राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रांतों और बड़े शहरों पर कब्जे के दौरान सबसे पहले जेलों में बंद कैदियों को आजाद किया था. मीडिया रिपोर्टों का कहना है कि इनमें बगराम जेल से इस्लामिक स्टेट इन ईराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) की खुरासान शाखा के ऐसे 14 जिहादी भी छोड़े गए हैं, जो केरल के रहने वाले हैं. वे भारत के लिए नई सिरदर्दी बन सकते हैं.
अमेरिकी सैनिकों की वापसी की घोषणा के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान में विद्रोह शुरू कर दिया था.
अफगान शासन, प्रशासन और सेना में भ्रष्टाचार की खबरों के कारण अशरफ गनी की सरकार पर पकड़ ढीली हो गई थी.
अमेरिकी सैनिकों की वापसी से अफगान सैन्य कर्मियों का मनोबल भी गिर गया था.
तालिबानी आक्रमण की शुरुआत में जून के दौरान सीएनएन ने एक वीडियो जारी किया था, जिसके मुताबिक फरयाब प्रांत में अफगानिस्तान स्पेशल फोर्स के 22सैनिक शांतिपूर्वक आत्मसमर्पण के लिए आगे बढ़ रहे थे. तभी तालिबानियों ने ‘अल्लाहू अकबर’ कहते हुए गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिसमें 22सैनिकों की जान चली गई थी.
इन नृशंस हत्याओं से अफगान सैनिकों के हौसले पूरी तरह पस्त हो गए.
इसके बाद एक-एक कर प्रांतों और महत्वपूर्ण शहरों की पुलिस, अफगान सैन्य कमांडर और प्रांतों के गवर्नर तक तालिबान के साथ ‘जान बख्शी’ के लिए सरेंडर करते गए.
तालिबान महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा करते गए और उन्होंने सबसे पहले वहां की जेलों में बंद कैदियों को आजाद किया.
जेलों में अधिकांश अमेरिका द्वारा चिन्हित तालिबान, आईएस और संदिग्ध आंतकी बंद थे.
तालिबान इन्हें आजाद करके अपनी ताकत में इजाफा करना चाहता था.
बताया जा रहा है कि कुंदुज, तखार, बगराम सहित पांच प्रांतों की राजधानियों से हजारों कैदियों को आजाद किया गया.
कई वायरल वीडियो में दिखाई पड़ा कि कैदी अपना सामान उठाए जेलों में मौजूद हैं और फिर उन्हें जेलों से बाहर निकलते देखा जा सकता है.
वीडियो के अनुसार मौके पर तालिबान लड़ाके मौजूद हैं. कैदी तालिबान के समर्थन में नारे लगाते हुए जेल से बाहर जा रहे हैं. कुछ कैदी तालिबान लड़ाकों के हाथ भी चूमते दिखाई पड़ते हैं.
तालिबान उस वक्त जल्दबाजी में था और तालिबान व आईएस-खुरासान आतंकियों की शिनाख्ती इतनी जल्दी संभव न थी.
इसलिए जल्दबाजी में तालिबान ने अपने कट्टर दुश्मन आईएसआईएस के आतंकियों को भी ‘कैदियों की एकमुश्त रिहाई’ के दौरान आजाद कर दिया.
नई रिपोर्टों का कहना है कि इनमें आईएस-खुरासान के 14ऐसे आतंकी भी शामिल हैं, जो केरल के रहने वाले हैं.
अभी तालिबान काबुल में नई समावेशी सरकार की गठन के लिए मीटिंगें ही कर रहे थे कि आईएस-खुरासान के फिदायीन जिहादियों ने काबुल एयरपोर्ट और एक होटल के सामने दो धमाके किए, जिनमें सौ से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों अन्य घायल हो गए.
आईएस इस समय ईराक और सीरिया में दबाव में है. उनकी अफगानिस्तान में खुरासान विंग के जिहादी भी अब तक अमेरिकी हमलों से बिखरे हुए थे, लेकिन अमेरिकी लश्कर की वापसी के बाद अब वे फिर से संगठित होने लगे हैं.
इसलिए अफगानिस्तान में एक बार फिर से तालिबान और आईएस के जिहादियों के बीच नई जंग की आहट सुनाई पड़ने लगी है.
तालिबान शरीयत के अनुसार शासन करके सिर्फ अफगानिस्तान में ही शासन करना चाहता है.
जबकि आईएस का मकसद पूरी दुनिया में उम्मा के तहत ‘खिलाफत’ का शासन स्थापित करना है और खिलाफत का निजाम अपने ‘खलीफा’ के हाथों में सौंपना है.
आईएस कट्टर वहाबी-सलफी (ख्वारजी) विचारधारा से आते हैं. इसलिए वे तालिबान को भी अपने से कमतर आंकते हैं. इसीलिए तालिबान पर भी हमले करते रहते हैं. तालिबान और आईएस के बीच दुश्मनी का यही मुख्य कारण है.
काबुल इस समय साफ्ट टारगेट बन गया है. तालिबान ने हक्कानी नेटवर्क के खलील हक्कानी को काबुल का सुरक्षा प्रमुख बनाया है.
खलील हक्कानी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है.
खलील को 10साल पहले अमेरिका द्वारा आतंकी घोषित किया जा चुका है और अमेरिका ने उस पर 50लाख डॉलर का इनाम भी रखा हुआ है.
हक्कानी नेटवर्क का अल-कायदा और पाकिस्तानी आईएसआई से ही घनिष्ठ संबंध नहीं हैं, बल्कि हक्कानी गुट आईएसआईएस के साथ भी काम कर चुका है.
इसलिए अब हक्कानी द्वारा नियंत्रित काबुल में आईएस के लिए ऑपरेट करने में कम दिक्कतें आने की उम्मीद की जा रही है.
केरल से संबंधित जो 14जिहादी बगराम जेल से आजाद हुए बताए जा रहे हैं, वे कन्नूर, मलप्पुरम और कासरगोड जिलों से संबंधित बताए जा रहे हैं.
आईएस ने केरलाइट जिहादियों का भारत में स्थित स्लीपिंग मॉड्यूल्स में नई जान फूंकने में इस्तेमाल कर सकता है.
इसके अलावा अफगानिस्तान में संभावित आतंकी कार्रवाईयों में भी इन केरलाइट जिहादियों का इस्तेमाल कर सकता है. इससे भारतीय आतंकी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे.