जवाहरलाल नेहरू और बाल दिवस

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-11-2021
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू

 

डॉ. ओबैदुर रहमान नदवी

वाहरलाल नेहरू (1889-1964) भारत के पहले प्रधानमंत्री थे. वे भारत की विदेश नीति के निर्माता थे. 1950 में उनके नेतृत्व में भारत की पंचवर्षीय योजना शुरू की गई थी. उनके मार्गदर्शन में देश ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति की है.

उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया. उनका जीवन एक खुली किताब है. वह अमीर पैदा हुए थे, लेकिन एक आम आदमी की तरह रहते थे. वह बच्चों को दिल की गहराइयों से प्यार करते थे. विश्व बाल दिवस पहली बार 1954 में मनाया गया था.

यह विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष 20 नवंबर को मनाया जाता है. भारत ने 1959 में दुनिया के अन्य देशों के साथ बाल दिवस मनाना शुरू किया. 1964में नेहरू की मृत्यु के बाद, सर्वसम्मति से उनके जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया.

तब से हर साल भारत में जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है. वह बच्चों से प्यार करते थे और उन्हें चाचा नेहरू के नाम से याद किया जाता है. बच्चों को उपयोगी नागरिक बनाना उनकी परम इच्छा थी.

उनकी कंपनी उनकी सांत्वना और आराम थी. वह उनके स्वभाव, भावनाओं, मनोविज्ञान, मनोदशा और दृष्टिकोण को अच्छी तरह जानता था. वह जानता था कि देश का भविष्य इन्हीं पर निर्भर है. बच्चों के प्रति उनका लगाव वर्षों के साथ बढ़ता गया. निःसंदेह, उनके जीवन की कहानी नेक वचनों और नेक कार्यों में से एक है.

शंकर वीकली (3.12.1949) के बच्चों के विशेष अंक में, उन्होंने बच्चों के प्रति अपना स्नेह इस प्रकार व्यक्त किया, ‘मुझे बच्चों के साथ रहना, उनसे बात करना और उनके साथ खेलना और भी बहुत कुछ पसंद है. उनके साथ में थोड़ी देर के लिए भूल जाता हूं कि मैं बहुत बूढ़ा हूँ और वह बहुत पहले का बच्चा था.’

‘यदि आप (बच्चे) मेरे साथ होते, तो मैं आपसे हमारी इस खूबसूरत दुनिया के बारे में, फूलों के बारे में, पक्षियों और जानवरों के बारे में, पहाड़ों और ग्लेशियरों के बारे में और अन्य सभी अद्भुत चीजों के बारे में बात करना पसंद करता, जो हमारी दुनिया को दी गई हैं.

आप जानते हैं, हमारे चारों ओर कितनी सुंदरता दिखाई देती है, फिर भी मेरे जैसे बड़े लोग इससे अनजान रहते हैं और कार्यालय की दिनचर्या में तल्लीन होकर सोचते हैं कि वे कोई बहुत ही महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. मुझे आशा है कि आप समझदार होंगे और अपने आस-पास के सुंदर जीवन की ओर अपनी आँखें और कान खुले रखेंगे.’

दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने उद्धृत किया है, ‘यदि आप मेरे साथ होते.’ जवाहरलाल नेहरू भारत के बच्चों को लिखे अपने एक पत्र में लिखते हैं, ‘मैं आपसे हमारी इस खूबसूरत दुनिया के बारे में बात करना पसंद करूंगा, फूलों और पेड़ों और पक्षियों और जानवरों और सितारों और पहाड़ों के बारे में और हिमनद और अन्य सभी अद्भुत चीजें जो हमें घेरती हैं. आपने बहुत पहले की कई परियों की कहानियां पढ़ी होंगी. लेकिन दुनिया ही सबसे बड़ी परी कथा और रोमांच की कहानी है, जो लिखी गई है. केवल हमारे पास देखने के लिए आंखें और सुनने के लिए कान और दुनिया के जीवन और सुंदरता के लिए एक दिमाग होना चाहिए. ”

जवाहरलाल नेहरू अब यहां बच्चों से बात करने के लिए नहीं हैं, उनके संदेश को उन तक पहुंचाना होगा, ताकि वे अपने दिमाग को जीवन और सुंदरता के लिए खोल सकें.

