उर्दू साहित्य में दीवाली की रंग-ओ-रौशनी

Story by  सलमान अब्दुल समद | Published by  [email protected] | Date 03-11-2021
उर्दू साहित्य में दीवाली की रंग-ओ-रौशनी
उर्दू साहित्य में दीवाली की रंग-ओ-रौशनी

 

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सलमान अब्दुस समद

भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है. इस देश की खास बात यह है कि यहां कई धार्मिक त्योहार भी सांस्कृतिक रंग अपना लेते हैं. मानो, यहां जैसे संस्कृति का रिश्ता, धर्मों से जुड़ा हुआ है. जाहिर है, जो बिंदु संस्कृति मामले से जुड़ जाए, वह खुद ही साहित्य से जुड़ जाता है.

इसलिए धार्मिक त्योहारों का उर्दू में विशेष उल्लेख मिलता है. उर्दू शायरों ने जहां दूसरे त्योहारों का जिक्र किया है, वहीं उन्होंने दिवाली के रंग-ओ-रौशनी भी बिखेरने की कोशिश की है, जिसमें उन्हें बड़ी कामयाबी मिली. प्राचीन और आधुनिक उर्दू कवियों ने दीवाली और त्योहारों की प्रस्तुति में महत्पूर्ण भूमिका अदा की है.

उर्दू के जाने-माने आलोचक प्रोफेसर गोपीचंद नारंग ने अपनी किताबों और लेखों में भारतीय संस्कृति और त्योहारों का जिक्र किया है. उन्होंने एक लेख में लिखा कि मुस्लिम राजा भी दिवाली समारोह में शामिल होते थे. शाह आलम आफताब के हिन्दी-उर्दू कलाम से सिद्ध होता है कि किला-ए-मुअल्ला में भी ईद, बकरईद, उर्स की तरह दीवाली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती थी.

दिवाली और शबे-बारात में एकरंगी पैदा हो गई थी. दिवाली की तरह, शबे-बारात में आतिशबाजी इसी परंपरा का हिस्सा है. सैयद अहमद देहलवी ने ‘रसुम दिल्ली’ में लिखा है कि दिल्ली के मुसलमान दिवाली को रमजान और ईद जैसा त्योहार मानते थे और इन दिनों में मुस्लिम ससुराल वाले हिंदुओं की तरह ही लेन-देन करते थे. एक दूसरे को उपहार देते थे. 

प्रसिद्ध उर्दू कहानीकार सआदत हसन मंटो ने भी ‘दिवाली के दीय’श् और काजी अब्दुस सत्तार ने ‘दीवाली’ शीर्षक से दो बेहतरीन कहानियां लिखी हैं. जाहिर है यहां कहानियों का विश्लेषण करने का अवसर नहीं है, इसलिए हम यहां उन दो-चार कवियों / शायरों का उदाहरण दे रहे हैं, जिन्होंने अपनी कविता में दिवाली को शामिल किया है. नजीर अकबराबादी का उदाहरण यहां बहुत खूब होगा. क्योंकि नजीर अकबर आबादी अठारहवीं शताब्दी के ऐसे कवि हैं, जिनकी शायरी भारतीय सभ्यता और बाजार-समाज से तैयार हुई थी. उन्होंने दिवाली की सामाजिक पृष्ठभूमि को भी बेहद खूबसूरत तरीके से पेश किया है. आइए देखते हैं एक दृश्यः

हर एक मकां में जला फिर दिया दिवाली का

हर एक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का

सभी के जी को समां भा गया दिवाली का

अजब बहार का है दिन बना दिवाली का

 

इसी तरह हफीज बनारसी का एक शेरः

सभी के दीप सुन्दर हैं, हमारे क्या तुम्हारे क्या

उजाला हर तरफ है, इस किनारे उस किनारे क्या

हफीज बनारसी ने मूल रूप से इस शेर में एकता का संदेश दिया है और हिंदू-मुस्लिम समाज को करीब लाया है.

