लोग मूल्यों की बजाए प्रतीकों और रिवाजों में अटके, इससे बढ़ती है कट्टरताः श्रीश्री

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 25-04-2022
श्री श्री रविशंकर
श्री श्री रविशंकर

 

मेहमान का पन्ना । श्री श्री रविशंकर

अक्सर जो लोग जिम्मेदारी लेते हैं वे प्रार्थना नहीं करते हैं और जो प्रार्थना करते हैं वे जिम्मेदारी नहीं लेते हैं. हर धर्म के तीन पहलू होते हैं- मूल्य, प्रतीक और प्रथाएं. प्रथाओं और प्रतीकों दोनों में विविधता है, जबकि मूल्य सभी धर्मों के लिए समान हैं.

दुनिया में कट्टरता, कट्टरवाद और असहिष्णुता का विकास इसलिए हो रहा है क्योंकि लोग मूल्यों को भूलकर केवल प्रथाओं, प्रतीकों या रीति-रिवाजों में फंस गए हैं.

आत्मा को विविधता पसंद है. इस ग्रह पर केवल एक प्रकार के फल, एक प्रकार के लोग या एक प्रकार के जानवर नहीं हैं. तो आइए भावना को एकरूपता तक सीमित न रखें. आइए उन सभी का सम्मान, सम्मान और प्यार करके सृष्टि में विविधता का आनंद लें.

हम अक्सर 'धार्मिक सहिष्णुता' शब्द का प्रयोग करते रहे हैं. मुझे लगता है कि ये शब्द अब अप्रचलित हो गए हैं. आप केवल वही सहन करते हैं जो आपको पसंद नहीं है. एक-दूसरे के धर्मों को अपना समझकर प्रेम करने का समय आ गया है.

एक धर्म सिर्फ इसलिए महान नहीं है कि वह मेरा है; यह जो है उसके कारण बहुत अच्छा है. यह समझ, जब सभी पुजारियों, पादरियों और लोगों को आध्यात्मिक और धार्मिक प्रकाश में नेतृत्व करने वाले अन्य लोगों में समाहित हो जाती है, तो यह हमारी खूबसूरत दुनिया में चल रही कट्टरता और कट्टरवाद को समाप्त कर देगी.

यह अच्छा होगा यदि, हम सब मिलकर एक संकल्प लें कि हम अपने लोगों को जीवन के बारे में व्यापक दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए प्रत्येक धर्म के बारे में थोड़ी सी समझ बढ़ाने की शिक्षा भी दें.

निःसंदेह, व्यक्ति को अपने धर्म की गहराई में जाना चाहिए; साथ ही आज हर दूसरे धर्म के बारे में समझ होना जरूरी है. ध्यान और सार्वभौमिक भाईचारे के बिना, जो आध्यात्मिकता का सार है, धर्म सिर्फ एक बाहरी आवरण के रूप में रहता है.

मैं अक्सर कहता हूं कि धर्म केले का छिलका है जबकि अध्यात्म असली केला है. हमारी दुनिया का दुख इसलिए है क्योंकि हम सूखी त्वचा को पकड़कर केले को फेंक देते हैं. इसलिए हमें अपने जीवन के आध्यात्मिक पहलू को बढ़ाने की जरूरत है.

अपने भीतर ईश्वर को देखना ही ध्यान है. अपने बगल वाले व्यक्ति में भगवान को देखना सेवा है. सेवा और ध्यान साथ-साथ चलते हैं. पिछली सदी एकरूपता और सम्मिलनों का युग रही है. आइए अब हम एकता के युग की ओर बढ़ते हैं. इन चंद शब्दों के साथ मैं प्रार्थना करता हूं और मैं जिम्मेदारी लेता हूं, दोनों एक ही समय में.

(श्रीश्री रविशंकर आध्यात्मिक गुरु हैं)