पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बचने को तालिबान का इस्तेमाल करेगा?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 02-09-2021
तालिबान का इस्तेमाल
तालिबान का इस्तेमाल

 

नई दिल्ली. अफगानिस्तान में तालिबान की मदद से पाकिस्तान आतंकवाद रोधी निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से बाहर होने के लिए अमेरिकी समर्थन लेने पर विचार कर रहा है.

पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और अल कायदा कैडर जैसे मिलिशिया पर अपने प्रभाव का उपयोग करेगा, जो इस उद्देश्य के लिए अमेरिका का समर्थन प्राप्त करने के लिए अफगान नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए तालिबान बलों के प्रमुख घटक बन गए हैं.

इन घटनाक्रमों से अवगत एक सूत्र ने कहा कि तालिबान नेतृत्व तालिबान मिलिशिया के विभिन्न घटकों को संभालने में पाकिस्तान की भूमिका को समझता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश उसके द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं.

पाकिस्तान नेतृत्व हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हाल ही में हुए बम हमले का भी उपयोग करेगा, जिस पर आईएस-केपी ने दावा किया था कि तालिबान के साथ-साथ यह उभरते हुए आईएस-केपी से निपटने के लिए अमेरिका के लिए एक अनिवार्य भागीदार था.

रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान को सितंबर में होने वाली आमने-सामने की बैठक से पहले कुछ प्रगति दिखानी है. यह आवश्यक है, ताकि आने वाले अक्टूबर में एफएटीएफ सत्र के लिए पाकिस्तान के पक्ष में पर्याप्त सुधार दिखाया जा सके.

हालांकि, पूर्व राजनयिक अनिल ट्रुगुनायत ने कहा कि हक्कानी नेटवर्क जैसे पाकिस्तान समर्थित समूहों को दुनिया के कई देशों ने मंजूरी दी है.

उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया था कि उसने पूर्व अफगान सेना के खिलाफ लड़ने के लिए 10,000से अधिक प्रशिक्षित लड़ाके अफगानिस्तान भेजे थे और वे अभी भी वहीं हैं.

पूर्व राजनयिक अनिल ने कहा, एफएटीएफ संगठन ब्लैक लिस्ट के तहत पाकिस्तान को प्रतिबंधित नहीं कर सका है, क्योंकि अमेरिका, चीन, रूस और यहां तक कि तुर्की ने तालिबान और अफगानिस्तान के संबंध में देश जाने के लिए इसका इस्तेमाल किया है. वहां सुरक्षा की स्थिति ढीली है. ये समूह अब भी तालिबान मिलिशिया के लिए लड़ रहे हैं. तो पाकिस्तान कैसे साबित करेगा कि उनके इन समूहों के साथ संबंध नहीं हैं. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने एफएटीएफ के देशों द्वारा सुझाए गए कामों में कुछ न्यूनतम कार्रवाई की है.

एफएटीएफ की ग्रे-लिस्टिंग से पाकिस्तान को सालाना 10अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है और यह देश संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सबसे बड़ी संख्या में से एक की मेजबानी करता है. इसे संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों के तहत अन्य भी कई नुकसान हुए हैं. पाकिस्तान को संपत्ति को फ्रीज करना, यात्रा प्रतिबंध और हथियार प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ा है.

अधिकांश अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की भारी तैनाती के बावजूद, तालिबान को पाकिस्तान के अंदर मिलने वाले समर्थन और पनाह के कारण उसे पराजित नहीं किया जा सका.

अमेरिका एफएटीएफ को गैर-सूचीबद्ध करने के लिए पूर्व शर्त के रूप में पाकिस्तान द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोधी शासन के तहत प्रमुख आतंकी गुर्गों के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा सत्यापन योग्य कार्रवाई पर जोर देता रहा है.

इनमें मुंबई हमले के प्रमुख साजिशकर्ता और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के जकीउर रहमान लखवी के खिलाफ कार्रवाई भी शामिल है. हालांकि पाकिस्तान ने मुंबई हमले से जुड़े आरोपों पर लखवी के खिलाफ कार्रवाई की है, लेकिन उसका दावा है कि उसे मसूद अजहर के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है.