फिल्मों के जरिए हिंदुस्तान के परदे पर उकेर रही हैं समाजशास्त्री आरिफा जावेद

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 07-06-2022
आरिफा जावेद
आरिफा जावेद

 

शाहताज खान/ पुणे

डेट्रॉयट मिशिगन में सोशियोलॉजी की प्रोफ़ेसर आरिफा जावेद तकरीबन 30 वर्षों से शिक्षण से जुड़ी हुई हैं.अब उन्होंने ने फ़िल्मों का रुख किया है. उनका मानना है कि किसी भी शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थियों को शिक्षा देने का हर संभव प्रयास और उसका उचित प्रबंध करे.

समाजशास्त्री (sociologist) होने के नाते उन्होंने महसूस किया कि अब लोग किताबें कम और फ़िल्म ज़्यादा देखना पसन्द करते हैं. इसी लिए आरिफा जावेद ने अपने विचारों और शिक्षण सामग्री को विद्यार्थियों तक पहुंचाने के लिए सिल्वर स्क्रीन का चुनाव किया.

निर्माता और लेखिका आरिफा जावेद का पहला शैक्षिक वृतचित्र (educational documentry) 2015 में "Essential Arrival" ने लोगों को प्रभावित किया जिसके चलते आरिफा जावेद को अगली फिल्म बनाने का हौसला मिला. अब उनकी तीसरी डॉक्यूमेंट्री भी रिलीज़ के लिए तैयार है. और अगले प्रोजेक्ट पर भी काम शुरू हो गया है.

विविधता में एकता की अनुरक्त समीकृति

आरिफा जावेद 1995में यूनाइटेड स्टेट्स पहुंचीं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली में वह समाजशास्त्र (sociology) की प्रोफ़ेसर थीं. कुछ समय अमरीका में बिताने का विचार लेकर वह अपने पुरे परिवार के साथ अमेरिका गईं लेकिन वह थोड़े दिन कभी खत्म नहीं हुए. उन्हें वहां जॉब मिल गई और समय गुजरता गया.

वह कहती हैं कि शायद मैं रिटायरमेंट की ज़िंदगी नहीं जी पाऊंगी क्योंकि अभी मेरा दिमाग़ चलता है. वह कहती हैं कि मैं यहां विद्यार्थियों को शिक्षा देते हुए अकसर सोचती थी कि मैं कुछ एसी एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्रिस बनाऊं जो मेरे देश भारत की तहज़ीब और संस्कृति को प्रस्तुत करे.

मैंने पढ़ाते हुए पाया कि यूरोपियन और दुसरे देशों को समझने के लिए समाजशास्त्र कोण लिए छोटी छोटी फ़िल्में मिलती हैं लेकिन भारतीय संस्कृति को समझने और समझाने के लिए समाजशास्त्रीय कोणमुझे नहीं मिलता था. आरिफा जावेद बताती हैं क उनके स्टूडेंट अकसर पूछते थे कि जब आप भारतीय हैं तो आप की बिंदी कहां है?

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा

भारत की गर्मी, सर्दी, बरसात, होली, दिवाली, ईद सब मेरी यादों में में मौजूद है.वह कहती हैं कि मुझे फख्र है कि मैं भारतीय हूं. मैं कोशिश करती हूं कि अपने देश को अच्छी तरह प्रस्तुत करूं. मैं अपने स्टूडेंट्स को हमेशा बताती हूं कि वहां भिन्न भिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं.

क्लास रूम और सिल्वर स्क्रीन

क्लास रूम में आपरवासन, संस्कृति, तहज़ीब, समाज इत्यादि पर बात करते हुए भारत की अनेकता में एकता की छवि को पर्दे पर उतारने की उनकी इच्छा इतनी प्रबल हो गई कि अवसर मिलते ही आरिफा जावेद ने 2015 में एशेंसियल अराइवल डॉक्यूमेंट्री बनाई.

वह कहती हैं कि मैं ने एक ही फ़िल्म बनाने का सोचा था लेकिन पहली डॉक्यूमेंट्री ने दुसरी फ़िल्म का रास्ता तैयार किया. मुझे लगा कि कुछ बातें कहना अभी बाक़ी है, इस लिए दुसरी डॉक्यूमेंट्री द सीजन इन द मिस्ट (The season in the mist)बनाई. जिसमें सरदारों के ताल्लुक से बात की गई.

वह मुस्कराते हुए कहती हैं कि अब मेरी तीसरी डॉक्यूमेंट्री भी रिलीज़ के लिए तैयार है जिसका नाम है मैनी पेसेज ऑफ टाइम (Many passages of Time).

आरिफा जावेद की यह डॉक्यूमेंट्री हिंदुस्तानी मुसलमानों पर बेस्ड है. वह बताती हैं कि उन्हें अपने स्टूडेंट्स को अकसर समझाना पड़ता है कि मैं मुसलमान हूं लेकिन अरब नहीं हूं, मैं हिंदुस्तानी हूं लेकिन हिंदू नहीं हूं. उनकी आने वाली फिल्म का यही मूल आधार है.

ऐसा देश है मेरा

आरिफा जावेद का अपने देश के संबंध में एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्रीज बनाने का सिलसिला जारी है. डिक्युमंट्री बनाने के लिए न उन्होने कहीं से कोई ट्रेनिंग ली है और न ही उनकी फ़िल्मों को कोई आर्थिक सहायता मिल रही है. मगर उनकी मेहनत लागातार जारी है क्योंकि उनका मानना है कि अगर हम अपने अंदर थोड़ी सी लचक पैदा करें और अपने आलावा दूसरों को भी समझने की कोशिश करें तो कई समस्याएं स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी.

आरिफा जावेद का कहना है कि उनकी डॉक्यूमेंट्रीज अगर  कल्चरल कन्फ्यूजन को दूर करने में थोड़ी भी सहायक हों तो मैं समझूंगी कि मेरी कोशिश कामयाब रही.

मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे

कोई संस्कृति न अच्छी होती है और न बुरी होती है बस थोड़ा भिन्न होती है, अलग होती है. डायवर्सिटी, विविधता, विभिन्नता एक ऐसी ज़िंदगी का नाम है जो हर व्यक्ति अपनी संस्कृति और मज़हब के साथ जीता है लेकिन अंदर से वह एक इंसान ही है इसलिए हम एक दूसरे को समझें और जानें. यही एक ग्लोबल जिंदगी जीने का तरीक़ा है.

आरिफा जावेद अपनी हर एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्री में यह पैग़ाम देने का भरसक प्रयास कर रही हैं जिसकी आज सब से अधिक आवश्यकता है. आरिफा जावेद का हिंदुस्तानी तहज़ीब और संस्कृति को पर्दे पर उतारने की प्रबल इच्छा और कोशिशों का सफ़र मिशीगन में लगातार जारी है. उम्मीद है कि कोशिश बेकार नहीं जाएगी.