वैश्विक बाजारों में भी सोने और चांदी की कीमतें कमजोर रहीं। दिसंबर डिलीवरी के सोने का वायदा भाव 28.05 डॉलर या 0.75 प्रतिशत गिरकर 3,689.75 डॉलर प्रति औंस पर आ गया, जबकि चांदी का भाव 1.05 प्रतिशत की गिरावट के साथ 41.71 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण अमेरिकी डॉलर की मजबूती और फेडरल रिजर्व की आगामी ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता है। डॉलर के मजबूत होने से सोना विदेशी निवेशकों के लिए महंगा हो जाता है, जिससे इसकी मांग कम हो जाती है। वहीं, ब्याज दरों में संभावित कटौती को लेकर बाजार में असमंजस है, जिससे निवेशक मुनाफा सुरक्षित करने के लिए सोने की बिक्री कर रहे हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में जैसे महंगाई दर और रोजगार की स्थिति भी सोने की कीमतों पर प्रभाव डाल रही है। यदि महंगाई में कमी आए या आर्थिक वृद्धि धीमी पड़े, तो फेड दरों में कटौती कर सकता है, जो सोने के लिए सकारात्मक होगा। लेकिन यदि ब्याज दरें स्थिर या बढ़ती हैं तो सोने की कीमतों पर दबाव बना रहेगा। इसके अलावा, वैश्विक राजनीतिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितताएं भी निवेशकों को सुरक्षित निवेश की ओर आकर्षित करती हैं, जो सोने की मांग को प्रभावित करती हैं।
भारत में भी रुपये की स्थिति, त्योहारों और शादी के मौसम की मांग, और सरकार की आयात नीतियां सोने की कीमतों को प्रभावित करती हैं। यदि रुपए मजबूत होता है, तो सोना सस्ता होगा और कीमतों में गिरावट आ सकती है, जबकि रुपए कमजोर होने पर सोना महंगा हो जाता है। इसके अलावा, भारत में त्योहारों के समय सोने की मांग बढ़ने से कीमतों को समर्थन मिलता है।
निवेशकों को सोने और चांदी में निवेश करते समय बाजार की दिशा, ब्याज दरों की नीति, डॉलर की स्थिति और वैश्विक आर्थिक संकेतकों पर नजर रखनी चाहिए। कीमतों में गिरावट को अवसर मानकर लंबी अवधि के निवेश के लिए सोना उपयुक्त विकल्प हो सकता है, लेकिन निवेश से पहले जोखिम और बाजार की स्थिति का पूरी तरह विश्लेषण करना जरूरी है। आने वाले महीनों में फेड की नीतियों, डॉलर की मजबूती और वैश्विक आर्थिक हालात के आधार पर सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना है।