साबिर हुसैन / नई दिल्ली
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीठी की तेरह वर्षीय अफशीन गुल कभी भी स्कूल नहीं गई या दोस्तों के साथ नहीं खेली, क्योंकि उसकी गर्दन 90 डिग्री पर झुकी हुई थी. सात भाई-बहनों में सबसे छोटी इस बच्ची ने अपना सारा जीवन कराची से 300 किमी पूर्व में स्थित मीठी में पारिवारिक घर में बिताया है. अफशीन सेरेब्रल पाल्सी से भी पीड़ित है. उसके बारे में कहा जाता है कि जब वह एक वर्ष से कम उम्र की थी, तब वह गिर गई थी, जिसके बाद उसकी गर्दन झुकनी शुरू हुई और वर्षों से यह एक समकोण पर ठहर गई.
अफशीन का विशेष उपचार करवा पाना इस गरीब परिवार की कुब्बत से परे था. उनके पिता एक मजदूर थे और उनकी 2020 में मृत्यु हो गई. लेकिन उनके निधन से दो साल पहले, अफशीन के सबसे बड़े भाई 27 वर्षीय मोहम्मद याकूब कुम्बर ने दिल्ली के स्पाइन सर्जन डॉ. राजगोपालन कृष्णन के बारे में सुना, जिन्होंने अपोलो अस्पताल में मध्य प्रदेश के एक किशोर की सर्जरी की थी. लेकिन कोविड महामारी ने अफशीन के लिए किसी भी त्वरित चिकित्सा से वंचित कर दिया.
याकूब डॉ कृष्णन एक ‘बहुत समर्पित भाई’ के रूप में वर्णित करते हैं और वे उनके संपर्क में रहे और अंततः नवंबर 2021 में अपनी बहन के साथ नई दिल्ली पहुंचे.
डॉ कृष्णन ने पहले इंग्लैंड की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में डेढ़ दशक तक काम किया था और चरम मामलों के लिए कोई अजनबी नहीं है. उन्होंने स्काइप पर याकूब के साथ अफशीन की स्थिति पर चर्चा की थी. लेकिन उन्हें उस गंभीरता का पता नहीं चल पाया, जिसे चिकित्सकीय रूप से एटलांटो-एक्सियल रोटेटरी डिस्लोकेशन (एएआरडी) के रूप में जाना जाता है. उन्हें इसका अंदाजा तक हुआ, जब उन्होंने वास्तव में अफशीन को देखा था.
डॉ कृष्णन ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि मैंने इतना गंभीर मामला देखा है. उसे सर्वाइकल मायलोपैथी थी, जो रीढ़ की हड्डी का संपीड़न है, जिससे ऊपरी और निचले अंगों में न्यूरोलॉजिकल डिसफंक्शन होता है. यह उसके जीवन के लिए एक जोखिम था और वह भाग्यशाली है कि वह इतने लंबे समय तक जीवित रही.’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने एक सीटी स्कैन किया और इसे समझने और समझने की कोशिश में कई घंटे बिताए कि क्या हुआ था. यह एक लटका हुआ सिर, खोपड़ी और सी-1 कशेरुका का एक संयोजन था, जो सी-2 पर 90 डिग्री नीचे झुकी है, जो कि धड़ है. उसके पास वह सब कुछ था, जिसने इसे एक उच्च जोखिम वाली सर्जरी बना दिया.’’
यह अफशीन की गर्दन को सीधा करने की दो चरणों वाली प्रक्रिया थी.
