बांग्लादेश में नरसंहार, बलात्कार और लूट को अंजाम दिया, पाकिस्तान ने माना

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-11-2021
बांग्लादेश में नरसंहार, बलात्कार और लूट को अंजाम दिया, पाकिस्तान ने माना
बांग्लादेश में नरसंहार, बलात्कार और लूट को अंजाम दिया, पाकिस्तान ने माना

 

साकिब सलीम

‘सैनिक कहते थे कि जब कमांडर खुद बलात्कारी था, तो उन्हें कैसे रोका जा सकता था?’ यह पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल अजीज अहमद खान द्वारा हमूदुर रहमान आयोग के सामने की गई टिप्पणी थी, जिसे 1971में भारतीय सेना के हाथों पाकिस्तानी सेना की मिली करारी शिकस्त के कारणों की जांच के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था.

दिसंबर 1971में नियुक्त तीन सदस्यीय आयोग की अध्यक्षता पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति हमूदुर रहमान ने की थी. रिपोर्ट को दो भागों में प्रस्तुत किया गया था. पहला 90,000पाकिस्तानी युद्ध बंदियों (पीओडब्ल्यू) की रिहाई से पहले तैयार किया गया था और दूसरा 1974 में जारी पीओडब्ल्यू की जांच के बाद तैयार किया गया था.

अपनी सभी खामियों और राजनीतिक उद्देश्यों के साथ इस रिपोर्ट को समझना चाहिए, जिसमें लोगों पर अत्याचार करने के लिए राष्ट्रवाद और धर्म की भाषा का उपयोग किया गया.यह पाकिस्तानी सेना के दमनकारी स्वभाव को उजागर करता है. एक ऐसे राष्ट्र की सेना, जो खुद को इस्लाम का ध्वजवाहक होने का दावा करती है, उसने लाखों बंगाली मुसलमानों को वर्षों तक पूरी बेरहमी से मारा, लूटा और बलात्कार किया. गवाहों के बयान भयावह तस्वीर पेश करते हैं.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सेना की वास्तविक बर्बरता 25और 26मार्च, 1971की रात से शुरू हुई, जब बंगाली नेता मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग और पाकिस्तान सरकार के बीच बातचीत टूट गई. उस रात 1 बजे, जब ढाका विश्वविद्यालय के छात्र अपने छात्रावासों में सो रहे थे, तब सेना ने उन निहत्थे छात्रों पर मोर्टार से हमला किया.

ब्रिगेडियर शाह अब्दुल कासिम ने आयोग को बताया, ‘25मार्च को ढाका में कोई भीषण लड़ाई नहीं लड़ी गई थी. उस रात अत्यधिक बल का प्रयोग किया गया था. सेना के जवानों ने सैन्य अभियान के दौरान बदला और गुस्से के प्रभाव में काम किया.’

लूट

आयोग ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि बंगालियों की दुकानों और घरों को तोड़ा गया और लूटा गया. कमान संभालने के पहले ही दिन लेफ्टिनेंट जनरल निजाई ने अपने सैनिकों से पूछा, ‘मैं राशन की कमी के बारे में क्या सुन रहा हूं? क्या इस देश में गाय-बकरी नहीं हैं ?

यह दुश्मन का इलाका है. आप जो चाहते हैं, वह पाएं. हम बर्मा में यही करते थे.’ मेजर जनरल फरमान अली ने इस बयान को आयोग के सामने सबूत के तौर पर दर्ज किया कि लूट के आदेश ऊपर से थे. लेफ्टिनेंट कर्नल बुखारी ने दावा किया कि सैनिक बंगाली नागरिकों को लूटने के लिए लिखित आदेश मांग रहे थे. लगभग प्रत्येक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी ने स्वीकार किया कि वे लूट, बलात्कार और नरसंहार में शामिल थे. आयोग के सामने वे एक-दूसरे को दोष देते रहे.

नियाजी ने टिक्का खान को यह कहते हुए दोषी ठहराया, ‘सैन्य कार्रवाई के उन शुरुआती दिनों के दौरान हुई क्षति की कभी भी भरपाई नहीं की जा सकती थी, जो सैन्य नेताओं के लिए ‘चंगेज खान’ और ‘पूर्वी पाकिस्तान के कसाई’ जैसे नामों के साथ अर्जित की गई थी.

अपने आदेश के चार दिनों के भीतर, मैंने क्षेत्र में स्थित सभी संरचनाओं को एक पत्र से संबोधित किया और जोर देकर कहा कि लूट, बलात्कार, आगजनी, यादृच्छिक लोगों की हत्या बंद होनी चाहिए और उच्च स्तर का अनुशासन बनाए रखा जाना चाहिए.

मुझे पता चला कि लूटी गई सामग्री पश्चिमी पाकिस्तान को भेजी गई थी, जिसमें कार, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर आदि शामिल थे., दोष को स्थानांतरित करते हुए नियाजी ने स्वीकार किया कि उनकी सेना द्वारा नरसंहार किया गया था. उन्होंने आगे दावा किया कि कई बंगाली सैनिकों या पुलिस कर्मियों का नृशंस कत्ल किया गया. 

बलात्कार

आयोग ने राष्ट्रपति जनरल याह्या खान और लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी सहित पाकिस्तानी अधिकारियों के यौन आचरण पर सवाल उठाए. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सेना के कमांडर युवा लड़कियों और वेश्याओं के शौकीन थे और पाकिस्तान में वेश्यावृत्ति रैकेट चलाने वाले लोगों से हाथ मिलाते थे.

