इस्लाम धर्म शादीशुदा मुस्लिम को लिव-इन रिलेशनशिप की इजाजत नहीं देता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-05-2024
 Allahabad High Court
Allahabad High Court

 

लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 'लिव-इन रिलेशन' को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया है. पीठ ने कहा है कि इस्लाम धर्म के मानने वाले व्यक्ति को पत्नी के जिंदा रहते लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार नहीं है.

पीठ ने बुधवार को कहा, "इस्लामिक मत इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई मुस्लिम व्यक्ति अपने निकाह के बने रहते दूसरी महिला के साथ रहे. यदि दो व्यक्ति अविवाहित हैं और वयस्क हैं तो वह अपने तरीके से अपना जीवन जीना चुनते हैं."

न्यायमूर्ति एआर मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने यह आदेश बहराइच जिले के मूल निवासी याचिकाकर्ता स्नेहा देवी और शादीशुदा मुस्लिम व्यक्ति मुहम्मद शादाब खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया.

याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और लिव-इन रिलेशन में रहने के दौरान सुरक्षा की मांग की थी. हालांकि, कोर्ट ने सुरक्षा देने से इनकार कर दिया.

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे लिव-इन रिलेशनशिप में थे. लेकिन लड़की के माता-पिता ने शादाब खान के खिलाफ अपहरण और उनकी बेटी को उससे शादी करने के लिए प्रेरित करने की एफआईआर दर्ज कराई.

याचिकाकर्ताओं ने पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि वे वयस्क हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, वे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वतंत्र हैं.

पूछताछ में पीठ को पता चला कि खान की पहले ही साल 2020 में फरीदा खातून से शादी हो चुकी थी और उनकी एक बेटी भी है. इस तथ्य पर विचार करते हुए अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर उन्हें पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया. इसके बजाय पीठ ने कहा कि इस्लाम धर्म ऐसे रिश्ते की इजाजत नहीं देता, खासकर मौजूदा मामले की परिस्थितियों में.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रूढ़ियां और प्रथाएं भी विधि के समान हैं. संविधान का आर्टिकल 21 ऐसे रिश्ते के अधिकार को मान्यता नहीं देता जो रूढ़ियों व प्रथाओं से प्रतिबंधित हो. इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता स्नेहा देवी को सुरक्षा में उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए.

 

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