पिंकी ब्यूटी पार्लर : एक मार्मिक ड्रामा

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-04-2023
पिंकी ब्यूटी पार्लर : एक मार्मिक ड्रामा
पिंकी ब्यूटी पार्लर : एक मार्मिक ड्रामा

 

अवधि: 111 मिनट.

लेखक और निर्देशक: अक्षय सिंह

कलाकार: सुलगना पाणिग्रही, जोगी मल्लंग, विश्वनाथ चटर्जी, अक्षय सिंह, अनुपमा नेगी, संगम राय, अर्पिता बनर्जी,

फिल्म: पिंकी ब्यूटी पार्लर (14 अप्रैल को रिलीज होगी).

छायांकन: गगनदीप सिंह

संगीत: अरविंद/लिटन और चिंटू सार्थक कल्ला ( रेटिंग : चार स्टार)

बेहतर दृष्टि के लिए आंख का ऑपरेशन हो सकता है, लेकिन बेहतर नजरिए के लिए नहीं। यह एक विशेष फिल्म है जो सांवली युवतियों की दुर्दशा को उजागर करती है, जिनके रंग को लेकर उनका उपहास कर उन्हें उत्पीड़ित और अपमानित किया जाता है.

सांवले लोगों का देश होने के बावजूद भारत में गोरेपन का जुनून सवार है. गोरे होने, गोरे रंग के व्यक्ति से शादी करने या यहां तक कि गोरे के बच्चे पैदा करने की हमारे देश की अभूतपूर्व होड़ उल्लेखनीय है और इस प्रक्रिया में हम उन सभी को हाशिए पर डाल देते हैं जो सांवले या काले हैं.

यह फिल्म दो बहनों पिंकी (सुलगना पाणिग्रही) और बुलबुल (खुशबू गुप्ता) कहानी है . एक गोरी है और दूसरी सांवली. पिंकी, जो गोरी है, सुंदर और वांछनीय होने के कारण परिपूर्ण है, लेकिन वह बुरी, बेपरवाह, ईष्यार्लु और नीच है.

दूसरी ओर, उसकी सांवली बहन (बुलबुल) जिम्मेदार, ख्याल रखने वाली, परोपकारी और कई मानकों का पालन करने वाली है. फिल्म का केंद्र बिन्दु वाराणसी में लंका नामक स्थान है, जहां बुलबुल अपना ब्यूटी पार्लर चलाती है.

उसके माता-पिता का निधन हो चुका है. वह खुद प्रतिष्ठान चलाती है, कर्मचारियों को रोजी-रोटी देते है, सामाजिक दबाव को झेलती है. यहां तक कि अपनी बहन के करियर में भी वह उसकी मदद कर रही है. लेकिन उसके लिए जीवन आसान नहीं है.

'अवांछनीय' होने का दबाव बुलबुल पर भारी पड़ जाता है, और एक दिन जब उसकी बहन घर लौटती है और एक ऐसी चीज चुरा लेती है जिसकी वह वास्तव में परवाह करती है, तो वह फांसी लगा लेती है.

गोरे रंग का जुनून, जो हमारे समाज में भीतर तक निहित है, और यह लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करता है, हो सकता है यह हम सभी जानते हैं, लेकिन हमें इसके बारे में पता नहीं है. यह फिल्म इसी बात को उजागर करती है.

इस फिल्म की कहानी और पटकथा इसकी जान है जिसमें बेहतरीन अभिनय के कारण सरल प्रवाह है. फिल्म में कई समानांतर ट्रैक हैं, लेकिन ये इतनी आसानी से मिल जाते हैं कि यह बिल्कुल सहज लगता है.

फिर भी, फिल्म आपको रुककर आत्ममंथन करने पर विवश करती है कि हमने अपनी जिंदगी में कभी न कभी जो किया है या कहा है वह गलत है. यह उन युवा महिलाओं और पुरुषों को जरूर देखनी चाहिए जो क्रीम, पार्लर, इलाज और न जाने क्या-क्या करके गोरेपन के पीछे भागते रहते हैं.

अच्छा दिखने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन अगर आपका दिल अच्छा नहीं है तो यह सब व्यर्थ है.