समी अहमद / रांचीै.
सादिक अंसारी और उनकी बीवी आमना बीवी अपनी ’आठ माह की बेटी’ सुनीता कुमारी और ’नये दामाद’ उपेन्द्र कोरवा की आवभगत में लगे हैं. यह रिश्ता बना है झारखंड के गढ़वा जिले में. और इस रिश्ते में भागीदार बनी है पूरी पंचायत.
इससे पहले कि आप यह सोचें कि आठ माह की लड़की की शादी कैसे हो सकती है तो बता दें कि सुनीता की उम्र 18 साल से अधिक है. तो यह बेटी आठ माह की कैसे हुई ? इसके आगे की दास्तान कुछ यूं हैः
सदिक अंसारी झारखंड के गढ़वा जिले के भवनाथपुर प्रखंड की मकरी पंचायत के बगही टोला के रहने वाले हैं. एक कच्चे मकान में रहते हैं. सीमेंट की बोरियों से बने थैला-झोला बेचकर घर चलाते हैं. वैसे, तो अपनी एक बेटी और दो बेटों को ब्याह चुके थे, लेकिन हाल में उन्होंने सुनीता कुमारी का शादी की तो न सिर्फ अब उनकी बेटियां दो हो गयीं बल्कि दामाद भी दो हो गये.
सादिक के गांव से 40 किलोमीटर दूर इस जिले के धुरखी प्रखंड की रहने वाली सुनीता कुमारी जनजातीय परिवार से आती हैं, लेकिन उनके सिर से उनके मां-बाप का साया उठा चुका है. कुछ दिनों तक दादा ने पाला-पोसा लेकिन वे भी नहीं रहे. सुनीता की दुनिया में अपना कोई नहीं बचा तो वह मांग कर रहने को मजबूर हो गयीं.
एक दिन मांगते-मांगते और काम खोजते सुनीता पहुंचीं सादिक के दरवाजे पर और तब से वही दरवाजा ही उनका घर बन गया. सुनीता कभी-कभी ईंट भट्ठे पर भी काम करती थीं. सादिक ने सुनीता के हाल पर पसीजकर अपने घर में पनाह दी. सुनीता को सादिक में अपने पिता मिल गये और अकेले रह रहे सादिक को एक बेटी मिल गयी.
आठ महीने बाद सादिक को सुनीता के एक लड़का मिल गया. वह भी इसी प्रखंड के बिरसानगर टोला से. शिवशंकर कोरवा के पुत्र उपेन्द्र कोरवा. उपेन्द्र कोरवा भी मेहनत-मजदूरी करते हैं.जब यह रिश्ता तय हुआ तो यह भी तय हुआ कि शादी सुनीता के पारंपरिक रीति रिवाज से होगी.
गांव के रामसेवक राम अपनी पत्नी के साथ कन्यादान के लिए तैयार हुए. शादी की तारीख छह जुलाई तय पायी. बारात आयी. पुरोहित अभिमन्यू मिश्रा के मंत्रोच्चार के साथ विवाह की प्रक्रिया पूरी हुई.इस शादी में गांव के काफी लोग शामिल हुए.
सबने अपने अपने हिसाब से मदद की. इस शादी में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता लालू राम ने कहा कि हम सादिक अंसारी के हौसले को सलाम करते हैं जिन्होंने खुद गरीब रहते हुए एक गरीब-अनाथ युवती को शरण दी. इस शादी कराने में मदद कर गांव वालों ने भी अपनी सदाशयता का परिचय दिया.
सादिक अंसारी से फोन पर बात करना हमारे लिए बहुत मुश्किल था, क्योंकि उनके पास मोबाइल फोन नहीं है. इस काम में हमारी मदद की गांव के सामाजिक कार्यकर्ता ललन राम ने. उन्होंने हमारी बात सादिक और पूरे परिवार से करवाई.
सुनीता की नयी मां आमना बीवी कहती हैं कि जब से यह बेटी आयी हम दोनों घर का काम साथ-साथ करते थे. आज नयी बेटी और नये दामाद दोनों हमारे घर पर हैं तो हमें बहुत खुशी हो रही है. सुनीता कुमारी ने कहा कि बहुत बढ़िया लग रहा है क्योंकि पहले मेरा कोई नहीं बचा था, अब मां’-बाप और पति भी मिल गये. सुनीता के पति उपेन्द्र कहा कि उन्हें इस घर में बहुत सम्मान मिला है.