रजनीज्मः फॉर ऑल द रजनी फैन्स, डोंट मिस द चेंस

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 01-04-2021
एकोsहं द्वितीयोनास्तिः रजनीकांत की नकल करना आसान नहीं
एकोsहं द्वितीयोनास्तिः रजनीकांत की नकल करना आसान नहीं

 

मंजीत ठाकुर

अपूर्व रागंगल को रिलीज हुए कोई 46 साल बीत गए. उस फिल्म में वह नायक नहीं थे. नायक तो थे कमल हसन. रजनीकांत को के बालाचंदर ने लॉन्च किया था और अपने करियर के शुरुआती दौर में रजनीकांत ने चरित्र किस्म की भूमिकाएं की थी. बहरहाल, जल्दी ही उन्हें और सबको, रजनीकांत की क्षमताओं और संभावनाओं का पता चल गया. सीढ़ियों पर चढ़ने की रफ्तार बढ़ती गई और वह इंडस्ट्री के सबसे ऊपरी पायदान पर पहुंच गए. एकदम शीर्ष पर. रजनीकांत उस सिंहासन पर काबिज हो गए जिसपर उनसे पहले तमिल सिनेमा में भगवान का दर्जा हासिल करने वाले एमजी रामचंद्रन आसीन थे. लेकिन, रजनीकांत सिंहासन पर स्थायी रूप से जम गए. आजतक उनका जलवा बरकरार है.

रजनीकांत की नकल नहीं की जा सकती. जिसने भी उनकी नकल करने की कोशिश की, वह फूहड़ ही लगता रहा. पिछले 45 साल में दूसरा रजनीकांत तैयार नहीं हो सकता और अगले कुछ सालों में भी उन जैसा कोई और आएगा इस पर संदेह है. सिनेमा पर आलोचनाएं लिखने वाले शायद रजनीकांत को वैसा अभिनेता नहीं माने, जैसा बनने के लिए वह निकले थे या फिर जैसा बनने की उनमें संभावनाएं थी. उन्होंने अपनी फिल्मी करियर में मल्लूम मालारम, भुवना ओरू केलविकुरी और अवारगल जैसी फिल्में नहीं की. उन्होंने खुद को अगली पंक्ति के दर्शकों की तालियों के लिए जलवे दिखाने वाले नायक में बदल दिया.

सिनेमा उद्योग अपने लिए छवियां और छवियों में कैद नायक गढ़ता है. उत्तर में अमिताभ के साथ ऐसा ही हुआ, और दक्षिण मे रजनीकांत के साथ. हर फिल्म में यह स्टार वही सबकुछ करता रहा, सिगरेट उछालना, हवा मे सिगरेट जलाना और अपने धूप के चश्मों को हाथ की सफाई के साथ घुमाकर आंखों पर चढ़ाना.

लेकिन, सचाई यह भी है कि रजनीकांत कला फिल्मों या समांतर फिल्मों के जरिए न तो थलैवार बन पाते और न सर रजनी का खिताब मिलता. कला की दुनिया की सेवा तो करते और शायद कला समीक्षकों और आलोचकों के दुलारे बन जाते पर अगली पंक्ति के चीखते-शोर मचाते, तालियां पीटते और सीटियां मारते दर्शकों के दिलों में उनकी वह जगह नहीं बन पाती, जिस पर उनका कब्जा बतौर सम्राट है. जिस अदा से वह खुद को शिवाजी द बॉस कहते हैं, वह कला फिल्मों से उन्हें कहां नसीब होती भला! असल में, रजनीकांत के स्टारडम ने तमिल सिनेमा के विस्तार में भी मदद की.

जाहिर है, नब्बे के दशक में जवान हो रही पीढ़ी रजनीकांत की के. बालाचंदर की फिल्मों से परिचय नहीं होगा. इस पीढ़ी के लिए रजनीकांत का मतलब सिनेमाहॉल में तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों की गूंज है.

खुद रजनीकांत को उनकी अपनी कामयाबी ईश्वर की कृपा लगती होगी क्योंकि इतनी बड़ा कामयाबी को चमत्कार से कम भी नहीं माना जाना चाहिए.

आखिर, बचपन से हमने शिवाजी राव गायकवाड़ के संघर्ष की कहानियों को अखबारों और अपने बड़ों के मुंह से सुना है. उन संघर्ष की कहानियां सुनाते समय बड़ों का रवैया यही होता था कि मेहनत करो, और फिर देखो कि किस्मत क्या होती है. पर एक बात तय है कि कामयाबी हासिल करने के बाद भी सर रजनी का संघर्ष कम नहीं हुआ होगा. आखिर, शीर्ष पर बने रहना भी बड़ी चुनौती है क्योंकि शीर्ष पर सिर्फ एक व्यक्ति खड़ा हो सकता है. कामयाबी दोहराते जाना भी बड़ी कामयाबी है.

आखिर रजनीकांत के उस संघर्ष के क्या किस्से होंगे, कि गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला एक्टर काम न मिलने के डर से जूझ रहा होगा, कि बिना आराम किए इन्होंने लगातार कितनी फिल्में शूट की होंगी और आराम की इस कमी ने उनके सामाजिक बर्ताव पर क्या असर डाला होगा.

हो सकता है इन संघर्षों ने आखिरकार रजनीकांत को इतना विनम्र बना दिया है कि वह अपने सुपरस्टारडम को गंभीरता से नहीं लेते.

रजनीकांत कुछ चीजों के लिए वाकई बेमिसाल हैं और कुछ चीजों के लिए वह बेहतरीन मिसाल हैं. मसलन, गरीबी की गोद से उठकर शीर्ष तक पहुंचने की मिसाल, शीर्ष पर लगातार साढ़े चार दशकों तक टिके रहने की मिसाल, कि कामयाबी को सिर पर नहीं चढ़ने देने की मिसाल. जिस उद्योग में बिना सरपरस्त के एक मौका तक नहीं मिलता, वहां अपना साम्राज्य खड़ा करना कोई सर रजनी से सीख सकता है.