बाबा मखदूम शाह का मेलाः मुंबई पुलिस की सलामी से क्यों शुरू होता है मेला?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 10-12-2022
मुंबई पुलिस की सलामी से क्यों शुरू होता है मेला?
मुंबई पुलिस की सलामी से क्यों शुरू होता है मेला?

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / मुंबई-नई दिल्ली

मुंबई की इस दरगाह पर पहले पुलिस सलामी देती है - जहां वर्दीधारी पुरुष खड़े होते हैं - जो दरगाह पर चंदन चढ़ाते हैं - पुलिस की सलामी और दरगाह पर बैंड संगीत के बाद दस दिवसीय मेले की शुरुआत है. जी हाँ! मुंबई में माहिम बीच पर स्थित विश्वविख्यात सूफी हजरत मखदूम फकीह अली महामी का सालाना मेला होता है, जिसे उर्स अल बिलाद के नाम से जाना जाता है. कोरोना वायरस के दो साल बाद पारंपरिक उत्साह के साथ इसकी शुरुआत हुई है.

खास बात यह है कि यहां मुंबई पुलिस की ओर से पहला संदल यानी चंदन पेश किया जताा है, जिसके बाद मेले का उत्सव शुरू होता है. इसके लिए मुंबई पुलिस ने गुरुवार की शाम पूरी तैयारी के साथ दरगाह को सलामी दी. मुंबई में, मखदूम बाबा को पुलिस के बाबा के रूप में भी जाना जाता है. मुंबई पुलिस उनका बहुत सम्मान करती है. इसलिए पारंपरिक रूप से पुलिस द्वारा पहला चंदन भेंट किया जाता है. उसके बाद अस्ताना मखदूम को चंदन चढ़ता है. मुंबई और आसपास के क्षेत्रों की 500 से अधिक चंदन समितियां अस्ताना मखदूम को चंदन और प्रसाद चढ़ाती हैं.

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बता दें कि यह महोत्सव 8 दिसंबर से 17 दिसंबर तक चलेगा, इस संबंध में मुंबई पुलिस और दरगाह कमेटी ने एक संयुक्त बैठक में सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद अपनी तैयारी पूरी कर ली थी. कोरोना पाबंदियां हटने के बाद मुंबई में 600 साल पुराना मेला शान से लग रहा है.

माहिम दरगाह के मैनेजिंग ट्रस्टी सोहेल खंडवानी ने आवाज-द वॉयस को बताया कि खुदा का शुक्र है कि कोरोना वायरस से निजात मिल गई. जिसके चलते दो साल बाद माहिम में पारंपरिक उत्साह के साथ महोत्सव आयोजित किया जा रहा है. इस त्योहार का उद्देश्य है अस्ताना मखदूम में पुलिस का चढ़ावा भक्ति है. यह मखदूम फकीह अली महामी का त्योहार है, इसे उर्स से जोड़ना गलत है. हर साल पुलिस अस्ताना मखदूम को सम्मान देने के लिए चंदन पेश करती है और बाबा मखदूम को पुलिस ड्रम की धुन पर पारंपरिक सलामी देती है, जो काफी लोकप्रिय भी है.

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उन्होंने कहा है कि चंदन समितियों के साथ-साथ पुलिस भी चंदन पेश करती है, लेकिन पुलिस की शान यह है कि सबसे पहले वह चंदन भेंट करती है, इसके बाद अन्य चंदन समितियां अपना चंदन पेश करती हैं. यह प्राचीन परंपरा है.

पुलिस की भक्ति के पीछे की कहानियां

पुलिस को चंदन पेश करने का पहला मौका देने के पीछे अलग-अलग मत हैं. कुछ लोगों का कहना है कि बाबा मखदूम शाह पुलिसकर्मियों के काफी करीबी थे और अक्सर अपराधियों को पकड़ने में पुलिसकर्मियों की मदद करते थे. कुछ लोगों का कहना है कि बाबा के आखिरी दिनों में एक फौजी ने उन्हें पानी पिलाया था.

