सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद योगी सरकार ने सीएए विरोधी नोटिस वापस लिया

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-02-2022
योगी सरकार ने सीएए विरोधी नोटिस वापस लिया
योगी सरकार ने सीएए विरोधी नोटिस वापस लिया

 

आवाज द वाॅयस /लखनऊ
 
सुप्रीम कोर्ट के कड़ी आपत्ति के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को हर्जाना वसूलने के लिए भेजे गए नोटिस को वापस ले लिया है.पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ दिसंबर 2019 के विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों की संपत्तियों को जब्त करने को लेकर भेजे गए नोटिस को गैरवाजिब बताया था.

कोर्ट ने यहां तक चेतावनी दी थी कि सरकार नोटिस वापस लेती है या वह इस काम को करे.अब एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने नुकसान की वसूली के लिए नोटिस वापस ले लिया है.‘‘
 
अधिकारियों के अनुसार, विभिन्न जिलों में रिकवरी क्लेम ट्रिब्यूनल का नेतृत्व करने वाले अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) ने नुकसान की वसूली के लिए 274 नोटिस जारी किए थे. लखनऊ में प्रदर्शनकारियों को भेजे गए 95 नोटिस भी इसमें शामिल है.
 
11 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया. कोर्ट ने कहा, “आप शिकायतकर्ता बन गए,  साक्षी हो गए हो. आप अभियोजक बन गए हैं... और फिर आप लोगों की संपत्तियां कुर्क करते हैं. क्या किसी कानून के तहत इसकी अनुमति है ?” न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने राज्य सरकार के कानूनी अधिकार को लेकर सवाल पूछे थे.
 
पहले के एक मामले में, शीर्ष अदालत ने 2009 में कहा था कि नुकसान की गणना करने और सार्वजनिक संपत्ति के विनाश की जांच करने की शक्ति का प्रयोग या तो एक सेवारत या सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश द्वारा दावा आयुक्त के रूप में किया जाना है.
 
बता दें कि  दिसंबर 2019 में कुछ जगहों पर सीएए के विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए थे. कुछ प्रदर्शनकारियों ने लखनऊ सहित कई शहरों में सार्वजनिक संपत्ति में कथित रूप से तोड़फोड़ की और आग लगा दी थी.
 
पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा,राज्य सरकार ने मोहम्मद शुजाउद्दीन बनाम यूपी राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2011 के फैसले पर भरोसा करते हुए क्षतिग्रस्त संपत्तियों की लागत की वसूली के लिए नोटिस जारी किया. हालाँकि, इस दौरान 2009 में और बाद में 2018 में जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की अनदेखी गई.
 
उन्होंने कहा,‘‘अगर राज्य सरकार ने नोटिस वापस लेने का फैसला किया है, तो यह एक स्वागत योग्य कदम है. लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में ऐसा किया है. ”a