दयाराम / फरीदाबाद (हरियाणा)
हरियाणा का ऐतिहासिक जिला पलवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों को संजोए हुए हैं. इस जयंती पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पलवल से जुड़ी 103 वर्ष पुरानी यादें तरोताजा हो गई हैं. पलवल के रेलवे स्टेशन से ब्रिटिश सरकार ने 10 अप्रैल 1919 को वाया अमृतसर लाहौर जाते वक्त महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया था.
इतिहासकारों के मुताबिक दमनकारी रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह करने पर गांधी जी की यह गिरफ्तारी की गई. ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी से पहले उन्हें अरेस्ट वारंट भी दिया, लेकिन गांधी जी ने वारंट लेने से इंकार कर दिया. राजनीतिक रूप से यह गांधी की पहली गिरफ्तारी बताई जाती थी.
ब्रिटिश सरकार गांधी की गिरफ्तारी से देश भर में को रहे आंदोलन को खत्म करना चाहती थी, लेकिन उनकी गिरफ्तारी से पंजाब प्रदेश जल उठा.
दरअसल उस समय पलवल गुरुग्राम जिला में होता था और यह जिला पंजाब प्रांत के अधीन ही आता था. सरकार ने स्वाधीनता आंदोलन को कुचलने के लिए भरसक प्रयास किया था.
6 अप्रैल को हुई हड़ताल पूरे देश में विशेषकर तत्कालीन पंजाब में बेहद सफल रही थी. महात्मा गांधी हड़ताल के बाद के हालात का जायजा लेने के लिए ही मुंबई से लाहौर रवाना हुए थे.
गांधी जी के प्रवास की खबर सुनकर ब्रिटिश सरकार ने घबराकर उनके पंजाब में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी, बावजूद इसके महात्मा गांधी ने इस पाबंदी को अनदेखा कर दिया और मुंबई से ट्रेन में सवार होकर लाहौर के लिए रवाना हो गए. जैसे ही गांधी जी की ट्रेन पलवल रेलवे स्टेशन पहुंचे, तभी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
उनकी इस गिरफ्तारी से पंजाब प्रांत में जगह-जगह जुलूस धरने प्रदर्शन व रैलियां शुरू हो गई. लोगों के धरना प्रदर्शन के भय से ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को यहां से जाकर मुंबई में रिहा कर दिया
स्वाधीनता सेनानियों ने महात्मा गांधी की यादगार में पलवल में वर्ष 1938 में गांधी आश्रम बनाया. इसे लेकर पलवल में एक बड़ी पंचायत का आयोजन किया गया, जिसमें गांधी की यादगार में इस गांधी आश्रम की स्थापना कराए जाने का निर्णय लिया.
इस पंचायत ने यह भी निर्णय लिया गया कि इस आश्रम की नींव किसी देशभक्त के हाथों रखवाई जाए. प्रधान देवी चरन मंगला के मुताबिक उस समय तत्कालीन विधायक रूपलाल मेहता की भावनाएं भी आजादी से जुड़ी थीं.
उन्होंने नेहरू जी से संपर्क कर आजादी के महान सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस से समय लिया. बताया जाता है कि उस समय पलवल का बाजार छोटा ही थी, जिस जमीन पर यह यह आश्रम बनाया गया, उसके चारों ओर जंगल ही जंगल था.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के पहुंचने पर उस समय पूरे बाजार में कालीन बिछाई गई तथा घोड़ों पर सवारी निकालकर उनका गाजे बाजे के साथ स्वागत किया. उनके हाथों इस आश्रम की आधारशिला रखवाई गई, जो एक गौरव की बात हैं.
पलवल आश्रम के प्रधान देवीचरण मंगला ने बताया कि इस आश्रम की नींव 2 अक्टूबर 1938 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने हाथों से रखी थी. यह आश्रम आज भी महात्मा गांधी आश्रम के नाम से जाना जाता है.
संग्रहालय में गांधी की यादों को ताजा करने के लिए एक प्रदर्शनी बनाई हुई है. जिसको समय-समय पर स्कूली बच्चों को दिखाकर पलवल के इस ऐतिहासिक दिन की याद को ताजा किया जाता है गांधी जयंती हो या पुण्यतिथि गांधी जी को यहां याद अवश्य किया जाता है.
तस्वीरों से यादें हो रही है तरोताजा
संग्रहालय में महात्मा गांधी के जन्म से लेकर अंतिम दर्शनों तक की तस्वीरें मौजूद हैं. इनमें सुबह सैर करने से लेकर, सत्याग्रह करने, गोलमेज कॉन्फ्रेंस, जलियाबाला बाग की दिल दहलाने वाली तस्वीरों के अलावा आजाद हिंद फौज के साथ, आजादी की पहली लड़ाई का उल्लेख समय अनेकों ऐतिहासिक चित्र व.ब्योरा मौजूद है, जिन्हें देख वतन के आजादी के लिए किए गए बलिदान की याद तरोताजा हो रही हैं.
दिल्ली-मथुरा रेल खंड पर पलवल से 8 किलोमीटर असावटी रेलवे स्टेशन से भी महात्मा गांधी की यादें जुड़ी हुई हैं. गांव के लोगों की मानें, तो महात्मा गांधी को असावटी में ही ट्रेन से नीचे उतारा था. पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तारी दिखाई गई थी. उनकी याद में भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने स्वयं इस गांव में पहुंचकर गांधी घर की आधारशिला रखी थी.
गांव के बुजुर्ग 86 वर्षीय रघुनंदन वत्स ने बताया कि गांव में बने गांधी घर की आधारशिला स्वयं भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी. उस समय वह भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे. उस समय सड़क का रास्ता नहीं था.
इसके चलते उन्हें भारी सुरक्षा के बीच हाईवे पर गदपुरी के समीप से गुजर रहे रजवाहा की पटरी से होकर असावटी गांव लाया गया. उनकी तैयारी में कई दिनों तक रजवाहा की पटरी को ईटों से मजबूत किया, ताकि राष्ट्रपति की गाड़ियां आसानी से गांव तक पहुंच सके. उनके यहां पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया.
इस गांधी घर के बनने के बाद यहां पर पंजाब की संस्था गांधी स्मारक निधि की ओर से चरखा सिखाने का काम शुरू किया. इस काम में ग्राम सेवकों ने अहम योगदान दिया. उस समय लोगों के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था.
ऐसे में महिलाएं चरखा सीखने के बाद कपास से सूत बनाने का काम करते थे. इस सूत से कपड़ा तैयार किया जाता था, जिसे खादी भंडारों में भेज दिया जाता था.
इस बदले सूत बनाने पर कुछ लोग पैसा ले लेते थे, तो कुछ कपड़ा खरीद लेते थे. उस समय गांधी घर में खादी भंडार की दुकान भी खोली गई थी. बाद में वहां स्वास्थ्य सुविधा के उद्देश्य से डिस्पेंसरी की सुविधा प्रदान की गई.
सरकार को चाहिए कि इस ऐतिहासिक धरोहर पर गांधी जयंती पर मेला लगाया जाना चाहिए, ताकि युवाओं को ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में ज्ञान मिल सके. गांव के एडव