अल कायदा की हिंसा से ज्यादा खतरनाक है उसकी कट्टरपंथी विचारधारा?

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 27-02-2021
अल कायदा का हमलावर दस्ता
अल कायदा का हमलावर दस्ता

 

 

अरारात कोस्तानियन

कट्टरपंथी जिहादी विचारधारा और हिंसा ने राजनेताओं, सुरक्षा विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र का ध्यान आकर्षित किया है. यह समझना महत्वपूर्ण होगा कि कट्टरपंथी जिहादी आंदोलन धार्मिक सिद्धांतों की उपज है और यह आंदोलन किसी विशेष धार्मिक, जातीय, भाषाई समूह के ऐतिहासिक उत्पीड़न या शिकार का परिणाम नहीं है.

अलकायदा जैसे कट्टरपंथी समूहों से उत्पन्न हुए खतरों को देखने के दो अलग-अलग तरीके हैं, उनमें एक है परिचालन दृष्टिकोण और दूसरा है वैचारिक दृष्टिकोण.

प्राथमिक खतरा अलकायदा द्वारा आतंकवादी हमले, अपहरण, हत्याएं हैं, जबकि उससे कहीं ज्यादा बड़ा खतरा अल कायदा का कट्टरपंथी फलसफा है.

राजनीति दर्शन के सिद्धांत के तहत, आतंकवाद और अलकायदा की शास्त्रीय समझ प्रासंगिक हो सकती है. राजनीतिक सिद्धांतकार माइकल वाल्जर के अनुसार, आतंकवाद प्रति-हिंसा नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति है. हमास और अर्मेनियाई आतंकवादी समूह असला (एएसएएलए) जैसे जिहादी कट्टरपंथी संगठनों की कार्रवाईयां और हिंसा को अक्सर ‘वैचारिक संगठन’ के बजाय इसे महज ‘घरेलू मुद्दे’ के रूप में गलत समझा जाता है, जबकि ये संगठन वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा हैं.

रणनीतिक जवाबी कार्रवाई विशेषज्ञ डेविड किल्कलेन कहते हैं कि अल कायदा आतंकवादी समूह का उदय और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद नेटवर्क पर इसका प्रभाव, वैश्विक आतंकवाद विरोधी कार्रवाईयों और उपायों के लिए एक गंभीर चुनौती है. वह मानते हैं कि कट्टरपंथी धार्मिक समूहों द्वारा बोए गए वैचारिक बीजों को लोगों के दिमाग से बाहर निकालना मुश्किल है, भले ही हिंसा वाले हिस्से पर अंकुश लगा दिया जाए. यह लेख अल कायदा की विचारधारा पर उनके आतंकी हमलों, आतंकवाद के लिए अल कायदा के इरादों और उनकी विश्वदृष्टि के पीछे के तर्क को दर्शाने पर केंद्रित होगा, जो उनके कार्यों की व्याख्या करेगा.

हिंसा बनाम विचारधारा: जो एक बड़ा खतरा है?

विशेषज्ञों में आतंकवाद की इस तरह व्याख्या की जाती है कि जिसमें लोगों के एक समूह द्वारा निर्दोष लोगों पर हमला किया जाता है. उदाहरण के लिए, विलियम सफायर का उल्लेख है “... छोटे से एक समूह द्वारा भय दिखाकर, समाज को डराने को अपने हथियार के रूप में उपयोग करते हैं, ताकि निर्दोषों की हत्या पर समाज की प्रतिहिंसा हो.” इसी तरह, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी इस शब्द की मुख्य बात कहती है “... जीवन को धमकाने वाली क्रियाओं को, राजनीति से प्रेरित स्व-नियुक्त समूह द्वारा बढ़ावा देना.”

पूरी आबादी दुश्मन और हमले की वस्तु है

इसलिए, यह व्याख्या इस विचारधारा की तुलना में आतंकवादी समूहों की कार्रवाइयों पर ध्यान केंद्रित करती है, जो इस तरह की हिंसा का प्रचार करती है और रक्तपात को उचित ठहराती है. यह सामान्य परिभाषा केवल अल-कायदा के बम विस्फोटों और हताहतों की संख्या को उजागर करती है, जैसा कि 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला या 2001 में पेंटागन पर हमला और 2004 में मैड्रिड में एक ट्रेन पर हमला हो. हालांकि, अल कायदा जैसे आतंकवादी समूह अनावश्यक नुकसान के मुकाबले आम जनता को अपने दुश्मन के रूप में देखते हैं. अल कायदा का प्रत्येक हमला किसी भी सरकार या लोगों के समूह के खिलाफ कारणों से उकसावे से अधिक था: पहला, वाल्जर की व्याख्या से, नागरिकों को अल कायदा द्वारा निर्दोष नहीं, बल्कि लड़ाई के ‘विषय’ माना जाता है. यह बात बिन लादेन के भाषणों से जुड़ी मिलती है, जिनमें वह अमेरिकी सरकार को अपने लोगों का दुश्मन बताता है. दूसरे शब्दों में, अल-कायदा मानता है कि उसके विरोधी की पूरी आबादी दुश्मन और हमले की वस्तु है.

