यूनुस अल्वी / नूंह ( हरियाणा )
देश-दुनिया के अन्य हिस्से के मुकाबले तब्लीगी जमात से हरियाणा के मेवात क्षेत्र और यहां के लोगों का अधिक जुड़ाव है. इसकी ठोस वजह है. मुसलमानों को अल्लाह की राह पर चलने की नसीहत देने की शुरुआत तब्लीगी जमात ने हरियाणा के इसी सरजमीन से की थी.
इस मिशन को बढ़ाने में शुरूआत से अब तक मेवात वासी पूरी तन्मयता से लगे हैैं. जाहिर है ऐसे में सऊदी अरब के मौजूदा रुख से देश-दुनिया के मुकाबले मेवात के लोग कुछ ज्यादा खफा हैं. बातचीत में वह सऊदी अरब की पॉलिसी और इजरायल से उसके प्रगाढ़ होते संबंध पर भी सवाल उठाते हैं.
तब्लीगी जमात के संस्थापक मौलाना मोहम्मद इलियास ने 1926bमें दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह के नजदीक छप्पर वाली मस्जिद (मौजूदा तबलीगी जमात का मरकज) में इसकी स्थापना की थी. मौलाना इलियास ने सबसे पहले तब्लीग जमात से मेवातियों को जोड़ा.
इलियास साहब की कई निशानियां भी मौजूद हैं. तब तब्लीगी जमात के 8से 20सदस्य मेवात के गावों की मस्जिदों और मदरसों में जाकर ठहरते थे और आसपास रहने वाले मुसलमानों को मजहबी तौर पर रहने, नमाज-रोजा, अखलाक, पाकी-नापाकी हलाल-हराम आदि के बारे में बताते थे. पूरे मेवात में आज भी यही माहौल है.
मेवात ही नहीं ड्रेसिंग सेंस, व्यक्तिगत व्यवहार और रोजा-नमाज को लेकर तब्लीगी जमात के दुनियाभर में आज करीब 40करोड़ अनुयायी हैं. सऊदी अरब के इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉ अब्दुल लतीफ अल अल शेख ने मस्जिदों के इमामों और मस्जिदों को निर्देश दिया है कि जुमा की नमाज तब्लीगी जमात और दावा (दावत) (दोनों का संयुक्त नाम ‘अल अहबाब) से लोगों को सचेत करें.
मंत्री डॉ. अब्दुल लतीफ ने कहा इमाम इनकी गड़बड़ियां को बिदअत के साथ बताएं कि ये कुछ कहें मगर आतंकवाद फैलाने वाला यह पहला दरवाजा है. इस संबंध में इस्लामी मामलों के मंत्रालय की ओर से चार निर्देश दिए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं-
-इस समूह के पथभ्रष्टता, विचलन और खतरे की घोषणा और यह कि आतंकवाद के द्वारों में से एक है. भले ही वे कुछ दावा कहें.
-उनकी प्रमुख गलतियों का उल्लेख करें.
-समाज के लिए उनके खतरे का उल्लेख करें.
-यह कथन कि सऊदी अरब साम्राज्य में (तब्लीगी और दावा समूह) सहित पक्षपातपूर्ण समूहों के साथ संबद्धता निषिद्ध हैं.
छवि खराब करने की कोशिश
जमीयत उलेमा-ए-मुत्ताहिदा पंजाब के नाजिम-ए-आला और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति के सदस्य तथा मेवात के रहने वाले मौलाना मुहम्मद यहिया करीमी कहते हैं,’’ जमीयत उलेमा-ए-हिंद तब्लीगी जमात की छवि को साफ रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.
तब्लीगी जमात के खिलाफ सऊदी अरब की ओर से जारी बयान दुनिया में इसकी छवि खराब करने की कोशिश है. इससे साफ है कि सऊदी हुकूमत तब्लीगी जमात के बारे में सच्चाई नहीं जानती.
यौम-उल-तब्लीग वा-दावा
जमीयत उलेमा-ए-मुत्ताहिदा पंजाब के नाजिम-ए-अला और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति के सदस्य मौलाना मोहम्मद याहया करीमी का कहना है कि जमीयत उलेमा-ए-मुत्ताहिदा पंजाब क्षेत्र के सभी मस्जिदों के इमामों और उलेमा ए इकराम से अगले जुमा को यौम-उल-तब्लीग वा-दावा के नाम से मनाने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि सऊदी अरब के मंत्री तब्लीगी जमात के इतिहास और बलिदानों का अध्ययन करें. तब्लीगी जमात की गतिविधियों के बारे में लोगों को बताएं. यह शांति, व्यवस्था,प्यार और स्नेह से भरे लोग हैं.
