साकिब सलीम
1951 में वह बड़ा ही खास दिन था, जब भारतीय फिल्म उद्योग के शोमैन राज कपूर ने 'जब दिल ही टूट गया' फेम गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी (असरार उल हसन खान) से संपर्क किया, तो उन्हें 'दुनिया बनने वाले क्या तेरे मन माई' शब्दों के साथ एक गीत लिखने के लिए कहा.
राज कपूर ने अग्रिम के तौर पर उन्हे उसी वक्त एक हजार रुपये का भुगतान किया. भुगतान की गई राशि प्रचलित दरों से लगभग चार गुना थी और गीत को अभी तक किसी भी फिल्म में प्रदर्शित नहीं किया जाना था. फिर राज कपूर ने एक कविता के लिए इतनी ऊंची कीमत क्यों चुकाई जो कपूर के किसी काम की नहीं थी?
बाद में मजरूह ने याद करते हुए कभी बताया था कि उस समय उसकी पत्नी एक बच्चे की उम्मीद कर रही थी और वह पुलिस से बचकर भाग रहे थे. इस तरह कपूर ने मजरूह की इस तरह मदद की कि मजरूह का स्वाभिमान बरकरार रहे.
लेकिन रुकिए, भारतीय फिल्मों के बेहतरीन गीतकारों में से एक मजरूह पुलिस से क्यों भागे? उसका अपराध क्या था? उनका अपराध हड़ताल के दौरान मजदूरों के अधिकारों के लिए खड़ा होना था. मुंबई (तब बॉम्बे) में मजदूर संघ के मंच से एक रैली में मजरूह ने एक कविता सुनाई:
अमन का झंडा है धरती पे
किसने कहा लहराने न पाए
ये भी कोई हिटलर का है चेला,
मार ले साथी, जाने न पाए!
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू
मार ले साथी जाने न पाए!
कोई आश्चर्य नहीं, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आलोचना के लिए मजरूह सुल्तानपुरी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था. यह जानकारी पाते ही मजरूह भूमिगत हो गए. उनको पैसों की सख्त जरूरत थी क्योंकि उसकी पत्नी फिरदौस गर्भवती थी. उस समय राज कपूर बचाव में आए और उन्हें 1000 रुपये का भुगतान किया ताकि वह अपनी पत्नी की देखभाल कर सकें.
मजरूह को गिरफ्तार नहीं किया गया होता अगर वह फैज अहमद फैज और सज्जाद जहीर की गिरफ्तारी के विरोध में आयोजित एक जनसभा में एक और कविता पढ़ने के लिए नहीं गए होते. उन्हें मंच से गिरफ्तार कर लिया गया, माफी मांगने के लिए कहा गया, जो उन्होंने नहीं किया और एक साल के लिए आर्थर रोड जेल में बंद कर दिया. उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई थी लेकिन 1952 के आम चुनावों से एक साल पहले रिहा कर दिया गया था.