इस्लामिक खलीफा के लिए

इसके अलावा, जैसा कि बराक मेंडेल्सन कहते हैं, “अल कायदा की विचारधारा न केवल विशिष्ट राज्यों की संप्रभुता को चुनौती देती है, बल्कि एक राज्य के कुछ सिद्धांतों और संस्थानों पर भी हमला करती है. अल कायदा राज्यों के अधिकार को अस्वीकार करता है.” अल कायदा आतंकवादियों का एक समूह नहीं है, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है और जो निर्दोष लोगों पर हमला करता है, जिस का लक्ष्य इस्लामिक खलीफा (पूरी दुनिया के मुसलमानों का नेता) स्थापित करना है.

सशस्त्र जिहाद

उदाहरण के लिए, आर्मेनियाई सीक्रेट आर्मी फॉर द लिबरेशन ऑफ आर्मेनिया (एएसएएलए) के आतंकवादी समूहों ने उन तुर्की राजनेताओं पर हमला किया, जिन्होंने आर्मेनियाई नरसंहार से इनकार किया था. कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी समूहों के विपरीत, एएसएएलए का उद्देश्य पूरे तुर्की की आबादी को रोकने के बजाय अपने मुद्दे (अर्मेनियाई मुद्दे) के लिए समर्थन हासिल करना था. एएसएएलए, अर्मेनियाई प्रवासी को तुर्की और उसके सहयोगियों के खिलाफ लड़ाई शुरू करने के लिए उकसाता नहीं है. इसके विपरीत, अल कायदा का वैचारिक खतरा, पश्चिम के खिलाफ सशस्त्र जिहाद के आह्वान को लेकर है. वह मिस्र के इस्लामवादी सैय्यद कुतुब से मिले वैचारिक उद्देश्यों के आधार पर दुनिया भर में उग्रवाद को भड़काने का काम करता है.

कट्टरपंथी संस्करण का प्रचार

अल कायदा की रणनीति में, इस्लाम के कट्टरपंथी संस्करण का प्रचार करते हुए, अरब शासन को उखाड़ फेंकना, जिसे अल कायदा इस्लामिक नहीं मानता, अरब प्रायद्वीप से गैर-विश्वासियों को निकालना, अन्य कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की मदद से दुनिया भर में एक इस्लामी खलीफा स्थापित करना आदि शामिल है. उसका उद्देश्य किसी भी सामाजिक-आर्थिक और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों, जैसे गरीबी और राजनीतिक अधिकार के मुद्दों का समाधाना करना बिल्कुल नहीं है. इसके बजाय, अल कायदा और उसकी शाखाएं, जैसे कि तालिबान और आईएसआईएस, एक दमनकारी इस्लामी शासन के तहत विनम्र आबादी चाहते हैं, जो उनका विरोध न करे. उसका कट्टर कारण राजनीतिक इस्लाम का धर्मांतरण करना है, क्योंकि वह राष्ट्र-राज्य ढांचे के भीतर किसी भी सामाजिक न्याय के लिए लड़ना नहीं चाहते. मुस्लिमों द्वारा शासित भूमि पर फिर से कब्जा करने का यह वैचारिक उद्देश्य हमास, लक्सर-ए-तैयबा और कई अन्य कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी समूहों के लिए बहुत स्पष्ट है.

4,500 जिहादी वेबसाइट

इसके अलावा, अलकायदा की धार्मिक भावना और दुनिया भर के युवा मुसलमानों के मन में आतंक रोपने का खतरा आधुनिक तकनीक, इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के आगमन के साथ बढ़ गया है. अब्देल बारी अटवान ने अल कायदा की रणनीति में इंटरनेट के महत्व और 4,500 जिहादी वेबसाइटों के अस्तित्व का उल्लेख किया है, जो वैचारिक रूप से समान लोगों को एक साथ लाती हैं और विश्वासियों को अविश्वासियों के खिलाफ धार्मिक जिहाद में शामिल होने की वकालत करती हैं.

