मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
करीब पांच साल पहले बडगाम के बिलाल अहमद डार ने ऐसी भूख हड़ताल की, कि उनकी मां को अपनी थोड़ी-सी जमीन और पॉपलर के कुछ पेड़ बेचने पड़े. वजहः डार को एक महंगी साइकिल खरीदनी थी.
12 फरवरी, 2019 को जब डार 18 साल के हुए, तब उन्होंने संकल्प लिया कि वह ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों के लिए अपनी जी-जान लगा देंगे. फिलहाल, देश के लोगों की उम्मीद उन पर 2022 में होने वाले एशियाई खेलो में पदक के लिए टिकी है.
अब तब बडगाम के इस महत्वाकांक्षी युवा ने 18 पदक अपनी झोली में भरे हैं, इनमें से तीन रजत और एक कांस्य पदक है. अंतरराष्ट्रीय जूनियर स्पर्धाओं में उन्होंने चार बार लगातार स्वर्ण जीता है.
वह कहते भी हैं, “अब मैं सीनियर वर्ग में भी हिस्सा ले सकता हूं और अब न सिर्फ एशियाई खेलों में बल्कि ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों में भी देश के लिए पदक जीतना मेरा सपना है.”
डार कहते हैं कि उनके लिए अगले पांच साल बेहद अहम हैं. वह जोर देते हैं, “मैं देश के लिए अच्छा करना चाहता हूं.” वह याद करते हैं कि एक लाख रुपए की कीमत वाली साइकिल खरीदने के वास्ते एक बार उन्हें घर में आठ दिन लंबी भूख हड़ताल करनी पड़ी थी.
आखिर, ढाई हजार के साइकिल से एक लाख रुपए वाली साइकिल के लिए मां को मनाना आसान नहीं था.
उनकी जिद को देखकर उनके पड़ोसी और रिश्तेदार भी हैरान थे क्योंकि डार के परिवार की आर्थिक हैसियत एक लाख रुपए की साइकिल खरीदने की नहीं थी. डार के पिता करीब दस साल पहले एक दुर्घटना में नहीं रहे. तब उनका परिवार खाने-खाने को मोहताज हो गया था और उनकी रोजी-रोटी धान के कुछ खेतों और फलों के बाग पर निर्भर हो गई थी. श्रीनगर-गुलमर्ग हाइवे पर स्थित चक कवूसा गांव में पूरे परिवार की जिम्मा उनके दादाजी पर आ गया था.
पिछले तीन साल से डार कड़ा प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं और डार की तैयारी विश्वस्तरीय किस्म की हो रही है. इसके नतीजे भी मिलने लगे हैं. उनकी तैयारियों की तारीफ क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला भी कर चुके हैं.
असल में श्रीनगर में एक टैलेंट खोज के दौरान डार पर अर्जुन पुरस्कार विजेता साइक्लिस्ट अमर सिंह की निगाह गई. सिंह ने डार को दिल्ली आने और ट्रेनिंग लेने को कहा.
अब दिल्ली आकर डार कड़ी मेहनत कर रहे हैं और रोजाना करीबन 5 घंटे में 80 किमी से 100 किमी तक साइकल चलाते हैं. शाम को स्कूल से लौटकर वह जिम में तीन घंटे बिताते हैं. यह क्रम पिछले चार साल से चला आ रहा है.
डार को इस बात का अहसास है कि सीनियर लेवल पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उन्हें दोगुनी मेहनत करनी होगी. अगले पांच साल में उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साइक्लिस्टों से लोहा लेना होगा.
अगर वह टीम में चुन लिए जाते हं तो उन्हें एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल और ओलंपिक में अपना जलवा दिखाना होगा. दिल्ली में उनके रहने, स्कूलिंग, खाने, ट्रैवल वगैरह की खर्च स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एसएआइ) और साइक्लिस्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया उठा रही है.
कभी ढाई हजार की साइकिल से साइक्लिंग करने वाले डार आज 10 लाख रुपए की कीमत की साइकिल से अभ्यास कर रहे हैं. वह कहते हैं, “मैं इसकी कीमत का बदला मेडल्स से चुकाना चाहता हूं.”
डार, ओलंपिक के भारतीय उम्मीदों पर खरे उतरने के जज्बे के साथ लगातार अपने काम में जुटे हैं. कड़ी मेहनत और उनके संकल्प से नामुमकिन नहीं लगता.