जामिया मिलिया इस्लामियाः दयारे शौक और शहरे आरजू

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 26-01-2021
जामिया मिलिया इस्लामि
जामिया मिलिया इस्लामि

 

 
akhtarul wasayप्रोफेसर अख्तरउल वासे / नई दिल्ली

जामिया मिलिया इस्लामिया शेख-उल-हिंद मौलाना महमूद हसन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल खान, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी और एएम ख्वाजा के अभूतपूर्व प्रयासों का फल है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना में सबसे आगे रहे डॉ. जाकिर साहब ने बाद में अपने दो साथियों मोहम्मद मुजीब और डॉ. सैयद आबिद हुसैन की मदद से, न केवल इसे एक नया जीवन दिया. इसे सफलता की नई ऊंचाइयों से रूबरू कराया. शिक्षा के मंदिर की यह यात्रा अलीगढ़ के टेंट से शुरू हुई और बड़े मुश्किल हालात में भी 1925 में करोल बाग स्थित किराए के मकानों में जारी रही. 1935 के आसपास, उन्होंने विश्वविद्यालय के लिए दक्षिण दिल्ली में यमुना नदी के तट पर ओखला के पास गांवों में नए भवनों का निर्माण जारी रखा. 
 
जामिया मिलिया इस्लामिया सिर्फ एक शैक्षणिक संस्था का नाम नहीं था, बल्कि एक आंदोलन का नाम था, जिसकी स्थापना के पीछे स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं का सपना था कि अगर हम अपने प्रिय देशवासियों को पूरी आजादी नहीं दे सकते हैं, तो कम से कम अपनी शिक्षा को तो साम्राज्यवादी वर्चस्व से मुक्त करें. इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य था कि मानसिक और बौद्धिक रूप से भारतीय मुसलमानों की एक ऐसी युवा पीढ़ी विकसित की जाए, जो इस्लाम और भारतीयता का सबसे अच्छा उदाहरण हो. ये वे लोग थे, जिनकी अपेक्षाएं तो बहुत कम थीं, लेकिन लक्ष्य शानदार थे. 
 
उन्होंने अपने घरों में तो अंधेरा होने दिया, लेकिन हमारे घरों और हमारे भविष्य को उज्ज्वल रखने के लिए किसी किस्म के भी त्याग से कभी पीछे नहीं हटे.
 
जामिया मिलिया इस्लामिया को यह उपलब्धि हासिल है कि उसके कुलपति डॉक्टर जाकिर हुसैन ‘वर्धा शिक्षा योजना’ के प्रमुख के रूप में गांधी जी की पहली पसंद थे और वर्धा शिक्षा योजना की पहली प्रयोगशाला के रूप जामिया मिलिया स्कूल को चुना गया. 
 
जामिया समुदाय की अवधारणा थी कि कोई भी इंसान बड़ा या छोटा नहीं है. निस्वार्थता, त्याग, संतोष, विश्वास और उदारता जामिया के लोगों की पहचान थी. जब विवि पर कठिन समय आया, तो कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि यदि इस्लामिया को उसके नाम से हटा दिया जाए, तो वित्तीय सहायता प्राप्त करना आसान हो सकता है. 
 
जब महात्मा गांधी को इस सलाह के बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ, तो वह विवि के साथ अपने संबंध को समाप्त कर देंगे. जामिया से उनका संबंध तब तक है, जब तक वह जामिया मिलिया इस्लामिया है. 
 
जामिया मिलिया इस्लामिया ने जहां एक ओर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को एक नया अर्थ दिया, वहीं दिवंगत शफीक-उर-रहमान किदवई के मार्गदर्शन में, इस संस्था ने अनौपचारिक रूप से शिक्षा के लिए नई संभावनाओं को आगे बढ़ाया. सईद अंसारी और सलामतुल्ला साहब के नेतृत्व में टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज ने इसे न केवल दिल्ली में, बल्कि पूरे भारत में असाधारण महत्व का संस्थान बना दिया. 
 