आयोग द्वारा यह नोट किया गया था कि ‘कुछ सबूत हैं, जो बताते हैं कि लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के शब्दों और व्यक्तिगत कार्यों की गणना हत्याओं और बलात्कार को प्रोत्साहित करने के लिए की गई थी.’

मेजर जनरल राव बर्मन अली ने गवाही दी, ‘बलात्कार, लूट, आगजनी, उत्पीड़न, और अपमानजनक व्यवहार (पाकिस्तानी सेना द्वारा) की दर्दनाक दास्तां सामान्य शब्दों में सुनाई गई.’ नियाजी ने यह भी स्वीकार किया कि सेना द्वारा बलात्कार की सूचना उन्हें दी गई थी, लेकिन उसने दावा किया कि उन्होंने बलात्कारियों के खिलाफ कार्रवाई की है.

हमेशा की तरह इस तरह के कार्यों का कोई सबूत नहीं था. आयोग ने चेहरा बचाने के लिए दावा किया कि पाकिस्तानी सेना ने महिलाओं के साथ बलात्कार किया, जबकि मुक्ति वाहिनी राष्ट्रवादी गुरिल्लाओं को दोष देने के लिए अधिक महिलाओं का बलात्कार किया. बाद में यह पाकिस्तानी सेना के युद्ध अपराधों को सफेद करने का एक हताशापूर्ण प्रयास था.

पाकिस्तानी सेना के रवैये के सबसे बेशर्म प्रदर्शन में, नियाजी ने यह स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी कमान के तहत सैनिकों ने महिलाओं के साथ बलात्कार किया. आयोग से कहा कि, ‘ये चीजें तब होती हैं, जब सेना बिखर जाती है.’

नरसंहार

मेजर जनरल हुसैन शाह ने स्वीकार किया, ‘ऐसी अफवाहें थीं कि बंगालियों को बिना मुकदमे के निपटा दिया गया.’ एक अन्य अधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल बुखारी ने गवाही दी, ‘रंगपुर में दो अधिकारियों और 30पुरुषों को बिना मुकदमे के निपटा दिया गया था. ऐसा अन्य स्टेशनों में भी हो सकता है.’ लेफ्टिनेंट कर्नल नईम ने स्वीकार किया कि ‘स्वीप ऑपरेशन के दौरान हमारे (पाकिस्तानी सैनिकों) द्वारा निर्दोष लोगों को मार दिया गया था.’

अधिकारियों ने गवाही दी कि ‘बांग्लादेश भेजा गया’ एक कोड नाम था, जिसका इस्तेमाल सेना द्वारा किसी कथित अवामी लीग या मुक्ति वाहिनी सदस्य को बिना मुकदमे के मारने के लिए किया जाता था. ये नरसंहार बिना किसी विस्तृत आदेश के किए गए थे.

आयोग ने उल्लेख किया कि 27 मार्च, 1971 को कोमिला छावनी नरसंहार में लेफ्टिनेंट जनरल याकूब मलिक ने 17 बंगाली अधिकारियों और 915 गरिकों की हत्या की निगरानी की थी, जो ऐसे कई नरसंहारों में से एक था.

आयोग ने कहा, ‘जनरलों सहित सैनिकों और अधिकारियों के बीच बंगालियों के प्रति घृणा की एक सामान्य भावना थी. हिंदुओं को खत्म करने के मौखिक निर्देश थे.

पाकिस्तानी सेना क्या कर रही थी, इसका अंदाजा लेफ्टिनेंट कर्नल अजीज अहमद खान द्वारा दर्ज बयान से लगाया जा सकता है, ‘ब्रिगेडियर अरबाब ने मुझे जोयदेबपुर में सभी घरों को नष्ट करने के लिए भी कहा था. काफी हद तक मैंने इस आदेश को अंजाम दिया.

जनरल नियाजी ने ठाकुरगांव और बोगरा में मेरी यूनिट का दौरा किया. उन्होंने हमसे पूछा कि हमने कितने हिंदुओं को मारा. मई में, हिंदुओं को मारने का लिखित आदेश था. यह आदेश 23ब्रिगेड के ब्रिगेडियर अब्दुल्ला मलिक का था.’

आयोग ने पाया कि सेना निर्मम तरीके से आगे बढ़ी, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को मार डाला, जला दिया और नष्ट कर दिया. उस समय उच्च पदस्थ बंगालियों का जीवन, संपत्ति और सम्मान भी सुरक्षित नहीं था. अधिकारियों ने गवाही दी कि सेना द्वारा किसी भी व्यक्ति को बिना सबूत के मारा जा सकता है, घरों को लूटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और बंगालियों को उनकी ही मातृभूमि में पराया बना दिया गया.

आयोग ने, हालांकि वास्तविक आंकड़ों को दबाने की बहुत कोशिश की और याह्या और नियाजी जैसे कुछ अधिकारियों को दोष दिया. इस तथ्य को स्वीकार किया कि पाकिस्तान की सेना ने राज्य समर्थित मीडिया और बुद्धिजीवियों के पूर्ण समर्थन के साथ बंगाली लोगों के सबसे खूनी नरसंहार में से एक को अंजाम दिया.

रिपोर्ट पाकिस्तान सरकार का एक दस्तावेज है, जो स्वीकार करती है कि उन्होंने इस्लाम के नाम पर एक बड़ी मुस्लिम आबादी को लूटा, मार डाला और बलात्कार किया. उन्होंने बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों को मारने, महिलाओं के साथ बलात्कार करने और उनके घरों को लूटने के आदेश जारी करते हुए धर्म का नाम लेकर उसका नाम बदनाम किया.

अब समय आ गया है कि आम तौर पर अत्याचारी और विशेष रूप से पाकिस्तान बांग्लादेश की मुक्ति से सबक लेना शुरू कर दें.