कैसे होता है भारत में राष्ट्रपति का चुनाव, जानिए पूरी प्रक्रिया

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 17-06-2022
संसद भवन
संसद भवन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं है कि एनडीए, यूपीए और गैर-एनडीए, गैर-यूपीए दलों की तरफ से कौन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे. क्या प्रत्याशी सर्वानुमति से तय होगा या फिर विपक्षी दल अपनी तरफ से कोई उम्मीदवार उतारेंगे. हालांकि, राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता है, जिसके संवैधानिक भाषा में समानुपातिक निर्वाचन कहा जाता है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे सत्तापक्ष और विपक्ष के हिस्से में लोकप्रिय मतों के प्रतिशत की ओर इशारा करता है.

लेकिन यह सवाल अहम होता है कि आखिर राष्ट्रपति का चुनाव किस तरह से होता है. नागरिक शास्त्र की किताबों में या राजव्यवस्था के बारे में लिखी किताबों में इसका वर्णन काफी जटिल होता है. आइए हम उसे सरल भाषा में समझने की कोशिश करते हैं.

राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी महत्वपूर्ण तारीखें.

देश के 16वें राष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना 15 जून को जारी की गई हैं. और राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 18 जुली को होगा. अगर जरूरत हुई तो वोटों की गिनती का काम 21 जुलाई को होगा. अगर सर्वानुमति से एकमात्र प्रत्याशी चुनावी मैदान में रहे तो मतो की गिनती के जरूरत नहीं होगी. मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है.

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया

राष्ट्रपति पद के निर्वाचन की प्रक्रिया का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 54 में है. भारत में जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके द्वारा चुने गए जन-प्रतिनिधि राष्ट्रपति को चुनते हैं. इसलिए इसे परोक्ष निर्वाचन कहा जाता है.

राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों द्वारा किया जाता है. इस इलेक्टोरल कॉलेज में संसद के दोनों सदनों, राज्यसभा और लोकसभा के निर्वाचित सदस्य होते हैं. इसके साथ ही, इसमें सभी राज्यों के विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य यानी विधायक भी मतदाता होते हैं. इसके साथ ही, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पुदुच्चेरि केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा के सदस्य भी मतदाता होते हैं.

इसका मतलब है कि राज्यसभा और लोकसभा के मनोनीत सदस्य, विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में वोटर नहीं होते हैं.

लेकिन क्या विधानसभा सदस्यों और लोकसभा सदस्यों के वोटों का मूल्य बराबर होता है? नहीं. सांसदों और विधायकों के वोट का मूल्य उनके राज्य की आबादी, यानी जहां से वह निर्वाचित हुए हैं, उस राज्य की आबादी के अनुपात में कम-ज्यादा होता है.

राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशी हर कोई नहीं बन सकता है. राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कोई तबी बन सकता है यदि उसके नाम का प्रस्ताव 50 सांसद करें और अन्य 50 इस प्रस्ताव का समर्थन करें.

राष्ट्रपति का चुनाव संसद में और राज्यों की विधानसभा के परिसर में आयोजित किया जाता है. मतदान गुप्त मतपत्रों के जरिए होता है. समानुपातिक प्रतिनिधित्व (जो राष्ट्रपति चुनाव के लिए किया जाता है) में एकल हस्तांतरणीय मत पद्धति का प्रयोग किया जाता है. इसका मतलब है कि मतपत्र पर दो कॉलम बने होते हैं. पहले कॉलम में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नाम लिखे होते हैं और दूसरे कॉलम में प्राथमिकता या प्रीफरेंस डालना होता है.

हालांकि, मतदाता वोट तो एक ही देता है लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर वोट दे सकता है. यानी मतपत्र पर वह यह बताता है कि राष्ट्रपति पद के लिए उसकी पहली, दूसरी, तीसरी पसंद कौन है.

यदि अधिक उम्मीदवार होते हैं और कड़े मुकाबले में पहली पसंद वाले मतों से विजेता का फैसला नहीं हो सके, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह गिना जाता है. इसलिए इस पद्धति को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है.

इस बार का नंबर गेम

अभी भारत के निर्वाचक मंडल में 4,809 वोटर हैं, जिनमें 776 सांसद हैं और 4,033 विधायक हैं. इन मतों का कुल मूल्य 10,86,431 है. और इस व्यवस्था में किसी भी प्रत्याशी को कम से कम 5,43,216 वोट लाने होंगे.

मिसाल के तौर पर पिछली बार यानी 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में एनडीएन के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने विपक्ष की साझा उम्मीदवार मीरा कुमार को हराया था. तब उन्हें कुल 10,69,358 मतों में से 7,02,000 वोट मिले थे जबकि मीरा कुमार को 3,67,000 वोट मिले थे.