अमीर खुसरो के जमाने से वसंत पंचमी पर सज रहीं हैं सूफी दरगाहें

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 13-02-2024
Sufi shrines are being decorated on Vasant Panchami since the time of Amir Khusro
Sufi shrines are being decorated on Vasant Panchami since the time of Amir Khusro

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
आज बसंत मना ले सुहागिन...ख्वाजा मोइनुद्दीन के दर आ जाती है बसंत... आदि मशहूर कलाम बसंत पंचमी पर सूफी संत अमीर खुसरो की याद में गाए जाते हैं. ज्ञान, विद्या, कला और वाणी की देवी सरस्वती माता को पूजने के लिए बसंत पंचमी मनाई जाती है.
 
इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. यह दिन देवी सरस्वती के प्रकटोत्वस के रूप में भी मनाया जाता है. सरस्वती पूजा का उत्सव केवल भारत में ही नहीं बल्कि, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और अन्य कई देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है.
 
इसके अलावा देश के अन्य सूफी संत की दरगाहों पर भी बसंत पंचमी की रौनक देखने को मिलती है. मुस्लिम समुदाय भी बसंत पंचमी का पर्व धूमधाम से मनाते हैं.  
 
बसंत पंचमी एक समधर्मी उत्सव 
 
दरगाह को बसंत पर ताजे सरसों के फूलों से लेकर सरसों की पगड़ी, अंगरखे और सैश तक चढ़ाए जाते हैं. जो एक सद्भाव, प्रेम और एक त्यौहार का जश्न है. किंवदंती है कि दरगाह पर सरसों के फूलों, पूरबी बोली में गाने और कव्वालियों के साथ बसंत पंचमी का जश्न निज़ामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो के जीवन की एक घटना से जुड़ा है.
 

निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी धूमधाम से मनाई जाती है
 
देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी धूमधाम से मनाई जाती है. क्या आप जानते हैं हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में बसंत पंचमी मनाए जाने की परंपरा 900 साल पुरानी है.
 
माना जाता है कि हजरत निजामुद्दीन को कोई संतान नहीं थी. उन्हें अपने भांजे ख्वाजा तकीउद्दीन नूंह से भी खूब लगाव था. लेकिन दुर्भाग्यवश बीमारी के कारण तकीउद्दीन की मृत्यु हो गई. इस घटना से हजरत निजामुद्दीन को बहुत गहरा सदमा लगा और वे दुखी रहे लगे.
 
 
अमीर खुसरो के जमाने से वसंत पंचमी
हमारी संवाददाता अमीना माजिद को चिश्तिया निजामीया मिशन के प्रेसिडेंट काशी बाबा ने बताया कि हजरत निजामुद्दीन के कई अनुयायियों में अमीर खुसरो भी एक थे.
 
हजरत अमीर खुसरो ने गुरु-शिष्य (मुर्शिद-मुरीद) परंपरा को नया आयाम दिया. भांजे की मृत्यु से हजरत निजामुद्दीन दुखी रहने लगे थे. तब उनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए अमीर खुसरो इसका समाधान ढूंढने लगे. 
 
 
चिश्तिया निजामीया मिशन के प्रेसिडेंट काशी बाबा

एक दिन गांव की महिलाएं पीली साड़ी पहने, सरसों के फूल लिए और गीत गाते हुए चली जा रही थीं. तब महिलाओं की खुशी देखकर खुसरो ने उनसे इसका कारण पूछा.
 
महिलाओं ने कहा कि वे अपने भगवान को खुश करने के लिए पीले फूल चढ़ाने के लिए मंदिर जा रही हैं, तब खुसरो ने उनसे पूछा, क्या इससे भगवान खुश हो जाएंगे?
 
महिलाओं ने कहा 'हां', इसी के साथ खुसरों को हजरत निजामुद्दीन के चेहरे पर मुस्कान लाने का एक नया आईडिया मिल गया. उन्होंने पीला घाघरा पहना , गले में ढोलक डाली और हाथों में पीले फूल लेकर 'सकल बन फूल रही सरसों' गीत गाते हुए हजरत निजामुद्दीन के पास पहुंच गए.और तभी से बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है.
 
इस बार भी कव्वाल ढोलक लेकर आएंगे और पीले सरसों के फूल को दरगाह पर चढ़ाएंगे और बसंत पंचमी के गीत और कलाम पेश करेंगे.
 
 
अजमेर दरगाह में भी बसंत
 
अजमेर दरगाह में भी बसंत पेश करने की यह परंपरा करीब 900 साल पुरानी बताई जाती है. इस मुबारक मौके पर दरगाह में पीले रंग के फूलों से आकर्षक सजावट देखने को मिलेगी. दरगाह आने वाला हर शख्स पीले रंग की पोशाक और पीली पगड़ी पहने दिखाई देगा. 
 
इस साल 14 फरवरी को बासंती फूल मजार शरीफ पर पेश किए जाएंगे. पीले रंग के लिबास पहने सूफी कव्वाल और उनके साथी हाथों में पीले फूल लिए सूफी संत अमीर खुसरो के गीत भी जाती हैं.
 
आज बसंत मना ले सुहागिन.., ख्वाजा मोइनुद्दीन के दर आ जाती है बसंत.., और नाजो अदा से झूमना, ख्वाजा की चौखट चूमना.. जैसे बासंती कलाम पेश भी इसमें शामिल होंगें.
 
लाहौर में बसंत पंचमी
 
पाकिस्तान में कई जगह, लेकिन लाहौर में खास तौर पर यह त्योहार सदियों से मनता आ रहा है. लाहौर में, बसंत पंचमी को ‘बसंत’ के नाम से जाना जाता है. लाहौर में बसंत पंचमी का त्योहार ‘मेला चिमन’ के नाम से भी मकबूल है. यह त्योहार इस कदीमी शहर के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह वीर हकीकत राय की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने 1719 में मुगल शासक के खिलाफ लड़ाई में अपना बलिदान दे दिया था.
 
 
लाहौर में बसंत पंचमी का इतिहास
 
बसंत पंचमी, लाहौर में एक अनोखी छटा बिखेरती है, जिसमें मुस्लिम समुदाय बसंत पंचमी में सक्रिय रूप से भाग लेता है. लाहौर के मुस्लिम इस दिन के लिए पीले रंग के वस्त्रों का चुनाव करते हैं.
 
अधिकांश मुस्लिम समुदाय भी बसंत पंचमी में पीले कपड़ों में नजर आते हैं. पीला रंग वसंत ऋतु, खुशी और उल्लास का प्रतीक है. यह रंग सूर्य की ऊर्जा और जीवनदायिनी शक्ति का भी प्रतीक है.
 
वे मिठाइयां बांटते हैं और पतंगबाजी का आनंद लेते हैं. बसंत पंचमी पर लाहौर पर पतंगों के पेचे लड़ते हैं और शहर का पूरा आसमान पंतगों से भरा हुआ होता है. क्या तो बच्चे, बूढ़े और जवान, सभी पतंग के हुड़दंग में सरोबोर नजर आते हैं.
 
इनपुट: अमीना माजिद
 
फोटोः गौरह वानी