#rahatindori

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 11-08-2021
राहत इंदौरी
राहत इंदौरी

 

‘‘अब ना मैं हूँ ना बाक़ी हैं ज़माने मेरे/फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे.’’ #rahatindori बेहद आन-बान और शान वाले शायर थे.पूरे तीन दशक तक मुशायरों में उनकी बादशाहत कायम रही.सिर्फ उनका नाम ही मुशायरों की कामयाबी की जमानत होता था. लोग उनका नाम सुनकर ही मुशायरे में खिंचे चले आते थे. सामयीन में ऐसी शोहरत और मोहब्बत बहुत कम शायरों को हासिल होती है.

#rahatindori जब मंच पर अपना कलाम सुनाने के लिए खड़े होते, तो श्रोताओं का इंतज़ार ख़त्म हो जाता और उनमें एक नया जोश, नया जज़्बा पैदा हो जाता.राहत इंदौरी की सिर्फ शायरी ही नहीं,उनके कहन का अंदाज भी निराला था.सच बात तो यह है कि ज्यादातर सामयीन उनकी शायरी के साथ-साथ, उसे बयां करने की अदायगी के दीवाने थे.

 एक-एक लफ्ज पर वे जिस तरह से जोर देकर, कभी आहिस्ता तो कभी बुलंद आवाज़ में पूरी अदाकारी के साथ अपने अशआर पढ़ते, तो हज़ारों की भीड़ सम्मोहित हो जाती। मुशायरे का मैदान या पूरा हॉल ‘‘मुकर्रर इरशाद-मुकर्रर इरशाद’’ (फिर से कहिए) की आवाज़ों से गूंज उठता. वे वाकई महफ़िल लूट लेने वाले शायर थे.ऐसे शायर दुनिया में एक मुद्दत के बाद आते हैं.