राधा-कृष्ण के प्रेमपाश में पगे इन गांवों के मुस्लिम नहीं करते आपस में रिश्ते

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 27-03-2021
लठामार होली
लठामार होली

 

राकेश चौरासिया / मथुरा

एक ओर ‘निष्काम कर्मयोगी’ लीलाधर भगवान कृष्ण का गांव नंदगांव है और दूसरी ओर किशोरी जी राधारानी का गांव बरसाना है. इन गांवों के सभी हिंदुओं के साथ-साथ, राधा-कृष्ण के अनुराग और प्रेम में पगे यहां के मुस्लिम भाई भी पांच हजार साल पुरानी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं और इन दोनों गांवों में रिश्ता नहीं करते हैं.

दुनिया में कोई आदर्श युगल है, तो वो है किशोरी जी और रसिक बिहारी का. इनकी रासलीलाओं के रस को जस-तस बनाए रखने के लिए दोनों के मध्य लठामार होली विश्व विख्यात है.

कृष्ण धाम से जुड़े होने के कारण नंदगांव के लोग स्वयं को ‘जीजा’ मानते हैं और बरसानावासी स्वयं ‘साला’ मानते हैं.

लठामार होली में यथानुरूप नंदगांव के गोप कुमार (जीजा) और बरसाने की गोप कुमारियां (साली-सलहज) के बीच जब लट्ठ बरसते हैं, तो गजब की दैया-मैया, हास-परिहास और ठिठोली देखते ही बनते ही है.

होली के अद्भुत दर्शन में लठामार होली का उच्च स्थान है. दोनों गांवों के बुजुर्गों का मानना है कि इन दोनों गांवों के बीच अगर बच्चों के रिश्ते होने लगे, तो लठामारी का आकर्षण और लालित्य समाप्त होने की आशंका है, क्योंकि रिश्तों के कारण लट्ठ मारने और न मारने के लिए संशय होगा और इसके ‘सांस्कृतिक भाव’ का ह्रास होने लगेगा.

भारत में इस्लाम का आगमन करीब सातवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. पवित्र ब्रज क्षेत्र में भी मुस्लिम भाई रहते हैं और यहां की रवायतों का सम्मान करते हैं. इसीलिए यहां के मुस्लिम भाई इन दोनों गांवों में अपने बच्चों का रिश्ता नहीं करते हैं.

बरसाना निवासी सलाम कुरैशी कहते हैं कि हमें यहीं रहना है और यही हमारी संस्कृति है. हम क्षेत्रीय परंपराओं का सम्मान करते हैं. इसीलिए नंदगांव और बरसाना का मुस्लिम समाज आपस में रिश्ते नहीं करता.