रूरल इंस्टीट्यूट ने जमीनी स्तर पर, विशेष रूप से विश्वविद्यालय से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को विकसित किया, जिसकी वजह से विश्वविद्यालय की क्षमता का लोहा हर किसी ने माना. विवि संभवतः एकमात्र ऐसा संस्थान है, जिसमें राष्ट्रवादियों, द्विराष्ट्र सिद्धांत के अनुयायियों और देशी रियासतों के प्रतिनिधियों सभी को एक ही मंच पर अपने सिल्वर जुबिली समारोह में इकठ्ठा कर दिया था, जो शायद एक तरह से देश को धार्मिक आधार पर विभाजन से बचाने के लिए अंतिम प्रयास था.
 
स्वतंत्रता के बाद, एक विश्वविद्यालय के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया को वो सब कुछ मिल जाना चाहिए था, जिसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने उसे अभी तक वंचित कर रखा था, लेकिन उस समय, शायद जवाहरलाल नेहरू या मौलाना अबुल कलाम आजाद की प्राथमिकता अलीगढ़ मुस्लिम विवि का संरक्षण थी, जिसके लिए उन दोनों ने जाकिर साहब को उसकी रक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विवि भेज दिया. 1963 के आसपास, जामिया मिलिया इस्लामिया को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. 
 
मुजीब साहिब, जो 1948 में कुलपति बने और 1973 तक इस पद पर रहे. मुजीब की तबीयत अचानक बिगड़ने के कारण प्रो. मसूद हुसैन खान जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति बने. उनके बाद अनवर जमाल कदवाई, प्रो. अली अशरफ, डॉ. सैयद जहूर कासिम, प्रो. बशीरुद्दीन अहमद, लेफ्टिनेंट जनरल एमए जकी, सैयद शाहिद मेहंदी, प्रो. मुशीरुल हसन, नजीब जंग, प्रो. तलत अहमद और प्रो. नजमा अख्तर ने इसकी कमान संभाली. प्रो. नजमा अख्तर को यह गौरव प्राप्त है, वह जामिया की पहली महिला कुलपति हैं.
 
यह भी उल्लेखनीय है कि डॉ. गोपी चंद नारंग उर्दू विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष थे और डॉ. मुजीब रिजवी हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष थे. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर, जो जामिया को अनवर जमाल किदवई की देन थी, दक्षिण एशिया का ऐसा पहला संस्थान है, जो मास कम्युनिकेशन में स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करता है और जिसके छात्र इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिल्म संबंधित क्षेत्रों में असाधारण प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं. 
 
इसी तरह, अली अशरफ के समय में, इंजीनियरिंग कॉलेज, अकादमी फॉर थर्ड वर्ल्ड स्टडीज के केंद्र खोले गए. प्रोफेसर मुशीरुल हसन के समय में डेंटल कॉलेज के साथ विभिन्न रिसर्च सेंटर्स खोले गए, वे सभी असाधारण महत्व की चीजें हैं.
 
आज, जब विश्वविद्यालय ने अपने अस्तित्व के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं, तो यह शिक्षा मंत्रालय के मानकों के आधार पर देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की सूची में प्रथम स्थान पर है. अमेरिका में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में जामिया के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर इमरान अली को संयुक्त राज्य अमेरिका में नंबर एक का वैज्ञानिक नामित किया गया है. इसके अलावा, लगभग आधा दर्जन विश्वविद्यालय शिक्षकों को उनकी सूची में उत्कृष्ट वैज्ञानिकों के रूप में गिना जाता है. यह हमारी प्रार्थना है कि विश्वविद्यालय की यह शानदार अकादमिक यात्रा जारी रहेगी.
 
(लेखक मौलाना आजाद विश्वविद्यालय जोधपुर के कुलपति और जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस हैं)