जब वहां न रूस था और न यूक्रेन

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 07-03-2022
जब वहां न रूस था और न यूक्रेन
जब वहां न रूस था और न यूक्रेन

 

हरजिंदर

जंग अब सिर्फ रूस और यूक्रेन में ही नहीं चल रही, पूर्वी यूरोप का एक और देश बेलारूस भी इसमें कूद पड़ा है.ये तीनों ही देश एक ऐसे साझा इतिहास के हिस्से हैं जो इन्हें जोड़ता भी है और तोड़ता भी है.उनकी दुशमनी अगर कुछ सौ साल पुरानी है तो आपसी रिश्तों की कहानी हजारों साल पहले तक जाती है.


हजारों साल पहले यानी जब न रूस था, न बेलारूस था और न ही यूक्रेन.ये पूरा भूभाग एक ही था जिसका नाम था कीवन रस.आठवीं सदी के आस-पास यहां एक नया सत्ता समीकरण उभरना शुरू हुआ था, जिसके संस्थापक का नाम था- की। उन्हीं के नाम पर कीव नाम का शहर बसाया गया जो अगली कुछ सदी में दुनिया के सबसे बड़े और सबसे विकसित शहरों में गिना जाने लगा.

 इसके आस-पास बहुत दूर-दूर तक का जो इलाका था उसे रस कहा गया और देश का नाम हो गया कीवन रस, यानी कीव शहर का इलाका.हालांकि यह इलाका इतना बड़ा था कि इसमें दुनिया के बहुत सारी बड़े-बड़े देश समा सकते थे.यह कीव शहर आज जहां यूक्रेन की राजधानी है वहीं रस शब्द से रूस और बेलारूस जैसे देशों को अभी भी उनकी पहचान देता है.

इस पूरे इलाके में स्लोवाक जनजाति के लोग रहते थे जिनके बारे में कहा जाता है कि वे यूरोप के स्कैंडेनेविया इलाके से यहां आए थे.आज की तरह ही तब भी कीव शहर के आस-पास की जमीन बहुत उपजाउ थी इसलिए शहर को स्मृद्ध होने में देर नहीं लगी.स्मृद्धि की गाथाएं जब फैलती हैं तो वे दुशमनों को आमंत्रित करने में देर नहीं करतीं.

इस शहर के चर्चे जब मंगोलिया के बाटू खान के कानों में पड़े तो उसने अपने दल-बल समेत यहां पहंुचने का इरादा बना लिया.बाटू खान चंगेज खान का पोता था और दिग्विजयी होने की कामना के साथ ही पैदा हुआ था.जल्द ही उसकी फौज ने मुश्के बांधी और कीव की ओर रवाना हो गई.

बाटू खान की गिनती दुनिया के सबसे बर्बर शासकों में होती है.उसने इस शहर को सिर्फ लूटा ही नहीं बल्कि पूरी तरह तबाह भी कर दिया.मध्य एशिया के कईं बड़े शहरों में तबाही मचाने का श्रेय बाटू के दादा चंगेज खान को दिया जाता है, लेकिन कीव में जो तबाही हुई वह उन सबसे कहीं ज्यादा थी.

कीव का स्वर्ण काल अचानक ही खत्म होकर उसके खंडहर काल में बदल गया.अगली कईं सदी तक यह शहर सिर्फ अतीत की एक याद बन कर ही रह गया.शहर क्या उजड़ा इस इलाके की सत्ता का केंद्र भी यहां से खिसक गया.जल्द ही सत्ता का नया केंद्र पश्चिम दिशा में मस्कवा नदी के किनारे बसे नए नगर मास्को की ओर खिसकने लगा.जब कीव एक बड़ा और फलता-फूलता नगर था तो उसके सामने मास्कों ठीक से एक कस्बे की हैसियत भी नहीं रखता था.लेकिन अब उसके दिन फिरने वाले थे.आगे का इतिहास लंबा है लेकिन रूस नाम की सत्ता के खड़ा होने की शुरुआत यहीं से हुई.


इस रूस का जो बहुत बड़ा पूर्वी भाग था, उसे उसका सीमावर्ती इलाका माना गया.स्लोवाक भाषा में सीमावर्ती इलाके के लिए शब्द होता है यूक्रेनिया.यूक्रेन शब्द इसी से निकला है.यह नाम कुछ वैसा ही है जैसे पाकिस्तान में फ्रंटियार इलाका है.लेकिन यह सिर्फ भूगोल का मामला ही नहीं था.

इस इलाके की भाषा भी रूस से अलग थी और संस्कृति भी.बावजूद इसके यूक्रेन की न तो अपनी कोई  अलग सत्ता बन सकी और न ही कोई अलग राजनैतिक पहचान.कभी इस पर पोलैंड का कब्जा रहा और कभी लुथिऐनिया का.लेकिन ज्यादा लंबे समय तक इस पर रूस ने ही शासन चलाया. 

जारी....