डॉ कृष्णन ने बताया, ‘‘पहला चरण उसे हेलो-ग्रेविटी ट्रैक्शन में डालना था. उसकी खोपड़ी के चारों ओर एक अंगूठी थी, जिसमें उसके सिर को पकड़े हुए पिन के साथ वजन जुड़ा हुआ था. जब वह बिस्तर पर लेटी थी, तो वजन एक चरखी से जुड़ा हुआ था. जब वह व्हीलचेयर पर थी, तो एक ओवरहेड चरखी के माध्यम से वजन का उपयोग किया जाता था. यह झुकाव 90 डिग्री के कोण से घटकर 60 डिग्री हो गया था. गिरा हुआ सिर उतना सही नहीं हुआ, जितना मैं चाहता था. मुझे इसकी उम्मीद थी, क्योंकि एक बढ़ते बच्चे में हड्डियाँ अनुकूल हो जाती हैं. इसलिए उसकी हड्डी में अनुकूल परिवर्तन हुए और मैंने तब एक मांसपेशी रिलीज करने का फैसला किया.’’
अफशीन ने 28 फरवरी को मुख्य सर्जरी से पहले साल के अंत में हेलो-ग्रेविटी ट्रैक्शन किया, जो लगभग आठ घंटे तक चला.
सर्जरी से पहले, अफशीन की मां जमीलन के साथ बातचीत ने डॉ. कृष्णन को चुनौती का सामना करने के लिए तैयार कर दिया था.
उन्होंने बताया, ‘‘मैंने परिवार को समझाया कि चीजें गलत हो सकती हैं और ऑपरेशन के दौरान या उसके बाद अफशीन की मृत्यु हो सकती है या उसे अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं. उसकी मां ने पूछा कि अगर वह मर गई, तो परिवार को शव कैसे मिलेगा? और तब मैंने फैसला किया कि मैं यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करूंगा कि वह मेज पर न मरे. सर्जरी न केवल जटिल थी, बल्कि अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता थी.’’
इस ऑपरेशन के लिए डॉ. कृष्णन अपनी टीम को पूरा श्रेय देते हैं, जिसमें आर्थोपेडिक और स्पाइन सर्जन डॉ. मनोज शर्मा, बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता बख्शी और वरिष्ठ सीटी रेडियोलॉजिस्ट डॉ संदीप वोहरा शामिल थे, जिन्होंने उच्च जोखिम वाली सर्जरी पर विचार करना संभव बनायाष्.
उन्होंने बताया, ‘‘उद्देश्य रीढ़ की हड्डी के संपीड़न को मुक्त करना था. मैं पूर्ण सुधार का लक्ष्य भी नहीं रख रहा था. मुझे नहीं पता था कि क्या होगा. उसकी दाहिनी ओर केवल एक कशेरुका धमनी थी. बाईं धमनी या तो अनुपस्थित थी या अवरुद्ध थी. वे मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के पिछले हिस्से को 20 प्रतिशत रक्त की आपूर्ति करती हैं. अगर मैंने इसे क्षतिग्रस्त कर दिया, तो एक घातक परिणाम की अत्यधिक संभावना थी. हमने गर्दन को स्थिर करने के लिए खोपड़ी और कशेरुकाओं के पीछे स्क्रू और रॉड का इस्तेमाल किया. एक बार जब गर्दन काफी स्थिर हो गई, तो मैंने सी-1 को हटा दिया, जो रीढ़ की हड्डी में खुदाई कर रहा था.’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसका उद्देश्य जीवन की रक्षा करना, रीढ़ की हड्डी को अभी और भविष्य के लिए संरक्षित करना, सिर को सीधा करना, अभी के लिए ठीक करना और एक फ्यूजन करना था, ताकि यह सिर का स्थायी सीधा हो सके. उसे अगले कुछ वर्षों में सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है, ताकि कुछ भी गलत न हो.’’
ऑपरेशन सफल रहा है और अफशीन की अब सीधी गर्दन है और उसका जीवन निश्चित रूप से कम दर्दनाक होगा. फिलहाल उसे चलने के लिए सहारे की जरूरत है.
