गरीब मुसलमानों के लिए मसीहा बने डॉक्टर मिस्बाहुल इस्लाम

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 27-05-2021
मोहम्मदिया चौरीटबल ट्रस्ट
मोहम्मदिया चौरीटबल ट्रस्ट

 

सन्देश तिवारी / कानपुर

गरीबी एक बड़ा अभिशाप है, जबकि गरीबी और बीमारी का चोली दामन का साथ है. अगर आप गरीब हैं और ऊपर से महामारी या बीमारी घर कर जाये, तो मानों इंसान टूट सा जाता है. लेकिन शहर के एक मसीहा डॉक्टर मिस्बाहुल इस्लाम ने इसमें राहत देने के लिए अपने ट्रस्ट का अस्पताल कोरोना पीड़ित गरीबों के लिए फिर से चालू किया है, या यूं कहे कि सपर्पित किया है.

मालूम हो कि गरीबी में दो वक्त की रोटी मिल पाना बेहद मुश्किल होता है और ऊपर से महामारी पूरे परिवार को और लाचार बना रहीं है. केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकारों द्वारा गरीबों को कोरोना के कहर से बचाने और उन्हें इलाज देने के लिए कार्य कर रही है.

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मोहम्मदिया चौरीटबल ट्रस्ट 


वहीं,एक तबके या यूं कहे गरीब मुसलमानों में महामारी जरूर बढ़ रही है. इन गरीबों के मुफ्त और किफायती इलाज की योजनाएं गरीब तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. ऐसे में मुसलमानों को कोरोना के कहर में मुफ्त इलाज देने के लिए मोहम्मदिया चौरीटबल ट्रस्ट के मालिक डॉं मिस्बाहुल इस्लाम एक मसीहा बनकर सामने आये हैं. इनका मोहम्मदिया चौरीटेबल ट्रस्ट का मोहम्मदिया अस्पताल बीते कई सालों से बंद पड़ा था. बीते एक साल से वे कोविड -19 के वायरस के कहर से अपने समुदाय के लोगों की हालत देख रहे हैं.

इस दौरान मुसलमानों खासतौर पर गरीब मुसलमानों के लिए उनके दिल में दर्द बढ़ता रहा और गुरुवार को उन्होंने अस्पताल को कोरोना और गंभीर बीमारी पीड़ित मुसलमानों को समर्पित कर दिया.

बता दें मोहम्मदिया अस्पताल करीब 250 बेड का सभी सुविधाओं वाला अस्पताल था. ये साल 2005 में किन्हीं कारणों से बंद हो गया था. अब फिर से यहाँ गरीबों को इलाज मिलेगा और ऑक्सीजन प्लांट भी खुलेगा.

ऐसे बनीं गरीब ममुसलमानों की बात

मोहम्मदिया चौरीटबल ट्रस्ट की भारी भरकम बिल्डिंग अब सिर्फ दिखावे की नहीं रहेंगी, बल्कि यहां इलाज भी होगा. कानपूर के दलेलपुरवा के मोहम्मदिया चौरीटेबल अस्पताल में सभी सुविधाओं से युक्त हैं, लेकिन यहां कभी न तो नियमित ओपीडी, न ही गंभीर रोगों के मरीजों को भर्ती किया जाता था.

अब अस्पताल प्रबंधक डॉं. मिस्बाहुल से इस्लामिक क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और बुद्धजीवियों ने बैठक कर इस अस्पताल में इलाज शुरू करने की बातें की हैं, जिस पर मिस्बाहुल इस्लाम ने इलाकाई जनप्रतिनिधयों के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और दो-तीन दिनों में डॉक्टरों के पैनल के साथ यहां कोरोना मरोजों को भर्ती करने की अनुमति दे दी है. बताया है कि पिछले कुछ दिनों से क्षेत्रीय सभासद हाजी सुहैल अहमद, सभासद शिब्बू अंसारी, शहाबुद्दीने, चमड़ा कारोबारी असद, ईराकी और मुस्लिम बुद्धजीवी कामरान शहीद खान प्रयासरत थे कि यहां कोरोना से पीड़ित मुस्लिम गरीबों का इलाज विशेषज्ञों की निगरानी में हो.

अब क्षेत्रीय चिकित्स्क डॉक्टर तनवीर अहमद, डॉक्टर गुलरेज रहमानी समेत अन्य डॉक्टरों की निगरानी में न सिर्फ कोरोना मरीज भर्ती होंगे, बल्कि रोजाना निर्धारित समय पर ओपीडी भी करेंगे. इसके लिए दो तीन दिन में शेडूयल जारी होगा .

क्या बोले सोसायटी अध्यक्ष

सोसायटी के अध्यक्ष मिस्बाहुल इस्लाम ने बताया कि जल्द चालू होगा. अस्पताल के पास बजट की कमी नहीं है. कमी है तो जिम्मेदार चिकित्सकों की है. वह डॉक्टरों को उनकी फीस भी देने को तैयार हैं, बशर्तें वे नियमित रहें. सोसायटी यहां अपना ऑक्सीजन प्लांट लगाना चाहती है. इसके लिए काम शुरू है. 

समय पर इलाज नहीं मिलता

कोरोना मरोजों से सरकारी अस्पताल भरे पड़े हैं. सरकारी अस्पतालों में भार इतना है कि इलाज के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट है. कभी कभी इन सरकारी अस्पतालों में आलम ये होता है कि इलाज के लिए सुविधाएं ही नहीं होती है. और बड़ी बात ये कि ये गरीब इन सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटते ही रह जाते हैं, लेकिन समय पर इलाज नहीं हो पाता है. इन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती और ना ही गरीबों को सही जानकारी दी जाती है.

जानकारी का अभाव

इन निजी अस्पतालों में भी गरीब का इलाज संभव होता है, लेकिन जागरूकता के अभाव में गरीब वर्ग के मरीज अपने अधिकार के बारे में नहीं जानते हैं और वे निजी अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं. कई अस्पतालों में उनके लिए आरक्षित बिस्तर खाली पड़े रहते हैं. समाज के गरीब वर्ग के लोगों में जागरूकता लाने के लिए ना ये प्राइवेट अस्पताल आगे आते हैं और न ही ओवरलोड की भार झेलते सरकारी अस्पताल के लोग इन निजी अस्पतालों में गरीबों को रेफर करते हैं. नतीजा यही होता है कि गरीब बड़े प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंच नहीं पाता और सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाता रह जाता है.