तिब्बतियों ने मनाई तिब्बती संसद की 61वीं वर्षगांठ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 02-09-2021
दलाई लामा
दलाई लामा

 

धर्मशाला. लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) ने गुरुवार को परम पावन, दलाई लामा और 80,000तिब्बतियों के निर्वासन में आने के बाद तिब्बती संसद की 61वीं स्थापना की वर्षगांठ मनाई. भारत में निर्वासन में आने के बमुश्किल 10 महीने बाद 3 फरवरी, 1960 को, तिब्बतियों के प्रतिनिधि पहली बार बोधगया में इकट्ठा हुए और आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के मार्गदर्शन में एकता और सहयोग बनाने की शपथ ली.

कशाग या तिब्बती कैबिनेट ने एक बयान में कहा, “आज जब हम 61वां लोकतंत्र दिवस मना रहे हैं. हम तिब्बत में अपने हमवतन लोगों को हार्दिक बधाई देते हैं.”

बयान में कहा, “चीन की प्रचार मशीनरी अपने हाल के श्वेत पत्रों में तिब्बत की तथाकथित शांतिपूर्ण मुक्ति के 70वर्षों के दौरान विकास के कितने भी झूठे दावे करें, तिब्बत के अंदर तिब्बतियों ने तिब्बती पहचान को खत्म करने के लिए चीन की निरंतर नीति के सामने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प बनाए रखा है और वे तिब्बत के धर्म, संस्कृति, भाषा और परंपरा की रक्षा के लिए चौतरफा प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए हम तहे दिल से आभारी हैं.”

बयान के अनुसा, “यह वह ताकत है जो निर्वासन में तिब्बतियों को एकजुट करती है और स्वतंत्रता संग्राम को जीवित रखती है. तिब्बत में फिर से एकजुट होना हमारे दिल में आम इच्छा है और हम तिब्बत में अपने भाइयों से अपना दृढ़ संकल्प ना खोने की अपील करना चाहते हैं.”

कशाग बिना किसी लापरवाही के अपने प्रशासनिक कार्यों को अंजाम दे रहा है.

“हालांकि, अपने सत्र को बुलाने में संसद की अक्षमता इसे अपने विधायी कार्यों को करने से रोक रही है. संसद भी चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बदलती स्थिति के अनुसार गतिविधियों और अभियानों की योजना बनाने के अवसरों का उपयोग करने में सक्षम नहीं है.”

कशाग को तिब्बत के अंदर झूठ फैलाने, निर्वासित तिब्बती समुदाय में विभाजन पैदा करने और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इसका दुरुपयोग करने के लिए चीनी सरकार द्वारा इस मुद्दे का फायदा उठाने के कई उदाहरणों के बारे में सूचित किया गया है.

तिब्बत के न्यायोचित समर्थन के लिए भारत, अमेरिका और दुनिया भर के सभी देशों और तिब्बत सहायता समूहों को बधाई देते हुए, कशाग ने दलाई लामा के मेधावी कार्यों के फलने-फूलने और उनकी सभी इच्छाओं की पूरे होने के लिए प्रार्थना की.

दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागने के बाद से भारत में निर्वासन में रह रहे हैं. निर्वासित तिब्बती प्रशासन धर्मशाला में स्थित है.