कैबिनेट ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कम्प्यूटरीकरण को दी मंजूरी, 13 करोड़ किसानों को होगा फायदा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 30-06-2022
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

कैबिनेट ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कम्प्यूटरीकरण को मंजूरी दे दी है. इससे 13 करोड़ किसानों को होगा फायदा होगा. कुल 2516 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ 63,000 कार्यरत पैक्स को कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा. इन 13 करोड़ किसानोंमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं. यह कदम पारदर्शिता एवं दक्षता लाएगा, विश्वसनीयता बढ़ाएगा और प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को पंचायत स्तर पर नोडल सेवा वितरण बिंदु बनने में मदद करेगा.

आंकड़ों का संग्रहण, साइबर सुरक्षा, हार्डवेयर, मौजूदा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, रख-रखाव एवं प्रशिक्षण के साथ– साथ क्लाउड आधारित एकीकृत सॉफ्टवेयर इस परियोजना के मुख्य घटक हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्‍डलीय समिति ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) की दक्षता बढ़ाने तथा उनके संचालन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने और पैक्स को अपने व्यवसाय में विविधता लाने व विभिन्न गतिविधियां/सेवाएं शुरू करने की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के कम्प्यूटरीकरण को मंजूरी दे दी है.

इस परियोजना में कुल 2,516 करोड़ रुपये का बजट परिव्ययतय किया है. इस रकम में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 1,528 करोड़ रुपये की होगी. इस राशि को पांच वर्षोंमें खर्च किया जाएगा और इसमें 63,000 मौजूदा कामकाजी पैक्स के कम्प्यूटरीकरण का प्रस्ताव है.

प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समितियां (पैक्स) देश में अल्पकालिक सहकारी ऋण (एसटीसीसी) की त्रि-स्तरीय व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर अपनी भूमिका निभाती हैं, जहां लगभग 13 करोड़ किसान इसके सदस्य के रूप में शामिल हैं और जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित होती हैं.

गौरतलब, देश में सभी संस्थाओं द्वारा दिए गए केसीसी ऋणों में पैक्स का हिस्सा 41 प्रतिशत (3.01 करोड़ किसान) है और पैक्स के माध्यम से इन केसीसी ऋणों में से 95 प्रतिशत (2.95 करोड़ किसान) छोटे और सीमांत किसानों को दिए गए हैं.

अन्य दो स्तरों यानी राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी) और जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को पहले ही नाबार्ड ने स्वचालित कर दिया है और उन्हें साझा बैंकिंग सॉफ्टवेयर (सीबीएस) के तहत ला दिया गया है.

हालांकि, अधिकांश पैक्स को अब तक कम्प्यूटरीकृत नहीं किया गया है और वे अभी भी मैनुअली काम कर रहे हैं, नतीजा यह है कि उनके संचालन में अक्षमता और भरोसे की कमी दिखाई देती है.

गौरतलब है कि गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सभी पैक्स को कम्प्यूटरीकृत करने और उनके रोजमर्रा के कामकाज के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा मंच पर लाने और एक सामान्य लेखा प्रणाली (सीएएस) के तहत रखने का प्रस्ताव किया था.

इससे किसानों, खासतौर पर छोटे और सीमांत किसानों को दी जाने वाली सेवाओं की आपूर्ति को मजबूत करने के अलावा, पैक्स का कम्प्यूटरीकरण विभिन्न सेवाओं और उर्वरकों, बीज जैसे इनपुट के लिए नोडल सेवा केंद्र बन जाएगा.

यह परियोजना ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण को बेहतर बनाने के अलावा बैंकिंग गतिविधियों के साथ-साथ गैर-बैंकिंग गतिविधियों के केन्द्र के रूप में पैक्स की पहुंच को बेहतर बनाने में मदद करेगी.

इस परियोजना में साइबर सुरक्षा एवं आंकड़ों के संग्रहण के साथ-साथ क्लाउड आधारित साझा सॉफ्टवेयर का विकास, पैक्स को हार्डवेयर संबंधी सहायता प्रदान करना, रख-रखाव संबंधी सहायता एवं प्रशिक्षण सहित मौजूदा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण शामिल है. यह सॉफ्टवेयर स्थानीय भाषा में होगा जिसमें राज्यों की जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करने संबंधी लचीलापन होगा.