आरएसएस और मुस्लिम संबंधों में पिघल रही है बर्फ़

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 28-09-2022
आरएसएस और मुस्लिम संबंधों में बर्फ़ पिघल रही है
आरएसएस और मुस्लिम संबंधों में बर्फ़ पिघल रही है

 

तिरंगे का तीसरा रंगwasay

प्रो. अख्तर-उल-वासे

हम लंबे समय से सरकार और मुसलमानों दोनों पर जोर देते आए हैं कि उनके बीच एक प्रभावी और सकारात्मक बातचीत शुरू होनी चाहिए. इसी तरह हम बार-बार इस बात पर भी जोर आए हैं कि देश के मुसलमानों और देशवासियों के बीच सुखद माहौल में संवाद हो ताकि ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा सके और मतभेदों को कम किया जा सके.

हमें खुशी है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हज़रत मौलाना अरशद मदनी इस संबंध में सबसे पहले आगे आए और दिल्ली में आरएसएस प्रमुख से चर्चा की. उसके बाद श्री मोहन भागवत ने गाजियाबाद में डॉ. ख़्वाजा इफ़्तिख़ार अहमद की पुस्तक का विमोचन किया और कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का इज़्हार करते हुए आपसी संवाद की आवश्यकता पर बल दिया.

अब ख़बर आई है कि इस महीने की शुरुआत में पांच अहम मुस्लिम बुद्धिजीवियों, पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व कुलपति और दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीक़ी और समाज सेवी सईद शेरवानी ने श्री मोहन भागवत से भेंट की.

ख़बरों के मुताबिक़ इसमें इन लोगों ने श्री मोहन भागवत को बताया कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ जिस तरह की स्थिति पैदा की जा रही है, वह देश के विकास को रोक देगी, इसलिए बेहतर है कि न केवल बातचीत को बढ़ावा दिया जाए, बल्कि अगर कोई गलतफहमी है तो उसका समाधान भी होना चाहिए.

हालांकि यह बैठक पैगंबर मुहम्मद पर नपूर शर्मा के अपमान वाले बयानों के बाद देश में बनी अराजक स्थिति की पृष्ठभूमि में हुई थी, लेकिन इस बैठक के बारे में प्रमुख पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीक़ी ने जो कहा वह बिल्कुल सही है.

उन्होंने कहा कि ‘‘आरएसएस का न केवल सरकार में बड़ा प्रभाव है, बल्कि अन्य समान विचारधारा वाले संगठन भी इसके प्रभाव में काम कर रहे हैं.’’ कहा जाता है कि इस प्रतिनिधिमण्डल से आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वह मुसलमानों को इस देश का हिस्सा समझते हैं और उन्हें मुसलमानों के धार्मिक क्रियाकलापों से कोई समस्या नहीं है, हालांकि उन्होंने हिंदुओं को काफ़िर कहे जाने और जिहाद के संबंध में भी अपनी बात आपत्ति व्यक्त की. प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने श्री मोहन भागवत से यह भी कहा कि ‘‘मुसलमानों को जिस तरह से पाकिस्तानी कह कर उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाया जाता है और उनका अपमान किया जाता है वह भी अस्वीकार्य है.’’

मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी श्री मोहन भागवत के साथ अपनी बैठक में यह स्पष्ट किया कि वे उनसे अपने समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदार और फ़िक्रमंद नागरिक के तौर पर मिल रहे हैं और वे चाहते हैं कि यदि कोई ग़लतफ़हमी है तो इसे एक साथ मिलकर हल किया जाना चाहिए.

प्रतिनिधिमंडल की इस बात से सहमत होकर आरएसएस प्रमुख ने बातचीत को बढ़ावा देने के लिए अपनी ओर से चार लोगों को नामित किया है. हालांकि अभी तक दूसरे दौर की बातचीत शुरू नहीं हुई है लेकिन यह एक अच्छी पहल है जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए.

देश में जिस तरह से हालात हैं और जिस तरह से कुछ लोग संघ समर्थक राजनीतिक लोगों की सत्ता में भागीदारी का ग़लत फायदा उठा कर मुसलमानों, ईसाइयों और दलितों को फासीवादी सोच से निशाना बना रहे हैं, हर तरह का अपमान कर रहे हैं, ऐसे वक्त में और कोई रास्ता नहीं कि हम देशवासियों के साथ बातचीत का ऐसा माहौल बनाएं जो इस स्थिति पर क़ाबू पा सकते हैं. हम राजनीतिक और वैचारिक रूप से एक दूसरे से असहमत हो सकते हैं, लेकिन असहमति और दुश्मनी के बीच का अंतर स्पष्ट होना चाहिए.

यह असहमति किसी को किसी को भी इस बात का परमिट नहीं कि वह अल्पसंख्यकों और कमज़ोरों को उत्पीड़ित करे. दाढ़ी, टोपी, नमाज़, मदरसे, मस्जिद और दरगाह सभी को किसी न किसी तरह से निशाना बनाया जाए.

इसलिए कोई न कोई रणनीति बनानी होगी और उसे समझदारी से करना होगा. हम बार-बार दोहराते आए हैं कि यह समय न बहस का है, न वाद-विवाद का, अगर है तो केवल और केवल संवाद का ही है.

