पर्यावरण संरक्षण और इस्लामी निर्देश

Story by  सलमान अब्दुल समद | Published by  [email protected] • 2 Years ago
पर्यावरण संरक्षण और इस्लामी निर्देश
पर्यावरण संरक्षण और इस्लामी निर्देश

 

samadसलमान अब्दुस समद  

दुनिया के तक़रीबन सभीधर्मों में ऐसे-ऐसे सिद्धांत और कानून हैं,जो जीवन के हर मोड़ पर दिशा निर्देश देते हैं. यह अलग बात है कि किसी धर्म में किसी विषय का विवरणविस्तृत होता है,किसी में संक्षेप में. इस्लाम ऐसा धर्म है जो जीवन के छोटे-छोटेमामलों में मार्गदर्शन करता है.

यहां तक कि इसधर्म में शौच के नियम विस्तार से मिलते हैं, इसलिए इस्लाम कोप्रकृति और ज़िम्मेदार धर्म कहा गया है. इस धर्म ने जहांजीवन के अन्य तरीकों के बारे में बात की हैं, वहीं उसने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों जैसे वन स्रोत,जल संसाधन, आहार स्रोत और भूमि स्रोतों के अस्तित्व और संरक्षण के बारे में भी गुफ्तुगू की है.

नीचे की लाइनोंमें इस्लाम और पर्यावरणसंरक्षण के ऐसे उदहारण पेश करेंगे, जो क़ुरान औरहदीसों से हमें मिलते है. पर्यावरण संरक्षण की जबभी बात होती है, पौधरोपण की भी बात कीजाती है . कुरान में, खुदा ने इसका उल्लेख कुछ इस प्रकार किया  है:

 وَہُوَ الَّذِیَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاء ً فَأَخْرَجْنَا بِہِ نَبَاتَ کُلِّ شَیْء ٍ فَأَخْرَجْنَا مِنْہُخَضِراً            (الانعام: ۹۹

अनुवाद है:"और वही है जोआसमान से पानी बरसाता है, फिर हम (खुदा)उसमें से हर तरह की चीज़ें (पेड़ पौधे ) निकालते हैं, फिर हम उसमें से हरी डालियाँ उगाते हैं."  ब्रह्मांड की रचना से जोड़कर वर्षा और वृक्षारोपण का उल्लेख किया कि जा रहा है.

अर्ताथ खुदा अपनी रचना के सम्बन्ध में पेड़ पौधों का ज़िक्रकर रहा है. कहने का मक़सद है किमनुष्य को भी पेड़-पौधे लगाने चाहिए, ताकि पर्यावरण बेहतर हो सके. इसे संरक्षितकिया जा सके.  क़ुरान की यह आयत हरियाली के कारणों की ओर हमाराध्यान खींचती है.

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क़ुरान में सूरज, वर्षा, पेड़ पौधों और पानी के विषय में बहुत कुछ कहा गया है. क़ुरान के बाद जब हम हदीस ( मुहम्मद की शिक्षा और बताई हुईबातों ) में जाते हैं तो अष्पष्ट शब्दों में वृक्षारोपण के महत्व का अंदाजा होताहै. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: 

"जो कोई पेड़ पौधे लगाऐगा और उसमें से कुछ खा लिया जाएगा (कोई खा लेगा), वह उसके लिए दान(सदक़ा) बन जाएगा, और पेड़ से जो कुछ चोरी हो जाएगा है, वह उसके लिएक़यामत  के दिन तक दान बन जाएगा."(मुस्लिम शरीफ) 

यहां तीन बातें समझ में आती हैं: एक तो पेड़ पौधे लगाए जाने पर जोर दिया जा रहा है.दूसरी बात यह है कि दान-पुण्य का उल्लेख हुआ है. दूसरे शब्दोंमें ये कहा जा सकता है कि इस्लाम धर्म में पौधे लगाना न केवल पर्यावरण की दृष्टिसे अच्छा है, सवाब का काम भी है.

 तीसरा, जैसे फलों से मनुष्य को लाभ होगा, वैसे ही पौधों से पर्यावरण को लाभ मिलेगा. अर्ताथ पेड़ पौधों से इंसान को कई- कई लाभ मिल रहे है. यहां लगाये गए पेड़ों के फल खा लेने का उल्लेलख है, जबकि दूसरी हदीसों में यह भी मिलता है कि पेड़ोंतल लोग आराम करेंगे और बैठेंगे, उस का भी सवाबपेड़ लगाने वाले को मिलेग.  

ऊपर पेड़ लगाने की सलाहदी गई है. अब नीचे हम एक ऐसी हदीस पेश कर रहे हैं,जिन में पेड़ों को काटने से मना किया जा रहा है. हज़रत अली (रज़ि अल्लाह अन्हो) कहते हैं, जब पैगंबर मुहम्मद (सलल्लाह अलैहे वसल्लम) जंग केलिए लोगोंको भेजते थे तो उनको हुक्म देते थे: किसी भी बच्चे को मत मारो, किसी भी महिला को मत मारो, न कसी बूढ़े को मारो, झरनों को मत सुखाओ, पेड़ पौधों को न काटो . (बैहक़ी)

यहां महत्वपूर्ण बिंदु यहहै कि जंग में जाने पहले ऐसी बातें बताई जा रही हैं, जो पर्यावरण से भी संबंध रखती हैं और इंसानियत से भी. यहाँ यह बात भी सामने आती कि जब जंग के दिनों में पौधों किहिफाज़त कि बात की जा रही है तो इस्लाम धर्म कैसे पेड़ों को बर्बाद करने कि अनुमतिदे सकता है. 

इस्लाम धर्म ने जिसप्रकार पेड़ पौधों के लगाने पर उभारा है. उसी प्रकार पानी के  संरक्षण का हुक्म दिया. पानी को दूषितहोने से बचाने के लिए इस्लाम ने शिक्षा दी है. इस्लाम धर्म केअनुसार ठहरे हुए और बहते पानी दोनों में पेशाब और शौच मना है.  क्योंकि मूत्र औरमल पानी को दूषित करते हैं.

हैजा के सबसेखतरनाक कारणों में से एक है. यह हैजा,टाइफाइड और लीवर और पेट की सूजन जैसी कईबीमारियों का कारण बनता है, इसलिए पैगम्बरमुहम्मद (सलल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने कहा: 

(1)   पानी के घाट परशौच न करो 

 (2) रास्ते में शौच न करो 

(3) छायादार स्थानोंमें शौच न कर

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इन तीन बातों से जहाँसफाई का हुक्म मिल रहा है, वही पानी कोदूषित करने से सावधान किया जा रहा है . घाटों या नहरों,नालों और नदियों के किनारे शौच निषेध का कारणयह है कि अशुद्धता का प्रभाव पानी तक पहुँच कर उसे दूषित कर देगा.

इसी तरह, पैगंबर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रुके हुए पानी में पेशाब करने से मना किया. (बुखारी शरीफ)  खुलासा यह है कि इस्लाम नेचर से जुड़ा हुआ एकधर्म है, इसलिए उसने ऐसे ऐसे पैग़ाम दिए जो मानव स्वभाव और जिव-समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं.

हक़ीक़त मेंइस्लामी कानून को मानव जाति और उसके स्वभाव के अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया है. पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा न केवल मानव समाज से जुड़ा हुआहै, बल्कि यह मानव और हरजानदार के  अस्तित्व से संलग्नक हो गया है.

(लेखक इस्लाम  के जानकार और असम यूनिवर्सिटी सिलचर के उर्दू विभाग में गेस्ट लेक्चरर हैं)