(पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष)
फ़िरदौस ख़ान
पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के 'परि' और 'आवरण' से मिलकर बना है यानी जो हमें चारों तरफ़ से घेरे हुए है, वही पर्यावरण है. पुराणों के मुताबिक़ इंसान का जिस्म पांच महाभूतों से मिलकर बना है, जिनमें आसमान, हवा, आग, पानी और पृथ्वी शामिल है. सभी प्राणियों के लिए ये सभी तत्व बहुत ज़रूरी हैं. लेकिन पर्यावरण प्रदूषण की वजह से मानव जाति के समक्ष अनेक संकट पैदा हो गए हैं.
मिट्टी हमारे पर्यावरण का एक अहम हिस्सा है. हमारी ज़िन्दगी के लिए जो चीज़ें बेहद ज़रूरी हैं, वे सब हमें मिट्टी से ही तो मिलती हैं, जैसे अनाज, सब्ज़ियां, फल, फूल, जड़ी-बूटियां और लकड़ी वग़ैरह.
लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता और उसका उपजाऊपन ख़त्म होता जा रहा है. उपजाऊ शक्ति के लगातार क्षरण से भूमि के बंजर होने की समस्या ने आज विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी है. सूखा, बाढ़, लवणीयता, कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल स्तर में गिरावट आने से सोना उगलने वाली उपजाऊ धरती मरुस्थल का रूप धारण करती जा रही है.
फ़िलहाल दुनिया की आबादी तक़रीबन सात अरब है, जो साल 2050 तक नौ अरब हो जाएगी. ज़ाहिर है कि अगले चार दशकों में धरती पर दो अरब लोग बढ़ जाएंगे, लेकिन भूमि सीमित होने की वजह से लोगों को उतना अनाज नहीं मिल पाएगा, जितने की उन्हें ज़रूरत होगी. ऐसे में खाद्यान्न संकट पैदा होगा.
दुनिया की कुल ज़मीन का महज़ 11 फ़ीसद हिस्सा ही उपजाऊ है. संयुक्त राष्ट्र ने भी बढ़ते मरुस्थलीकरण पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि अगर रेगिस्तान के फैलते दायरे को रोकने के लिए ख़ास क़दम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वक़्त में अनाज का संकट पैदा हो जाएगा.
इससे भूखमरी बढ़ेगी. इसके मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र ने साल 2010-20 को मरुस्थलीकरण विरोधी दशक के तौर पर मनाने का फैसला किया था.
मरुस्थल में इज़ाफ़ा
हमारे देश में भी उपजाऊ भूमि लगातार बंजर हो रही है. भारत में दुनिया की कुल आबादी का 16 फ़ीसद हिस्सा है, जबकि इसकी भूमि विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का महज़ दो फ़ीसद ही है. जिस तरह मध्य एशिया के गोबी मरुस्थल से उड़ी धूल उत्तर चीन से लेकर कोरिया के उपजाऊ मैदानों को ढक रही है, उसी तरह थार मरुस्थल की रेत उत्तर भारत के उपजाऊ मैदानों को निग़ल रही है.
अरावली पर्वत काफ़ी हद तक धूल भरी आंधियों को रोकने का काम करती है, लेकिन अंधाधुंध खनन की वजह से इस पर्वतमाला को नुक़सान पहुंच रहा है, जिससे यह धूल भरी आंधियों को पूरी तरह नहीं रोक पा रही है.
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन (इसरो) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले मरुस्थल राजस्थान के थार तक ही सीमित था, लेकिन अब यह देश के सबसे बड़े अनाज उत्पादक राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक फैलने लगा है. साल 1996 में थार मरुस्थल का इलाक़ा 1.96 लाख वर्ग किलोमीटर था, जो अब बढ़कर 2.08 लाख वर्ग किलोमीटर हो गया है.
जल संकट
भारत समेत दुनिया भर में करोड़ों लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह जंगलों का लगातार कटना है. जंगलों के ख़त्म होने का सीधा असर बारिश पर पड़ रहा है. बारिश कम होने से प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं. जो जल स्रोत बाक़ी हैं, वे भी प्रदूषित होते जा रहे हैं. ऐसे में गला तर करने के लिए साफ़ पानी कहां से मिले?
एक अंदाज़ के मुताबिक़ दुनियाभर में 78 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है. दूषित पानी के इस्तेमाल से लोग बीमारियों की चपेट में आकर अकाल मौत मर रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित पानी के इस्तेमाल से हर साल 14 लाख लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और 7.4 करोड़ लोग जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनियाभर में दो अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा दुनियाभर में तक़रीबन 3.6 अरब लोग दूषित वातावरण में रह रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में तक़रीबन 44 फ़ीसद घरेलू दूषित जल के निवारण का कोई पुख़्ता इंतज़ाम नहीं है. इसलिए यह दूषित जल भूमि के साथ-साथ जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर रहा है.