मुसलमानों को यह संवाद दो स्तरों पर करना होगा. सबसे पहले, यह संवाद समुदाय के बीच ही होगा, जिसमें हमें यह तय करना होगा कि हम जो एक अल्लाह, एक रसूल, एक किताब और एक हरम में विश्वास रखते हैं, हम अपने न्यायशास्त्र को अपने और अपने समुदाय तक सीमित रखेंगे. और हर समुदाय के हर व्यक्ति को यह आज़ादी होगी कि वह अपनी पसंद के मामलों में अपने विश्वास के अनुसार कार्य करे और हर कोई इसका सम्मान करेगा जैसे कि उन्हें अपनी आस्था और पसंद के अनुसार धर्म का पालन करने का अधिकार है, उसी तरह दूसरों को भी इस बात की आज़ादी होगी.

आज भारत में ही नहीं पूरे विश्व में मुसलमानों को जिस प्रकार बिना किसी भेदभाव के घेरा जा रहा है, हमें याद रखना चाहिए कि हम एक साथ रहकर ही तैरेंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो डूब जाना हमारा मुक़द्दर है.

संवाद का दूसरा चरण यह है कि गांवों, कस्बों और शहरों में अपने देशवासियों के साथ हमारा रिश्ता सेवा और प्रेम पर आधारित होना चाहिए. धार्मिक बहुलवाद के संबंध में हमें यह मानना चाहिए कि यह भारत सहित इस दुनिया में हमारे कारण नहीं है, बल्कि वह सर्वशक्तिमान ख़ुदा की इच्छा और उद्देश्य का परिणाम है, वरना वह सर्वशक्तिमान जिस पर हमारा दृढ़ विश्वास है कि ‘‘इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन क़दीर’’ (अर्थात् अल्लाह सब कुछ करने में सक्षम है) सभी को एक धार्मिक सांचे में ढाल सकता था, लेकिन उसने सभी को अपने मन और विवेक की स्वतंत्रता के साथ जो भी धर्म चाहे उसे चुनने की स्वतंत्रता दी. तो फिर हमें भी उस पर राज़ी होना चाहिए जिस पर हमारा रब राज़ी है.

इस दृढ़ सोच के साथ अगर हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों से बातचीत करें तो कई समस्याएं दूर हो सकती हैं. दूसरे, हमें हिंदू धर्म और भारतीय सभ्यता के बीच स्पष्ट अंतर को ध्यान में रखना चाहिए. हम निश्चित रूप से किसी की पूजा अर्चना का हिस्सा नहीं बन सकते हैं, लेकिन हमें दूसरों के दुख-सुख और ख़ुशी में शामिल होने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए.

श्री मोहन भागवत के साथ बैठक के रूप में जो पहल शुरू हुई है, उसका हम पूरा समर्थन करते हैं और हमें ख़ुशी है कि मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के नेतृत्व में धार्मिक कल्याण के लिए सर्व-धर्म संसद का कार्यक्रम कई जगहों पर आयोजित किया गया उनको अब और भी बड़े स्तर पर सभी धार्मिक समुदायों द्वारा संयुक्त रूप से संगठित किया जाना चाहिए.

क्या कारण है कि हज़रत मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी, हज़रत मौलाना अरशद मदनी, हज़रत मौलाना महमूद मदनी, हज़रत मौलाना असग़र अली इमाम मेहदी सलफ़ी, हज़रत सआदतुल्ला हुसैनी, हज़रत मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी, हज़रत मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ॉं, हज़रत मौलाना कल्बे जव्वाद , प्रोफेसर सैयद अली मुहम्मद नक़वी और उनके जैसे अन्य उल्मा इस सिलसिले को जारी नहीं रख सकते?

 मोहन भागवत से मिलने वाले पांचों बुद्धिजीवियों को भी इस संबंध में प्रयास करना चाहिए कि इस संवाद का दायरा बढ़ाया जाए ताकि हिंदुओं और मुसलमानों का बेहतर प्रतिनिधित्व हो, प्रभावी और सार्थक चर्चा भी हो.

अभी यह कॉलम लिखा जा रहा था कि खबर आई कि आरएसएस प्रमुख गुरुवार को अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष मौलाना उमैर इलियासी से मिलने पहुंचे और उन्होंने मौलाना जमील इलियासी की दरगाह पर हाज़िरी भी दी.

यह निश्चित रूप से एक सकारात्मक क़दम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए लेकिन यह और बेहतर होगा कि श्री मोहन भागवत ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद राबे हसनी नदवी, जो दारुल उलूम नदवतुल उलमा के प्रबंधक भी हैं और अन्य मुस्लिम विद्वान और बुजुर्ग जिनका ऊपर उल्लेख भी किया गया है, उनसे मिलें तो और भी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

लेखक की राय में इस संबंध में डॉ ख़्वाजा इफ़्तिख़ार अहमद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और वह आरएसएस प्रमुख और मुस्लिम नेताओं के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकते हैं. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जो बर्फ़ पिघलनी शुरू हुई है उसके अच्छे परिणाम सामने आने चाहिए और हमारे प्यारे देश में एक बार फिर पिछली गलतियों को भुला कर धार्मिक सद्भावना के साथ एक नए भारत का निर्माण करना चाहिए.

अनेकता में एकता में विश्वास रखते हुए, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रचार में सभी ईमानदारी से भाग लें. क्या ऐसा होगा? इसी का इंतिज़ार है किः

देखिए इस बहर की तह से उछलता है क्या

गुंबद-ए-नीलोफ़री रंग बदलता है क्या

 

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.