वैचारिक आधार और समर्थन-तंत्र मजबूत

खतरा न केवल इन आतंकवादी समूहों से होने वाली हिंसा का है, बल्कि कट्टरपंथी विचारधारा का भी है, जो इस्लाम की विकृत कट्टरपंथी व्याख्या है. रोहन गुनारत्ना इसे कहते हैं, “आज, अल कायदा की वास्तविक शक्ति भिन्न समूह हैं, जिनको उसने प्रशिक्षित, वित्तपोषित, सशस्त्र किया है और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कट््टरपंथी विचारधारा दी है. अलकायदा नेटवर्क (अलकायदा समूह तथा इससे संबद्ध समूह) और वैचारिक रूप से संबद्ध सेल्स में ‘अल कायदा आंदोलन’ है, जो आतंकवादी समूह को चलाने वाला उत्प्रेरक तत्व है.” इस लिए पत्रकार किलचुलैन आतंक-विरोध (काउंटर टेररिज्म) के बजाय विद्रोह-विरोध (काउंटर इनसरजेंसी) के महत्व की वकालत करते हैं, क्योंकि अल कायदा समाज के भीतर अच्छी तरह से विकसित हो चुका है और अंदर घुसा बैठा है और इसका वैचारिक आधार और समर्थन-तंत्र मजबूत हैं. हालांकि, पत्रकार का कहना है कि अल कायदा की विचारधारा, इस्लाम की प्रभावी व्याख्या नहीं बन पाई है, उसने कई क्षेत्रों और उसके बहुतेरे अनुयायियों को नहीं छुआ है.

राष्ट्रों को चुनौती

अल कायदा की विचारधारा न केवल मुस्लिम भूमि (देश) में विदेशी उपस्थिति को ‘मुस्लिम दुनिया’ और मुस्लिम जीवन पद्धति पर हमले के रूप में मानती है, वह इस्लामिक गणराज्यों की सरकारों सऊदी अरब, सूडान से लेकर इंडोनेशिया तक को चुनौती भी देती है. उम्मा को एकजुट करने में कट्टरपंथी इस्लामवादी समूह के लिए, राष्ट्रों-राज्यों के ढांचे के भीतर मौजूद राजनीतिक और धार्मिक संरचना बाधा बनती है. अमेरिका की सऊद आर्थिक सहयोग सभा में, क्विंटन विकटोरोविज और जॉन काल्टर ने इसका विरोध किया, “जिहादियों ने सऊदी अरब और मुस्लिम दुनिया के अन्य शासनों पर गैर-इस्लामी व्यवहार करने और स्वधर्म त्यागने का आरोप लगाया और उन्होंने उन्हें सत्ताच्युत करने के लिए जिहाद का आह्वान किया है.” अल कायदा ने सऊदी सरकार को धमकी भी दी है और उसकी शासन करने की वैधता को चुनौती भी दी है. इसी तरह, अल कायदा के कट्टरपंथी सऊदी सरकार से उसके (सऊदी के) इस्लामी दुनिया पर हावी होने के अलग दृष्टिकोण के कारण असहमत थे. उदाहरण के लिए, बिन लादेन ने सऊदी शासन पर केवल अमेरिकी विदेश नीति के विस्तार के रूप में कार्य करने और फिलिस्तीन और इराक में मुस्लिम अधिकारों की रक्षा करने में इस्लामी कारणों की अनदेखी करने का आरोप लगाया.

नतीजतन, अल कायदा ने सऊदी प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग किया, जैसा कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर ने उल्लेख किया है ... “अल कायदा की चरमपंथी विचारधारा, सुन्नी मुस्लिम दुनिया में समर्थकों की एक नई पीढ़ी के बीच अपने नेटवर्क का विस्तार करते हुए और ज्यादा समर्थन प्राप्त कर रही है.” इस प्रकार ऊपर वर्णित विचार और कथन कट्टरपंथी मुस्लिम दुनिया और बाकी लोगों के बीच शीत और गर्म युद्ध के उद्भव को दर्शाते हैं. इसने मुस्लिम बहुसंख्यक राष्ट्रों को हिला दिया. इसी तरह, जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय बढ़ते कट्टरवाद से भयभीत हुए और कट्टरपंथी चरमपंथी आंदोलनों की विचारधारा की निंदा करने के लिए मुस्लिम विद्वानों के साथ मिल-बैठकर एक सत्र आयोजित किया. सऊदी अधिकारियों ने भी कट्टरपंथी विरोधी अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य जनता को शिक्षित करना और कट्टरपंथी विचारधारा से आबादी की रक्षा करना है.