वायु प्रदूषण
पर्यावरण के लिए वायु प्रदूषण भी बहुत ख़तरनाक साबित हो रहा है. हालांकि वायुमंडल में ऑक्सीज़न का प्रचुर भंडार है, लेकिन औद्योगिक विकास की वजह से यह भी प्रदूषित हो रहा है. इसके लिए घरेलू ईंधन, वाहनों की लगातार बढ़ती तादाद और औद्योगिक कारख़ाने आदि ज़िम्मेदार हैं.
वायु प्रदूषण भी सेहत के लिए नुक़सानदेह है. एक अंदाज़ के मुताबिक़ हर साल 60 लाख से ज़्यादा मौतों की वजह प्रदूषण ही है.
अंतर्राष्ट्रीय संगठन आईक्यू एयर की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनियाभर में वायु प्रदूषण के मामले में भारत 53.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के साथ आठवें स्थान पर है. अफ़्रीकी देश चाड दुनिया का सबसे प्रदूषित देश बन चुका है. यहां प्रदूषण का स्तर 89.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है.
अफ़सोस की बात तो यह है कि दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में 39 शहर अकेले भारत के हैं. देश की राजधानी दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में चौथे पायदान पर है.ग़ौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पीएम 2.5 के लिए पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया गया है. इससे ज़्यादा दूषित हवा सेहत के लिए ठीक नहीं है.
अमूमन दुनियाभर के सभी मज़हब पर्यावरण की अहमियत का ज़िक्र करते हुए इसके संरक्षण पर ज़ोर देते हैं. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “बेशक आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ में और रात दिन के आने जाने में और जहाज़ों और कश्तियों में जो समन्दर और दरिया में लोगों को नफ़ा पहुंचाने वाली चीज़ें लेकर चलती हैं और बारिश के पानी में जिसे अल्लाह आसमान से बरसाता है.
फिर उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. वह ज़मीन जिसमें उसने हर क़िस्म के जानवर फैला दिए हैं. और हवाओं के रुख़ बदलने में और बादलों में जो आसमानों और ज़मीन के दरम्यान अल्लाह के हुक्म के ताबे हैं. इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो अक़्ल से काम लेती है.” (क़ुरआन 2:164)
किसी चीज़ का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करना भी उसे नुक़सान पहुंचाता है. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “खाओ और पियो और फ़ुज़ूल ख़र्च मत करो. बेशक अल्लाह फ़ुज़ूल ख़र्च करने वालों को पसंद नहीं करता.”(क़ुरआन 7: 31)
इसी तरह ईसाई मज़हब की पाक किताब इंजील यानी बाइबिल में भी पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर दिया गया है. ईसाई मान्यता के मुताबिक़ ख़ुदा ने दुनिया बनाई है और इसमें मौजूद हर चीज़ की तख़लीक़ की है. इसलिए इसे नुक़सान पहुंचाने का किसी को कोई हक़ नहीं है.
यहूदियों की पाक किताब तौरेत में भी दुनिया और इसमें बसने वाली हर चीज़ की तख़लीक़ का ज़िक्र करते हुए इनकी अहमियत बयान की गई है. तौरेत के मुताबिक़ जब ख़ुदा ने आदम अलैहिस्सलाम को बनाया, तो उसने उन्हें जन्नत के बग़ीचे दिखाए और कहा मेरे काम को देखो, कितना ख़ूबसूरत है ये? मैंने जो भी बनाया है वह सब तुम्हारे लिए है. तुम्हें इसकी हिफ़ाज़त करनी है और अगर तुमने इसे तबाह व बर्बाद किया तो तुम्हारे बाद इसे ठीक करने वाला कोई नहीं होगा.
इसी तरह बौद्ध, सिख और जैन आदि धर्मों में भी संपूर्ण सृष्टि को ईश्वर की रचना कहा गया है. ईश्वर की रचना होने की वजह से समग्र पृथ्वी की रक्षा का दायित्व भी मानव जाति पर है.
वेदों में पर्यावरण संरक्षण
भारतीय संस्कृति में क़ुदरत को बहुत अहमियत दी गई है. आलम यह है कि लोग प्रकृति की देवता की मानिन्द पूजा करते हैं. ज़मीन को माता मानते हैं. नदियों को भी माता माना जाता है. आसमान को पिता की तरह मानते हैं.
