नई दिल्ली
बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण इन दिनों मातृत्व अवकाश के चलते अपने काम के घंटों को सीमित करने के फैसले को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने तय किया कि वे अब केवल आठ घंटे ही शूटिंग करेंगी, और इसी फैसले के बाद उन्हें 'स्पिरिट' और 'कल्कि 2898 एडी' (सीक्वल) जैसी बड़ी फिल्मों से बाहर कर दिया गया।
इस फैसले के बाद से उन पर 'गैर-पेशेवर' होने के आरोप लगाए जा रहे हैं। हालांकि लंबे समय तक चुप रहने के बाद अब दीपिका ने इस पूरे मामले पर खुलकर अपनी बात रखी है। उन्होंने न केवल अपने अनुभव साझा किए, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में फैले दोगले रवैये और पितृसत्तात्मक सोच पर भी सवाल उठाए।
एक इंटरव्यू में दीपिका ने कहा,"किसी महिला को लेबल करना और उसके फैसलों पर तंज कसना बहुत आसान है। लेकिन चाहे कोई कुछ भी कहे, मैं अपने फैसले से पीछे नहीं हटूंगी। मैं आठ घंटे ही काम करूंगी। लोगों को जो कहना है कहने दो।"
उन्होंने आगे कहा कि बॉलीवुड में बहुत से कलाकार ऐसे हैं जो खुद कभी आठ घंटे से अधिक काम नहीं करते, सप्ताहांत पर शूटिंग नहीं करते, लेकिन उन पर कभी कोई सवाल नहीं उठाता और ना ही कोई तंज कसा जाता है।
दीपिका ने इंडस्ट्री की व्यवस्था पर भी निशाना साधते हुए कहा,"हम भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को 'उद्योग' तो कहते हैं, लेकिन अब तक इसे पेशेवर रूप से संगठित नहीं कर पाए हैं। यहां आज भी काफी असंगठन है।"
अपनी निजी शैली के बारे में बात करते हुए दीपिका ने कहा,"मैं आमतौर पर बहुत कम बोलती हूं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं चुप हूं। मैं अपनी लड़ाई चुपचाप लड़ना पसंद करती हूं।"
इस बयान के साथ दीपिका ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वे सिर्फ एक मजबूत अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि एक मजबूत सोच रखने वाली महिला भी हैं, जो अपने अधिकारों के लिए डटकर खड़ी होती हैं—चाहे वो कितनी भी आलोचना झेलें।