मशीनों से गढ़ी जाने लगीं फिरोजाबादी चूड़ियां, बढ़े रोजगार के अवसर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-01-2021
सुहाग की निशानियांः फिरोजाबाद की कांच की चूड़ियां
सुहाग की निशानियांः फिरोजाबाद की कांच की चूड़ियां

 

गौस सिवानी/ नई दिल्ली

उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद जिला चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है. ये चूड़ियां भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों तक पहुंचती हैं. इसी तरह, राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी कांच की चूड़ियां बनाई जाती हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों की चूड़ियां फिरोजाबाद के नाम से बेची जाती हैं. फिरोजाबाद चूड़ियों का वैश्विक केंद्र बन गया है. चूड़ियों का उपयोग भारत और भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों में किया जाता है, लेकिन अब चूड़ियों का फैशन पश्चिमी देशों में भी अपनाया जा रहा है. इसकी आपूर्ति विदेशों में भी की जा रही है, जिससे भारत में रोजगार के अवसर बढे़ हैं.

बेहतर कारोबार की उम्मीद

अन्य लोगों की तरह, फिरोजाबाद के व्यवसायी कोरोना काल में परेशान थे. अब उनका काम बढ़ रहा है. प्रमुख व्यवसायी अहमद सिद्दीकी का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से देश में त्यौहारों का मौसम है. यह काम के दबाव का समय है. काम में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन बहुत ज्यादा काम नहीं हुआ है. ट्रेनें बंद हैं और अन्य क्षेत्रों में माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है. उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में सुधार होगा. 

चूड़ी निर्माण का मशीनीकरण

वक्त के साथ, चूड़ी बनाने का पुराना तरीका भी बदल रहा है. चूड़ियों की वेल्डिंग शुरू में लकड़ी और कोयले के स्टोव के साथ की गई थी. तीन दशक पहले इस काम में प्राकृतिक गैस का उपयोग  किया जाने लगा था. अब इसके लिए एक मशीन आ रही है. उम्मीद की जा रही है  कि इससे चूड़ियों की गुणवत्ता में सुधार होगा. और जल्द ही काम बढ़ेगा. फिरोजाबाद में लाख की बनी चूड़ियों की पहली फैक्ट्री 1920 में रुस्तम उस्ताद ने शुरू की थी. तब से यह काम दिन-रात आगे बढ़ा है. वर्तमान में, लाखों लोग इस उद्योग में शामिल हैं. उनमें अधिकांश मुस्लिम हैं.

लेकिन जब मशीन से काम की बात आती है, तो पुराने कारीगर डरते हैं कि उनकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. वे नहीं जानते कि मशीन को कैसे चलाना है. हालांकि द ग्लास इंडस्ट्रियल सिंडिकेट के अध्यक्ष ललितेश जैन कहते हैं, "मशीन द्वारा वेल्डिंग करने से कोई कारीगर बेरोजगार नहीं होगा. केवल पुराने कारीगरों को प्रशिक्षित किया जाएगा."

जैन को उम्मीद है कि इससे चूड़ी की लागत में कमी आएगी और गुणवत्ता में सुधार होगा. 

फिरोजाबाद से मुरादाबाद तक

फिरोजाबाद की लाख की चूड़ियां प्रसिद्ध हैं. अब यह पेशा अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी रोजगार दे रहा है. उदाहरण के लिए, मुरादाबाद पीतल के बर्तनों के लिए जाना जाता है, लेकिन जिले के कई गांव अब लाख की चूड़ियाँ बना रहे हैं. विशेष रूप से ऐसे समय में, जब कई लोगों ने कोरोनाकाल में अपनी नौकरी खो दी है. उनके लिए चूड़ी उद्योग रोजगार का एक स्रोत बन गया है.