उनके दिल में आग और हवा के लिए भी बहुत मान-सम्मान है. वे जल स्रोतों ख़ासकर कुओं की पूजा करते हैं. वे मानते हैं कि वृक्षों में देवी-देवताओं का वास होता है. इसलिए इनकी भी पूजा की जाती है.
वेदों के मुताबिक़ ब्रह्मांड पंचतत्व से मिलकर बना है, जिनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल और आग शामिल है. ऋग्वेद के मुताबिक़- इमानि पंचमहाभूतानि पृथिवीं, वायुः, आकाशः, आपज्योतिषि. पूरी कायनात में पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है, जिस पर ज़िन्दगी है. वेदों में पृथ्वी को माता और आकाश को पिता कहा गया है.
ऋग्वेद के मुताबिक़- द्यौर्मे पिता जनिता नाभिरत्र बन्धुर्मे माता पृथिवी महीयम्. यानी आसमान मेरा पिता है, बन्धु वातावरण मेरी नाभि है और यह महान पृथ्वी मेरी माता है.
भारतीय संस्कृति में सभी प्राणियों को ईश्वर का अंश माना जाता है. इसलिए वेदों में सभी प्राणियों की रक्षा की कामना की गई है. ऋग्वेद के मुताबिक़- उरुव्यचसा महिनी असश्चता पिता माता च भुवनानि रक्षतः। सुधृष्टमे वपुष्ये न रोदसी पिता यत्सीमभि रूपैरवासयत्॥ यानी पूरी दुनिया के लिए सूरज पिता के समान है और पृथ्वी माता के समान है.
सूरज सभी जीवों को जीवन शक्ति प्रदान करता है और पृथ्वी आधार देकर उन्हें पुष्ट करती है.
जल ही जीवन है. पानी के बिना भी कोई प्राणी ज़िन्दा नहीं रह सकता. इसलिए वेदों में जल को अमृत कहा गया है- अप्स्व९न्तरमृतमप्सुभेषजमपामुतप्रशस्तये। देवाभवतवाजिनः यानी जल में अमृत है, जल में औषधि है. हे ऋत्विज्जनो! ऐसे श्रेष्ठ जल की प्रशंसा करने में जल्दी करें.
मिट्टी और पानी की तरह ज़िन्दगी के लिए हवा भी बहुत ज़रूरी है. वेदों में हवा की अहमियत का ज़िक्र किया गया है. ऋग्वेद के मुताबिक़- वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे प्र ण आयूंषि तारिषत्।। यानी वायु हमें ऐसा औषध प्रदान करे, जो हमारे हृदय को शांति और आरोग्य देने वाली हो, वायु हमारे उम्र के दिनों को बढ़ाए.
दरअसल क़ुदरत ने हमें बहुत कुछ दिया है. हमें क़ुदरती चीज़ों का उतना ही इस्तेमाल करना चाहिए, जितनी हमें उनकी ज़रूरत है. ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने का मतलब यही है कि हम किसी दूसरे के हिस्से की चीज़ों का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि आज क़ुदरत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. इसकी वजह से ही तमाम तरह की परेशानियां पैदा हुई हैं. वेदों में पर्यावरण संरक्षण पर ख़ास ज़ोर दिया गया है.
यजुर्वेद के मुताबिक़- पृथिवी मातर्मा हिंसी मा अहं त्वाम् यानी मैं पृथ्वी की सम्पदा को नुक़सान न पहुंचाऊं. ऋग्वेद में समग्र पृथ्वी की स्वच्छता पर ज़ोर देते हुए कहा गया है- पृथ्वीः पूः च उर्वी भव: यानी समग्र पृथ्वी, सम्पूर्ण परिवेश परिशुद्ध रहे. अगर हमारी पृथ्वी स्वच्छ रहेगी, तो हमारी ज़िन्दगी भी आरामदेह होगी.
दरअसल इंसान ने अपने फ़ायदे और लालच के लिए क़ुदरत को बहुत नुक़सान पहुंचाया है. खनन के ज़रिये पहाड़ खोखले कर दिए. पेड़ काट-काट कर जंगल ख़त्म कर दिए. समन्दर, नदियों, तालाबों और जोहड़ों का पानी दूषित कर दिया.
मिट्टी और हवा में भी ज़हर घोल दिया. इस सबकी वजह से इंसानों के साथ-साथ परिन्दों, जानवरों और जलीय जीवों की ज़िन्दगी भी ख़तरे में पड़ गई है. मौजूदा हालात को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण बेहद ज़रूरी है.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं.)