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वहीं कुछ लोगों का कहना है कि 1980 में जब मुंबई में दंगे हुए थे, तब तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने यहां आकर साम्प्रदायिक सौहार्द की कसम खाई थी और दंगे कुछ ही घंटों में खत्म हो गए थे. तभी से उर्स शुरू होने के बाद सबसे पहले यह विशेष सम्मान पुलिस कर्मियों को दिया जाता है.

माहिम में उर्स के अवसर पर माहिम के समुद्र तट पर एक बड़ा उत्सव होता है. इस मेले में झूलों के अलावा लजीज खाने का लुत्फ उठा सकते हैं. भक्तजन फकीर की समाधि पर फूल और इत्र चढ़ाते हैं.

मखदूम बाबा का परिवार और वंश

मखदूम महामी का नाम अलाउद्दीन और अली है. अक्सर ये नाम सिर्फ अली लिखा है. कुनियत अबुलअल हसन है और लकब जैनुद्दीन है. पारो खानदान से ताल्लुक रखने की बिना पर आपके नाम का हिस्सा भी पारो हो गया. पिता का नाम शेख अहमद था और वह कोकण के धनी व्यापारियों में से एक थे, जबकि माता का नाम फातिमा बिन्त नखदा हुसैन अंकोलिया था, जो एक धनी परिवार से ताल्लुक रखती थीं और उनके पिता (यानी मखदूम माही के दादा) को मलिक अल-तज्जर कहा जाता था.

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मखदूम महामी के परिवार को नायत या नवैत कहा जाता है, जो वास्तव में नवैत का विकृत रूप है. नवैत जनजाति के कुछ व्यापारी मदीना से आए और कोकण क्षेत्र (मुंबई) में बस गए थे. एक रात माँ ने खुदा की बारगाह में दुआ की, जो कुबूल हुई और भोर में मखदूम महिमी हमेशा की तरह समुन्दर के किनारे टहलने निकले, तो देखा कि किनारे पर पड़ी एक ऊँची चट्टान पर एक रौशनी एक संत की आकृति उनके पास आ रही थी. आपने सलाम किया. बूढ़े ने अभिवादन का उत्तर दिया और बहुत मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर आया. उन्होंने कहा कि अगर आपको ज्ञान प्राप्त करने में रुचि है, तो रोज सुबह यहां आएं, हम आपको इल्म देंगे. लंबी यात्रा करके आप जो प्राप्त करना चाहते हैं, वह आपको यहां मिलेगा, खुदा ने चाहा तो, क्योंकि मैं खिद्र हूं. अल्लाह ने मुझे तुम्हारी शिक्षा के लिए यहां भेजा है और इस रहस्य को किसी पर प्रकट मत करो.

इसलिए वह रोज सुबह फज्र की नमाज के बाद उस जगह जाने लगे और हजरत खिज्र से ज्ञान प्राप्त करने लगा. कुछ दिन बीतने के बाद तार्किक और मूर्त बातों का ज्ञान पूर्ण हो गया और एक दिन संयोग से माँ ने पूछ ही लिया कि तुम प्रतिदिन किससे ज्ञान लेने जाते हो, क्योंकि मैंने सुना है कि तुम प्रतिदिन समुद्र के किनारे जाते हो. उन्होंने उनके जवाब पर विचार किया और फिर इसे कुफ्र समझकर कहा कि मुझे हजरत खिज्र से ज्ञान मिलता है.

इबादत और रियाजत

मखदूम महिमी की इबादत और तपस्या के अलावा जौकी शाह साहब ने लिखा है कि, ‘‘तुम्हें बहुत दिनों से एकांत और गुमनामी का जीवन अच्छा लगा. लेकिन आपके ज्ञान, कृपा और आपकी बाहरी और आंतरिक सिद्धियों व चमत्कार, जो आपसे प्रकट हुए, उन्होंने सिद्ध बना दिया.’’

मौलाना मुहम्मद बाकिर ने अपनी पुस्तक नफीहुत अल-अंब्रिय्या में अपनी विशेषताओं का उल्लेख किया और लिखा, ‘‘आप तर्क और सिमुलेशन के विज्ञान में अंत तक पहुंच गए हैं और अस्तित्व के एकेश्वरवाद के सर्वोच्च स्मारक और तारिकत के विज्ञान और आत्म-निरीक्षण और स्वयं अवलोकन में पूर्णता तक पहुंच गए हैं.