आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान स्वागत योग्य

Story by  क़ुरबान अली | Published by  [email protected] | Date 06-07-2021
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

 

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया है कि 'देश के हिंदू-मुस्लिम एक हैं, और इसका आधार है हमारी मातृभूमि.पूजन विधि के आधार पर हमें अलग नहीं किया जा सकता.सभी भारतीयों का डीएनए एक है.अब समय आ चुका है कि भाषा, प्रांत और अन्य विषमताओं को छोड़कर हम एक हों और भारत को विश्वगुरू बनाएं.भारत विश्वगुरू बनेगा तभी दुनिया सुरक्षित रहेगी.'

मोहन भागवत ने यह विचार गत 5 जुलाई को एक मुस्लिम विद्वान  डा. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद की पुस्तक ''वैचारिक समन्वय-एक पहल'' का विमोचन करने के अवसर पर ग़ाज़ियाबाद में व्यक्त किये.

विमोचन कार्यक्रम में सरसंघचालक ने कहा कि 'लोग यह न समझें कि इस पुस्तक का विमोचन 'वोट बैंक पॉलिटिक्स' के लिए किया गया है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ राष्ट्रवाद के लिए काम करता है.

राजनीति स्वयंसेवकों का काम नहीं है.संघ जोड़ने का काम करता है, जबकि राजनीति ताेड़ने का हथियार बन जाती है.राजनीति की वजह से ही हिंदू-मुस्लिम एक नहीं हो सके हैं.संघ चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगाता है लेकिन जो भी करता है राष्ट्र हित में करता है.' 


संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह भी कहा कि 'राजनीति ने जो अलगाव पैदा किया है उसे हटाना होगा.हम कहते हैं कि गौ माता पूजनीय है, भारत हिन्दू राष्ट्र है लेकिन लिंचिंग करने वाले अपराधी हैं.हम उनका समर्थन नहीं करते.

अगर कोई हिंदू ये कहता है कि यहां कोई मुसलमान नहीं रहना चाहिए, तो वह व्यक्ति हिंदू नहीं है.गाय एक पवित्र जानवर है लेकिन जो लोग दूसरों को मार रहे हैं वे हिंदुत्व के खिलाफ जा रहे हैं.कानून को बिना किसी पक्षपात के उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.'

अपने भाषण में मोहन भागवत ने यह भी जोड़ा कि  'हिंदू-मुस्लिम एकता शब्द ही भ्रामक है.हिंदू-मुस्लिम अलग हैं ही नहीं, हमेशा से एक हैं.जब लोग दोनों को अलग मानते हैं तभी संकट खड़ा होता है.

हमारी श्रद्धा आकार और निराकार दोनों में समान है.हम मातृभूमि से प्रेम करते हैं क्योंकि ये यहां रहने वाले हर एक व्यक्ति को पालती आई है और पाल रही है.जनसंख्या के लिहाज से भविष्य में खतरा है,

उसे ठीक करना पड़ेगा.कुछ लोग अल्पसंख्यक कहते हैं, हम कहते हैं, हम सब एक हैं.हम हिंदू कहते हैं आप भारतीय कहते हो.शब्दों की लड़ाई में नहीं पड़ना है.अल्पसंख्यकों के मन में यह बिठाया गया है कि हिंदू उनको खा जाएंगे.

मुसलमानों को ‘‘डर के इस चक्र में’’ नहीं फंसना चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है लेकिन जब किसी अल्पसंख्यक पर बहुसंख्यक अत्याचार करता है तो इसके खिलाफ आवाज भी बहुसंख्यक ही उठाता है.

आग लगाने वाला भाषण देने से प्रसिद्धि  तो हासिल हो सकती है, लेकिन इससे काम नहीं चलेगा. इससे हिन्दुओं का समर्थन हासिल नहीं हो सकता.' मोहन भागवत ने कड़े शब्दों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की निंदा करते हुए कहा कि 'ऐसी घटनाएं "हिंदुत्व के खिलाफ हैं" और इसमें शामिल लोग हिंदू नहीं हैं.लिंचिंग करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए.'

कार्यक्रम में उन्होंने यह भी कहा कि, ''यह सिद्ध हो चुका है कि हम पिछले 4,000 सालों से एक ही पूर्वजों के वंशज हैं.भारत के लोगों का डीएनए एक जैसा है.हिंदू और मुसलमान दो समूह नहीं हैं, एकजुट होने के लिए कुछ भी नहीं है, वे पहले से ही एक साथ हैं.लोकतंत्र में हिंदुओं या मुस्लिमों का प्रभुत्व नहीं हो सकता.''

ऐसे समय में जब देश के अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के ऊपर हमले हो रहे हों और कट्टरपंथी तत्वों द्वारा उन्हें हर तरह से अपना निशाना बनाया जा रहा हो, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हिम्मत के साथ दिए  गए इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए.

