पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिका में हस्तक्षेप की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंची जमीयत उलमा-ए-हिंद

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 04-06-2022
पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिका में हस्तक्षेप की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंची जमीयत उलमा-ए-हिंद
पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिका में हस्तक्षेप की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंची जमीयत उलमा-ए-हिंद

 

नई दिल्ली. मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक लंबित याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने उन आधारों को उठाया है, जिन पर शीर्ष अदालत की संविधान पीठ पहले ही विचार कर चुकी है.

मुस्लिम निकाय ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता के सभी आरोपों को सच मान लिया जाए, लेकिन यह ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के अलावा और कुछ नहीं है. ‘‘इस अदालत ने स्पष्ट रूप से माना है कि कानून को समय पर वापस पहुंचने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और हर उस व्यक्ति को कानूनी उपाय प्रदान नहीं किया जा सकता है, जो इतिहास के पाठ्यक्रम से असहमत है और आज की अदालतें ऐतिहासिक अधिकारों का संज्ञान नहीं ले सकती हैं.

याचिका में कहा गया है, ‘‘वास्तव में, इस अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह अदालत उन दावों पर विचार नहीं कर सकती है, जो आज की अदालत में हिंदू पूजा स्थलों के खिलाफ मुगल शासकों के कार्यों से हैं.’’ संगठन ने कहा कि वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के बीच कोई विरोध नहीं है, जैसा कि उपाध्याय ने आरोप लगाया है, क्योंकि 1991 के अधिनियम की धारा 7 इसे अन्य अधिनियमों पर एक अधिभावी प्रभाव देती है.

‘‘इसके अलावा, किसी भी घटना में, पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को संरक्षित करने के लिए एक विशेष अधिनियम होने के नाते किसी भी घटना में एक सामान्य अधिनियम पर पूर्वता लेगा.’’

‘‘कई मस्जिदों की एक सूची है, जो सोशल मीडिया पर चक्कर लगा रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मस्जिदों को कथित रूप से हिंदू पूजा स्थलों को नष्ट करके बनाया गया था.’’

याचिका में कहा गया है, ‘‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि यदि वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है, तो यह देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी के द्वार खोल देगा और अयोध्या विवाद के बाद देश जिस धार्मिक विभाजन से उबर रहा है, वह केवल चौड़ा होगा.’’

शीर्ष अदालत ने पिछले साल मार्च में 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो 15 अगस्त 1947 को प्रचलित पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने या इसके चरित्र में बदलाव की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 1991 का कानून ‘‘कट्टरपंथी-बर्बर आक्रमणकारियों और कानून तोड़ने वालों’’ द्वारा किए गए अतिक्रमण के खिलाफ पूजा स्थलों या तीर्थ स्थलों के चरित्र को बनाए रखने के लिए 15 अगस्त, 1947 की ‘‘मनमानी और तर्कहीन पूर्वव्यापी कट-ऑफ तिथि’’ बनाता है.

शीर्ष अदालत ने उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें मांग की गई थी कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3, 4 को इस आधार पर अलग रखा जाए कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए एक न्यायिक उपाय के अधिकार को छीन लेते हैं.