‘‘मुझे अफशीन के परिवार को बताना पड़ा कि वह पूरी तरह से सामान्य नहीं होगी. सेरेब्रल पाल्सी के कारण उसके पास 6 या 7 साल के बच्चे का दिमाग है. वह वैसे ही रहेगी, लेकिन अगले 2-3 वर्षों में रीढ़ की हड्डी के सिकुड़ने से उसकी मृत्यु नहीं होगी. वह जीवित रहेगी और एक सभ्य जीवन जीएगी. उसे अभी भी परिवार के समर्थन की आवश्यकता होगी, लेकिन वह दुनिया को उल्टा नहीं, बल्कि सीधे तौर पर देख रही होगी. कार्यात्मक रूप से, वह बेहतर होगी.’’
style="width: 100%;" डॉ. कृष्णन, जो अप्रैल में 69 वर्ष के हो जाएंगे, कहते हैं कि वह चुनौतियों का सामना करते हैं और जब बच्चों की बात आती है, तो वह नरम होते हैं.
डॉ. कृष्णन ने सर्जरी निरूशुल्क की थी. वे कहते हैं, ‘‘मुझे चरम मामलों को ठीक करना पसंद है. लेकिन मैं भी बूढ़ा हो रहा हूं और मेरे अपने स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे हैं, लेकिन अगर ऐसे बच्चे आते हैं, तो मैं उनकी मदद करना चाहूंगा. मुझे परवाह नहीं है कि वे कहाँ से आते हैं या उनका धर्म क्या है या वे अमीर हैं या गरीब.’’
डॉ. मनोज शर्मा ने कहा कि अपनी बहन को एक नया जीवन देने के लिए टीम के प्रति याकूब की कृतज्ञता पूरी तरह से अप्रत्याशित थी. डॉ शर्मा ने कहा, ‘‘याकूब ने धन्यवाद करते हुए डॉ कृष्णन के पैर छुए, जो मुझे बहुत आश्चर्यजनक लगा, क्योंकि यह पाकिस्तानी संस्कृति नहीं है. वह अपनी बहन के लिए एक मॉडल केयरगिवर रहे हैं और उनकी वजह से ही हम अफशीन से बात कर पाए, क्योंकि वह हिंदी नहीं बोलती है.’’
अगले कुछ महीनों में, डॉ कृष्णन और उनकी टीम सप्ताह में एक बार स्काइप के माध्यम से अफशीन की निगरानी करेगी. डॉ. शर्मा ने कहा कि यह संभावना नहीं है कि अफशीन को किसी अनुवर्ती उपचार के लिए लौटने की आवश्यकता होगी.
याकूब एक एनजीओ के साथ काम करता है, जो अफशीन जैसे बच्चों के लिए फंड जुटाने में मदद करता है. वह अपनी बहन के साथ दिल्ली आया था, क्योंकि एक मरीज के साथ मेडिकल वीजा के तहत केवल एक व्यक्ति को ही जाने की अनुमति है. वह विशेष रूप से डॉक्टरों और सामान्य रूप से भारतीयों के बारे में चिन्तित हैं.
याकूब ने कहा, ‘‘मैंने डॉ कृष्णन के बारे में एक वृत्तचित्र देखा, जिसने मुझे उनसे संपर्क करने के लिए प्रेरित किया. अफशीन बहुत अच्छे हाथों में थी. डॉ कृष्णन और डॉ शर्मा बस महान रहे हैं और बाकी टीम भी. हमारे पास पैसे नहीं थे. इसलिए हमने क्राउडफंडिंग के जरिए गोफंडमी पर फंड जुटाया. अफशीन के लिए अभियान द्वारा उठाए गए 35,000 डॉलर में से अधिकांश पाकिस्तान के बाहर से आए थे. जिस होटल में हम ठहरे हैं, उसने हमें कमरे के किराए और खाने पर छूट दी है.’’
अफशीन और याकूब 25 मार्च को वापस उड़ान भरेंगे. लेकिन अमीरात की उड़ान दुबई से होते हुए लंबी होगी. फिर कराची में उतर कर 300 किमी ड्राइव के बाद घर पहुंचेंगे और परिजन अफशीन की सीधी गर्दन देख सकेंगे.