वह आगे कहते हैं, ‘वह बच्चों और फूलों और पक्षियों से प्यार करते थे, लेकिन पुरुषों और राष्ट्रों के बीच दोस्ती और शांति का उसका प्यार और भी गहरा था, क्योंकि वह उसके लिए सबसे सुंदर और सभी चीजों में वांछनीय थे. इसी के लिए उन्होंने अपना सारा विचार और ऊर्जा समर्पित की और उन्होंने इसे एक मुस्कान के साथ किया, जो हमारे इतिहास का एक हिस्सा बन गया है.’

उनके पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद के जाने-माने वकील थे. वह चाहते थे कि जवाहरलाल इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करें. इसलिए उन्होंने हैरो के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में उनका दाखिला करा दिया. फिर उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में सम्मान के साथ डिग्री ली.

बाद में वह लंदन के इनर टेंपल बार में शामिल हो गए और बार की परीक्षा आसानी से पास कर ली. 1912 की शरद ऋतु में वे सात वर्ष इंग्लैंड में रहने के बाद भारत लौट आए.

भारत आने के बाद उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए खुद को समर्पित कर दिया. उन्होंने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्होंने अपने जीवन के कई साल जेल में बिताए. वह विभिन्न जेलों में नैनी, बरेली, देहरादून, अल्मोड़ा, कलकत्ता में अलीपुर और अहमदनगर में रहे. 15अगस्त 1947को भारत को आजादी मिली और वह आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. वह 1947 से 1964 तक पीएएमओ कार्यालय में थे.

महात्मा गांधी से उनकी पहली मुलाकात 1916में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान हुई थी. तब से दोनों ने देश की खातिर साथ काम किया.

जवाहरलाल नेहरू एक महान लेखक थे. उन्हें अंग्रेजी के बेहतरीन लेखकों में से एक माना जाता था. उन्होंने जेल में अपना सर्वश्रेष्ठ लेखन किया. उनके पास समय था और उनके दिमाग में कुछ आराम था. 1931 से 1933 तक, उन्होंने समय-समय पर पत्र लिखे.

जवाहरलाल ने मुख्य रूप से स्मृति से लिखा था, उन्हें सब कुछ याद था. उन्होंने सभ्यताओं के बारे में लिखा, क्रांतियों ने इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल दिया और सामाजिक और विश्व की आर्थिक समस्याओं के बारे में भी. पत्रों को बाद में ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था. यह एक पुस्तक में दुनिया के इतिहास में से एक है.

जवाहरलाल ने जेल में एक आत्मकथा भी लिखी थी. यह जून 1934 और फरवरी 1935 के बीच लिखी गई थी और 1936 में इंग्लैंड में प्रकाशित हुई थी. यह तुरंत प्रसिद्ध हो गई. इसे व्यापक रूप से बेचा और पढ़ा गया.

इसकी स्पष्टता और आकर्षण ने दुनिया को प्रभावित किया. बिल्कुल कविता की तरह. जवाहरलाल ने अपने जीवन के कठिन दौर में पुस्तक लिखी, जब उनका मन परेशान था और उन्हें कई संदेह थे. उन्होंने गांधी और दूसरों की खुलकर आलोचना की. लेकिन उन्होंने ईमानदारी और विनम्रता के साथ लिखा और उन्होंने खुद से कई सवाल किए. यह दोनों एक था, खुद का लेखा और समय का इतिहास. यह सर्वश्रेष्ठ आत्मकथाओं में से एक है.

जवाहरलाल 1942 में अहमदनगर किले में कैद थे और उन्हें लगभग तीन साल वहां  रहना पड़ा. वहां उन्होंने द डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखी. यह भी एक प्रसिद्ध पुस्तक बन गई. भारत के लंबे अतीत से संबंधित है, फिर वर्तमान की समस्याओं के साथ और भविष्य की एक झलक देती है. यह एक जीवित इतिहास है. जवाहरलाल के पन्नों में अतीत वापस जीवन में आता है. उन्होंने देश में व्यापक रूप से यात्रा की थी और वे विभिन्न हिस्सों के विभिन्न लोगों को अच्छी तरह से जानते थे.

