उच्च शिक्षा में मुसलमान केवल 16.6 प्रतिशत हैंः प्रो. सुखदेव

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 09-01-2022
उच्च शिक्षा में मुसलमान केवल 16.6 प्रतिशत हैंः प्रो. सुखदेव
उच्च शिक्षा में मुसलमान केवल 16.6 प्रतिशत हैंः प्रो. सुखदेव

 

हैदराबाद. भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों की कुल नामांकन दर केवल 16.6 प्रतिशत है, जो सभी अल्पसंख्यक वर्गों में सबसे कम है. उच्चतम नामांकन दर 72 प्रतिशत है. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हिंदुओं का कुल नामांकन 27.8 प्रतिशत है.

देश में मुसलमानों के शैक्षिक पिछड़ेपन के संबंध में यह चौंकाने वाला खुलासा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोराट ने आज मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के 25वें स्थापना दिवस के अवसर पर अपने विशेष ऑनलाइन व्याख्यान में किया, जिसका शीर्षक है ‘उच्च शिक्षा के मामले में मुसलमान कहां पिछड़ गए? नीतियों के लिए सबक.’

अध्यक्षता प्रो. सैयद ऐनुल हसन, कुलपति ने की. इस समारोह में उर्दू यूनिवर्सिटी सेलिब्रेशन के मोंटाज का भी विमोचन किया गया. निर्देशात्मक मीडिया केंद्र द्वारा विकसित.

प्रोफेसर थोराट ने 2017/18 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के नवीनतम आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 70 प्रतिशत मुसलमान आर्थिक तंगी के कारण उच्च शिक्षा छोड़ने को मजबूर हैं.

इस क्षेत्र में मुसलमानों के खतरनाक कम प्रतिनिधित्व के कारणों का आकलन करते हुए, प्रोफेसर थोराट, जो जेएनयू, नई दिल्ली के प्रोफेसर एमेरिटस भी हैं, ने कहा कि सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों में नियुक्तियों को लेकर मुस्लिम युवाओं के मन में भेदभाव था. उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी बाधा डालता है.

प्रोफेसर थोराट ने उच्च शिक्षा में मुसलमानों के अनुपात में सुधार के लिए सरकार के स्तर पर एक आक्रामक और प्रगतिशील नीति की आवश्यकता पर बल दिया. उर्दू विश्वविद्यालय के साथ अपने लंबे जुड़ाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय के असाधारण विकास पर संतोष और विस्तार व्यक्त किया.

प्रोफेसर थोराट ने उर्दू विश्वविद्यालय को लड़कियों का नामांकन बढ़ाने और गरीब छात्रों की शिक्षा जारी रखने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की सलाह दी.

विश्वविद्यालय व्यवसाय और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए अल्पकालिक पाठ्यक्रम भी शुरू कर सकता है, क्योंकि उच्च शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले अधिकांश छात्र छोटे व्यवसायिक परिवारों से आते हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ऐसे छात्रों की मदद के लिए विशेष रियायती फीस की व्यवस्था करे. अंत में उन्होंने सवालों के जवाब भी दिए.

प्रो. सैयद ऐनुल हसन, कुलपति ने अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. थोराट के आंख खोलने वाले व्याख्यान को मनु के उत्सव की सर्वश्रेष्ठ शुरुआत करार दिया. उन्होंने घोषणा की कि उर्दू मनु की भी पहचान है और माध्यम भी और यही हमारी पहचान बनी रहेगी.

शेख जामिया ने विश्वविद्यालय के विकास के लिए अन्य संस्थानों के साथ सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि अतिथि वक्ता ने लैंगिक समानता के बारे में बात की है और हम मनो में भी ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं. उच्च शिक्षा में मुसलमानों का अनुपात 16.6 प्रतिशत पर बहुत कम है. इसे बढ़ाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि हालांकि मनो का काम रोजगार देना नहीं, बल्कि उर्दू के लिए था, विश्वविद्यालय ने 6 जनवरी को पहला रोजगार मेला आयोजित किया, जिसे कोविड के कारण स्थगित करना पड़ा था. उन्होंने इस विषय को चुनने और इस विचारोत्तेजक व्याख्यान के लिए प्रो. सुखदेव थोराट को धन्यवाद दिया.

प्रो. एस.एम. रहमतुल्लाह, प्रो वाइस चांसलर ने उर्दू के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि इंडो-आर्यन भाषाओं के मेल से एक अन्य भाषा का निर्माण हुआ. आज लोग इसे उर्दू के नाम से जानते हैं. जैसे-जैसे यह विकसित हुई, यह सरकार की भाषा और शिक्षा का माध्यम भी बन गई. फिर इसका स्वरूप बिगड़ गया और धार्मिक स्कूल इसके अस्तित्व का कारण बन गए. इस प्रकार उर्दू के अस्तित्व और विकास के लिए उर्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई. विश्वविद्यालय उर्दू के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

नए शेख-उल-जामिया, प्रो सैयद ऐन-उल-हसन ने विश्वविद्यालय की बागडोर संभाली है. उन्होंने इसे और विकसित करने की योजना बनाई है, जिसे समय-समय पर लागू किया जाएगा. उन्होंने प्रो. सुखदेव राठवर का परिचय कराया. उन्होंने उन पूर्व कुलपतियों को धन्यवाद दिया, जिनकी दूरदृष्टि और मिशन ने विश्वविद्यालय को वर्तमान स्थान पर पहुँचाया.

प्रो. सिद्दीकी मोहम्मद महमूद ने अतिथि वक्ता, कुलपति, प्रो वाइस चांसलर और अन्य को एक-एक करके धन्यवाद दिया.

उन्होंने इस अवसर पर सभी को बधाई दी और इसे जवाबदेही का दिन बताया. उन्होंने कहा कि उर्दू विश्वविद्यालय की स्थापना एक आंदोलन की शुरुआत थी, जिसे आगे ले जाने की जरूरत है. उन्होंने सभी उम्मीदवारों, छात्रों और कर्मचारियों से विश्वविद्यालय के विकास में सहयोग करने की अपील की. प्रो. मुहम्मद फरयाद, प्रभारी जनसंपर्क अधिकारी ने अपने परिचयात्मक भाषण में स्थापना दिवस और सामिन के उत्सव के महत्व पर प्रकाश डाला और कार्यवाही का संचालन किया.

बैठक की शुरुआत एमए इस्लामिक स्टडीज आशिक-उर-रहमान द्वारा पवित्र कुरान के पाठ के साथ हुई. बड़ी संख्या में छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने इस कार्यक्रम को ऑनलाइन देखा.