प्रतिबंध 1980 में भी लगा था
तब्लीगी जमात से जुड़े नूूंह के मुफ्ती जाहिद हुसैन ने कहा कि सऊदी अरब की यह हरकत कोई पहली नहीं है. वह 1980में भी ऐसे प्रतिबंध लगा चुकी है. हमें उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. हमें अपनी ईमानदारी, लगन, दीन और देश प्रेम के साथ तब्लीग का कार्य आगे बढ़ाते रहना चाहिए. तब्लीगी जमात सियासत और दुनिया की बातों से परे है. इससे जुड़े लोग केवल मुसलमानों को दीन की बातें सीखते हैं.
आरोप है बेबुनियाद
मौलाना साबिर कासमी मेवाती ने कहा कि इस्लामी दुनिया खासकर सऊदी अरब का यहूदियों से करीबी रिश्तों बनने के बाद तेजी से बदलाव आया है. इन देशों में गैर इस्लामिक कार्यशैली बढ़ी है.उन्होंने कहा सऊदी अरब द्वारा किसी जमात पर पाबंदी लगाना नई बात नहीं.
कार ए नबूवत को बेगर्ज और बेलौस हो कर अंजाम देने वाली तब्लीगी जमात सीधे सादे तरीके से, खामोशी से इस्लाम धर्म के शांति संदेशों का प्रचार कर रही है. दुनिया में इस्लाम धर्म और इसके पैगंबर की फिक्रो को लेकर फिरने वाली जमात पर आतंकवाद जैसे आरोप को बढ़ावा देने और अन्य घिनौने इल्जाम के बहाने पाबंदी लगाना न केवल निंदनीय है. इस्लाम की रुह के खिलाफ भी है.
उन्होंने कहा कि सऊदी अरब के इस तरह के बयान से भारतीय मुस्लिमों की जहां परेशानी में इजाफा होने का अंदेशा है, वहीं विश्व स्तर पर तब्लीगी जमात को निशाना बनाने का सऊदी अरब ने इस्लाम फोबिया से ग्रस्त लोगों को अवसर दे दिया है.
उन्होंने कहा कि अब से पहले भी सऊदी हुकूमत की गैर इस्लामी नीतियों और कार्यशैली के विरोधी हजारों हक परस्त उलेमा-ए-इकराम सलाखों के पीछे धकेले जा चुके हैं . कइयों को फांसी के तख्ते तक पहुंचा दिया गया. भूतकाल में इस्लामी इंकलाब की प्रतीक बना-इख़्वानुल मुस्लिमीन समेत बहुत से उलेमा-ए-इकराम की किताबों पर पाबंदी शाह सलमान की डिक्टेटरशिप को दर्शाती है.
सऊदी अरब ने खिलाफत से बादशाहत तक सफर तय किया और अब बादशाहत से डिक्टेटरशिप (तानाशाही) की तरफ गतिशील है.उन्होंने बताया, आतंकवाद एक नाकाबिल-ए-माफी जुर्म है. इसके वास्तविक जिम्मेदार सुपर पावर्स हैं, लेकिन झूठे इल्जाम लगाना भी इस जुर्म से कम नहीं.
यकीनन सऊदी अरब इस्लामी हुदूद (सजाओं) पर अमल करने वाला अकेला देश रहा है. हज जैसी इबादत के लिए उनके द्वारा दी गई सुविधाएं काबिल-ए-तारीफ हैं, लेकिन अब उनकी इस्लाम विरोधी पॉलिसी चिंता का विषय बनी हुई है. यहां तक कि इमाम-ए-काबा भी वही खुतबा देते हैं जो हुकूमत द्वारा थमाया जाता है.
उनके मुताबिक, आलम-ए-इस्लाम में धूमिल होती सऊदी अरब की छवि खुद उसके नकारात्मक रवैये का परिणाम है. सऊदी हुकूमत की इजहार-ए-राय की आजादी में वही पॉलिसी है जो हमारे देश में कट्टरपंथियों की है.
उन्होंने कहा सऊदी अरब मंत्री के निर्देशन में कहीं भी यह नहीं लिखा कि सऊदी अरब सरकार ने तब्लीगी जमात को प्रतिबंधित कर दिया है. हालांकि सऊदी सरकार ने तब्लीगी जमात को आतंकवाद का द्वार जरूर बताया है, लेकिन उसे प्रतिबंधित करने का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए यह कहना कि सऊदी सरकार ने तब्लीगी जमात को प्रतिबंधित कर दिया है, भ्रामक है.