उन्होंने महसूस किया कि वे कितने विविध थे, फिर भी उनके लोग, और पुस्तक उनके लिए उनके महान प्रेम को दर्शाती है. जेल में जवाहरलाल का जीवन व्यर्थ नहीं गया. उन्होंने समय का सबसे अच्छा उपयोग किया. उन्होंने जेल में रहते हुए तीन महान पुस्तकें लिखीं. (एम. चलपति राव, पृष्ठ, 48-49). इंदिरा गांधी कहती हैं, ‘मेरे पिता की तीन पुस्तकें, विश्व इतिहास की झलकियां, एक आत्मकथा और भारत की खोज, जीवन भर मेरी साथी रही हैं. उनके बारे में अलग होना मुश्किल है.’

उनके जीवन की सबसे खास बात यह है कि वे बहुत मेहनती थे. उन्होंने लंबे समय तक काम किया. उसने लोगों से बार-बार कहा कि उन्हें कड़ी मेहनत की सजा दी गई है. उन्हें देश के निर्माण के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी. ‘आराम हराम है’, वह अक्सर ऐसा कहा करते थे. बीमार होने पर भी उन्होंने अपने देश के लिए काम करने के अलावा कुछ नहीं सोचा.

उन्होंने एक बार कहा था, ‘मेरे अंदर एक महत्वाकांक्षा बाकी है, मेरे पास बचे कुछ वर्षों में, मैं अपने आप को भारत के निर्माण के काम में पूरी ताकत और ऊर्जा के साथ छोड़ दूं. मैं इसे पूरी तरह से करना चाहता हूं, जब तक कि मैं थक नहीं जाता और स्क्रैप-ढेर की तरह फेंक नहीं दिया जाता है. आप या कोई मेरे बारे में बाद में क्या सोचता है, इसमें मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. मेरे लिए इतना ही काफी है कि मैं भारत के काम में खुद को, अपनी ताकत और ऊर्जा को खत्म कर चुका हूं.’

उन्होंने अपने लेखन पैड पर अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की एक कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखीं,

जंगल प्यारे, काले और गहरे हैं, लेकिन मैंने वादे पूरे किए हैं.

और सोने से पहले मीलों चलना है, और सोने से पहले मीलों चलना है.

(द वुड्स आर लवली, डार्क एंड डीप,

बट आई हैव प्रामिसेस टू कीप,

एंड माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप,

एंड माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप)

इन पंक्तियों को उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय तक याद रखा.

नेहरू ने कभी अपना समय बर्बाद नहीं किया, यहां तक कि जेल में उनका जीवन भी बर्बाद नहीं हुआ. जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी तीन प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं. इसके अलावा वह जहां भी थे, खुद को अच्छे स्वास्थ्य में रखने के लिए रहते थे. वह रोजाना शारीरिक व्यायाम करते थे. यह आदत जीवन भर उनके साथ रही.

संक्षेप में, बच्चे नेहरू के जीवन से बहुत कुछ ग्रहण कर सकते हैं. उनका जीवन उनके लिए एक आदर्श है. उन्हें अक्षर और आत्मा में उसका अनुसरण करना चाहिए.

प्रख्यात पत्रकार एम. चेलापति राव ने ठीक ही कहा है, ‘जवाहरलाल को किसी स्मारक की आवश्यकता नहीं है. पूरा आधुनिक भारत उनके लिए एक स्मारक है. उनके जीवन की कहानी बताई जाएगी और फिर बताई जाएगी. यह एक बहादुर, मेहनती और शिष्ट व्यक्ति की कहानी है, जिसने अपने लोगों से पूरे मन और दिल से प्यार किया, जिन्होंने अपने जीवन के अंत तक उनके लिए काम किया और जिन्होंने उनके लिए एक आशावादी भविष्य का निर्माण किया. वे उसे भूल नहीं सकते. और वे जानते हैं कि उन्हें उसका काम जारी रखना चाहिए.”

(लेखक दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ में फेकल्टी मेंबर हैं.)