मुरादाबाद के कंदराकी ब्लॉक में कई परिवारों की आजीविका अब चूड़ियों पर निर्भर है. यहां रहने वाली तबस्सुम का पति इन दिनों बेरोजगार है. ऐसे में तबस्सुम ने लाख की चूड़ियां बनानी शुरू कर दीं. अब वह इतना अच्छा कमा रही हैं कि वह आराम से जीविकोपार्जन कर सकती हैं.

भंडाली गांव में लगभग ढाई सौ परिवार वर्तमान में चूड़ी उद्योग में काम कर रहे हैं. इन परिवारों की महिलाएं अपने घरों में काम करती हैं. उन्हें कहीं भी नहीं जाना पड़ता है और घर का खर्च भी चल जाता है. एक परिवार घर पर रहकर रोजाना 500 से 700 रुपए कमाता है. इस आय का श्रेय महिलाओं को जाता है. चूड़ियों का काम करने वाली महिलाओं के लिए कच्चा माल फिरोजाबाद से आता है. अब कंदरकी इलाके में कच्चे माल की दुकानें भी खुल रही हैं.

सस्ता गहना हैं चूड़ियां

भारत में आभूषण प्राचीन काल से प्रचलन में हैं. चूड़ियों को दुनिया का सबसे पुराना और सस्ता आभूषण होने का गौरव प्राप्त है. कोई नहीं जानता कि चूड़ियों का इतिहास कितना पुराना है, लेकिन उनकी प्राचीनता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चूड़ियों को मोहनजोदारो और हड़प्पा की खुदाई में भी पाया गया था. तब चूड़ियां कांच से नहीं, पत्थर, सीपों और मिट्टी से बनाई जाती थीं. मिट्टी की चूड़ियों को भट्ठी में पकाया जाता था. कुछ क्षेत्रों में त्रिकोणीय और चौकोर चूड़ियां भी बनाई जाती थीं.

सिर्फ गहना नहीं चूड़ियां  

चूड़ियां गहना भर नहीं हैं. ये सुहाग की निशानी भी हैं. प्राचीन संस्कृत साहित्य में षोडश श्रृंगार की गणना वल्लभदेव की सुभाषितावली (15वीं सदी या 12वीं सदी) में पहली बार आती है.

हिंदू ब्याहताएं अन्य आभूषणों के अलावा जरूरी तौर पर चूड़ियां भी पहनती है. चूड़ियां दांपत्य जीवन में इतनी अनिवार्य परंपरा हैं कि किसी महिला के विधवा होने पर अन्य महिलाएं उसके मस्तक से सिंदूर मिटाने के साथ चूड़ियां भी तोड़ती हैं. इसके अलावा भारतीय उप-महाद्वीप के दूसरे हिस्सों में भी चूड़ियों के आकर्षण ने धर्म की सीमाओं को बहुत पहले लांघ दिया था. इसीलिए चूड़ियों की परंपरा हिंदुओं के साथ मुस्लिम, जैन, सिख, बौद्ध आदि धर्मावलंबियों में भी दिखती है.

ऐसे बनती हैं चूड़ियां   

कांच को चूड़ी होने में कई चरणों से गुजरना पड़ता है. इसमें बहुत सारे मजदूर शामिल होते. विशेष रूप से इस काम में गृहणियों और बच्चों के कार्य बल का उपयोग होता है. न केवल नए कांच का उपयोग इसमें किया जाता है, बल्कि चूड़ियां पुराने ग्लास से भी बनाई जाती हैं.

कांच, सोडा ऐश, रेतीली मिट्टी के टुकड़े 1000 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर एक भट्टी में पिघलाए जाते हैं. अलग-अलग रंगत के लिए कांच में रंग भी मिलाया जाता है. फिर घोल को ठंडा होने से पहले विशेष सांचों में ढाला जाता है. इस तरह विभिन्न आकारों की चूड़ियां बनाई जाती हैं. फिर इन चूड़ियों को रंगा जाता है और वे सुंदर और सजीव हो जाती हैं.