानी सेना के सैनिकों के साथ झड़प की कई घटनाएं सामने आई हैं.

ऐसी ही एक घटना मेंए 23 दिसंबरए 2021 कोए अफगान रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि डूरंड रेखा पर तैनात तालिबान बलों ने पाकिस्तानी सैनिकों को बाड़ लगाने का काम करने से रोक दिया था.

एक वायरल वीडियो में बाजौर इलाके में तालिबान सैनिकों को कंटीले तारों के स्पूल जब्त करते हुए दिखाया गया है और एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुरक्षा चौकियों में तैनात पाकिस्तानी सैनिकों से सीमा पर फिर से बाड़ लगाने की कोशिश नहीं करने के लिए कहा है. इसके बाद दोनों बलों ने कथित तौर पर आग का आदान.प्रदान किया.

दिलचस्प बात यह है कि यह घटना उस दिन की हैए जब इस्लामिक सहयोग संगठन के प्रतिनिधि अगस्त 2021 में तालिबान के अधिग्रहण के बाद से अफगानिस्तान के मानवीय संकट पर चर्चा करने के लिए इस्लामाबाद में एकत्र हुए थे.

आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच डूरंड रेखा का मुद्दा लगातार जारी रहने की आशंका है. पाकिस्तानी सेना ने भले ही इस मुद्दे पर तालिबान के शीर्ष नेतृत्व को खरीद लिया होए लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं.

नूरजैसए अचकजैस और शिनवारी जैसी स्थानीय जनजातियांए जो सदियों से सीमावर्ती क्षेत्र में निवास करती हैं. इस तरह के किसी भी समझौते का कड़ा विरोध करेंगी.

रावलपिंडी में बैठे जनरलों और काबुल में गद्दी पर बैठे नेताओं के विपरीतए इन जनजातियों के डूरंड रेखा को पार करते हुए परिवारए व्यवसायए व्यापार और संपत्ति के संबंध हैं. इसलिए उन संबंधों को बनाए रखने में उनकी गहरी रुचि है और इसलिएए वे पाकिस्तानी कदमों के खिलाफ पीछे हटेंगे.

रेस्टेली ने कहा कि इसलिए जब पाकिस्तान पश्तून राष्ट्रवादी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए सीमा पर बाड़ लगाना चाहता हैए तो उसकी हरकतें एक संयुक्त पश्तून मातृभूमि के लिए आंदोलन को मजबूत करने के लिए उन भावनाओं के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती हैं.