उनकी इस बात के लिए भी सराहना की जानी  चाहिए  की उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट रूप से कहा है कि 'मुसलमान इस देश के समान नागरिक हैं', जबकि हिंदुत्ववादी शक्तियां अभी तक ऐतिहासिक रूप से स्वदेशी धर्मों और अब्राहमिक धर्मों (यहूदी, ईसाई और मुसलमान)  के बीच अंतर करती आई हैं.मोहन भागवत ने यह कहकर कि 'हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए समान है', उन्होंने मुसलमानों के विदेशी होने के सबसे बड़े तर्क को ख़ारिज कर दिया है.


लेकिन ग़ौरतलब बात ये है की जिस समय आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ग़ाज़ियाबाद में आपसी सौहार्द और देश की एकता को मज़बूत करने वाली अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे ठीक उसी समय वहां से महज़ सौ किलोमीटर दूर हरियाणा के पटौदी में बीजेपी के राज्य प्रवक्ता और करणी सेना प्रमुख सूरज पाल अमु इसके बरक्स भड़काऊ भाषण दे रहे थे.वे कह रहे थे  कि
'पाकिस्तानियों को देश से निकालो और ऐसा काम करो जिससे देश में औरंगजेब, बाबर और तैमूर पैदा न हों.'

वे गुड़गांव की एक महापंचायत में यह बातें कह रहे थे.साथ ही महापंचायत में वे ‘लव-जिहाद’ और ‘धर्मांतरण’ के बहाने एक समुदाय विशेष के खिलाफ़ आपत्तिजनक बयान भी देने लगे और लोगों से एक समुदाय विशेष के लोगों को चुन-चुनकर ठोंकने की बात करने लगे.

अमु ने महापंचायत में यह भी कहा, युवाओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए.उनका यह भी कहना था  कि  'अगर भारत हमारी माता है तो पाकिस्तान के हम बाप हैं और इन पाकिस्तानीयों  को हम यहां के घरों में किराए पर मकान नहीं देंगे. 

इनको देश से निकलो.ये प्रस्ताव  पास करो.' महापंचायत को धर्मांतरण, लव जिहाद और जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर विचार के लिए बुलाया गया था.हालाँकि हरियाणा के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने अमु के बयान से पल्ला झाड़ लिया और कहा कि यह उनका निजी बयान है पर इन बयानों के वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं. 

दरअसल,आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जो बातें पहली बार बहुत सफाई के साथ कही हैं वह सात वर्ष पहले उस समय कही जानी  चाहिए थीं  जब आरएसएस के समर्थन से केंद्र में  पहली बार बीजेपी की स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनी थी.उसी दिन से मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की शुरुआत हो गई थी और उसका पहला शिकार पुणे में मोहसिन शैख़ नाम का एक युवक बना था.

फिर अख़लाक़, जुनैद, रअकबर के बाद राजस्थान से लेकर झारखण्ड एक लम्बी सूची है और इन दिनों भी आये दिन लिंचिंग की घटनाओं की ख़बरें आती रहती हैं.साथ ही संघ प्रमुख को यह भी विश्वास दिलाना चाहिए कि नागरिकता के दस्तावेजों की अनुपस्थिति और एनआरसी से बाहर होने की स्थिति में, भारतीय नागरिकों के साथ डीएनए-मिलान को नागरिकता देने या अस्वीकार करने के लिए अंतिम परीक्षण के रूप में उपयोग किया जायेगा न कि उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर उनकी नागरिकता ख़ारिज कर दी जाएगी और उन्हें 'कंसंट्रेशन कैम्पों' में रखा जायेगा जैसा असमऔर देश के कुछ अन्य राज्यों में तैयारी चल रही है.

दरअसल,भारत को एक राष्ट्र-एक देश बनाये रखने की शर्त वही है जो हमारे पुरखों ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान तय की थी और जिसके आधार पर भारत का संविधान बना.

उसके मुताबिक़ देश के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता उसके मज़हब, उसकी जाति, उसके लिंग, भाषा, वेशभूषा, उसकी संस्कृति और खान-पान से तय नहीं होगी. सभी नागरिकों के अधिकार बराबर होंगे और किसी भी तरीके से उनके साथ भेद भाव नहीं किया जायेगा.

संघ प्रमुख मोहन भगवत ने भी संविधान की इसी भावना की ओर ध्यान आकृष्ट किया है.अब समय का तक़ाज़ा है की उन्हें हिंदुत्ववादी शक्तियों को उसपर अमल करने के लिए कहना चाहिए.साथ ही उन सरकारों से भी (केंद्र और राज्यों) कहना चाहिए की वे लिंचिंग और अन्य आपराधिक गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोकें और ऐसा कोई काम न होने दें जिससे समाज में आपसी वैमनस्य बढ़ता हो और देश का साम्प्रदायिक सौहार्द और सामाजिक ताना-बाना टूटता हो।धर्म के आधार पर बने देश पाकिस्तान का हाल हमारे सामने है जिसे टूटने में पच्चीस साल भी नहीं लगे.  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लम्बे समय तक बीबीसी से जुड़े रहे हैं)