नफरत का कारोबार

कट्टरपंथी इस्लामवादियों की रणनीति मस्जिदों, इंटरनेट, संगठनों में मुस्लिम आबादी को लक्षित करना और धर्म के कट्टरपंथी संस्करण को फैलाने के लिए प्रमुख सामाजिक चेहरों और धार्मिक विद्वानों को नियुक्त करना है. ताकि मुस्लिम आबादी को आधुनिक जीवन और अविश्वासियों से अलग किया जा सके, जो अलकायदा की तरह के चरमपंथी संगठनों के लिए नफरत फैलाने और पश्चिम व गैर-विश्वासियों के खिलाफ हिंसा को उचित ठहराने के लिए एक बाधा हैं. मिसाल के तौर पर, मैड्रिड बम विस्फोट मामले के केंद्र में इस्लामिक कल्चरल सेंटर है, जिसे मस्जिद 30 के नाम से जाना जाता है, जो कट्टरपंथी घृणा और हिंसा फैलाने वाली विचारधारा का प्रसार करती है. इसी तरह, कट्टरपंथियों ने लंदन स्थित बीस्टन की मस्जिद में एक बस्ती बसाई है, जहां जिहाद सिखाया गया था. इसके अलावा, अमेरिका में, कट्टरपंथी धार्मिक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा को फैलाने में एक कवर के रूप में कार्य कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर, अल कायदा, अमेरिका को केवल मुस्लिम राष्ट्रों पर कब्जा करने के कारण ही नहीं, बल्कि कट्टरपंथी विचारधारा के कारण अमेरिका को दुश्मन मानता है, क्योंकि वह जो कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार करता है, जो पश्चिमी संस्कृति से मेल नहीं खाता हैै और इस तरह पश्चिम को इस्लाम का दुश्मन घोषित कर दिया.

मुसलमानों का सामान्य समाज से काटने की कोशिश

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि वास्तविक खतरा इस विचारधारा और उनसे है, जो इस्लाम के कट्टरपंथी चरमपंथी संस्करण की विचारधारा की वकालत कर रहे हैं, उसे सीख रहे हैं और अमल में ला रहे हैं. बुर्का के अधिकार से लेकर हलाल अधिकारों तक, यूरोप में मुसलमानों को वृहद समाज से अलग करने और धर्म-विशिष्ट ऐसे अधिकारों की मांग करने के लिए कट्टरपंथी बनाया गया है, जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ जाते हैं. कट्टरपंथी तत्व मुस्लिम युवाओं को पश्चिम के सांस्कृतिक प्रभाव का विरोध करने और उसे आत्मसात करने से इनकार करने के लिए प्रेरित करते हैं. इस प्रकार, कट्टरपंथियों से मूल खतरा यह है कि वे लक्षित हमलों के बजाय दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में एक कट्टरपंथी इस्लामी पहचान बना रहे हैं. डच जैसे कई यूरोपीय राष्ट्र कट्टरपंथियों की अनदेखी करते हैं, तो वे सुरक्षा संबंधी खतरा महसूस करते हैं. ऐसा करने से मुस्लिम आबादी, वृहद जनसंख्या से अलग हो जाएगी. परिणामस्वरूप जनसांख्यिकीय समस्या खड़ी हो जाएगी. इसके अलावा, बुश प्रशासन में आतंकवाद की इस्लाम से तुलना करने की अंधी-नीति थी और वह मुस्लिम दुनिया के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में असमर्थ रहा. इस कारण से भी अलकायदा और पश्चिमी सभ्यता के बीच संघर्ष की तीव्रता बढ़ी.

अंत में, जैसा कि डेविड किलकुलन ने कहा था, अलकायदा से निपटने में आतंकविरोधी नीति अपर्याप्त होगी, क्योंकि अल कायदा अपनी विचारधारा का इस्तेमाल करता है और जनजातियों के साथ घुल-मिल जाता है, जहां वह सक्रिय होता है. इसलिए, अलकायदा और कई अन्य फ्रिंज-कट्टरपंथी धार्मिक आतंकवादी समूह एक आतंकवादी समूह की पारंपरिक परिभाषा में फिट नहीं होते हैं. ऐसे समूहों से निपटने के लिए, अधिकारियों को विचारधारा को चुनौती देनी चाहिए और समाज को कट्टरपंथी धार्मिक समूहों के खतरों के बारे में सूचित करना चाहिए.

(अरारत कोस्टानियन मध्य पूर्वी अध्ययन और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने आर्मेनिया के विदेश मंत्रालय के तुर्की विभाग में विशेषज्ञ के रूप में काम किया है और वर्तमान में इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज, नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑफ आर्मेनिया में जूनियर फेलो और पीएचडी उम्मीदवार के रूप में काम करते हैं.)