एक और शायर जमील मजहरी ने दिवाली की खूबसूरती में मजदूरों के दर्द को शामिल कर दिया हैं. इसलिए उनकी कविता / शायरी का आनंद अलग अंदाज से लिया जा सकता है. क्योंकि हमारी खुशी तभी खूबसूरत हो सकती है जब हमारे मजदूर भी हमारी खुशी का हिस्सा होंः

होने दो चिरागां महलों में क्या हमको अगर दिवाली है

मजदूर हैं हम, हम मजदूर की दुनिया काली है

इनके बाद शकेब जलाली को महसूस करते हैंः

प्यार की जोत से घर-घर है चिरागां वरना

एक भी शमा न रौशन हो हवा के डर से

कवि कह रहा है कि हर तरफ नफरत की हवा बह रही है, तो दिया कहां जलेगा. हवा में तो दिया जलाना नामुमकिन है. नफरत की हवा का मुकाबला आप सिर्फ प्यार की मदद से कर सकते हैं.

मुमताज गोरमानी की कविता में प्रेम और रोमांस का दृश्य है. मानो दीपावली की खुशियों को उन्होंने इश्क व मुहब्बत से जोड़ दिया हैः

मेले में गर नजर न आता रूपकसी मतवाली का

फीका-फीका रह जाता त्योहार भी इस दिवाली का

इन कुछ शायरों के बाद उर्दू के तीन बुद्धिजियों से जो बातें की गईं, उन्हें यहां प्रस्तुत करना मुनासिब होगाः

प्रतिष्ठित आलोचक और साहित्यकार, जेएनयू के प्रोफेसर अनवर पाशा कहते हैं,  ‘उर्दू भाषा और साहित्य का संबंध लोक जीवन से बड़ा गहरा रहा है. उर्दू की उत्पत्ति और विकास का इतिहास भारतीय संस्कृति और विशेषकर सांझी संस्कृति के इतिहास का अटूट अंग रहा है.’

उन्होंने कहा कि अमीरे खुसरो और नजीर अकबर आबादी से लेकर आज के साहित्यकारों और कवियों ने होली-दिवाली को ईद और शबे-बारात की तरह ही महत्व के साथ अपनी कृतियों में प्रस्तुत किया है, जिसके कारण उर्दू के साहित्य एक रंग-बिरंगे गुलदस्ते की मानिंद खुशनुमा दिखाई देता है. इतना ही नहीं रामायण और महाभारत के न केवल दर्जनों अनुवाद उर्दू भाषा में हुए है, बल्कि महाभारत और रामायण से प्रसंग, मुहावरा, कहावतों और प्रतिबिंबों के रूप में उर्दू के गद्य-पद दोनों में प्रचुर मात्रा में मिलते है. यही उर्दू भाषा एवं साहित्य की पहचान है और खासियत है.

साहित्यकार और पत्रकार डॉ. सय्यद अहमद कादरी कहते हैं, ‘साहित्य का खमीर सभ्यता और समाज से तैयार होता है. उर्दू कवियों / शायरों ने सांस्कृतिक दृष्टि से किसी विशेष धर्म को सामने नहीं रखा है. उन्होंने साहित्य में त्योहारों का उल्लेख भी केवल त्योहारों के रूप में नहीं किया, त्योहारों के उल्लेख का उद्देश्य  सांस्कृतिक बिंदुओं को सामने लाना है. मसलन उर्दू शायरी में दीवाली का जो जिक्र हुआ है, वह सिर्फ दीपावली का जिक्र नहीं है, बल्कि असल में यह देश की सांस्कृतिक विविधता का बयान है. साहित्य की यही सच्चाई उसे भाषा और धर्म से अलग करती है.’

सेठ केसरीमल पोरवाल कालेज, नागपुर के सहायक प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद असरार कहते हैं, ‘उर्दू साहित्य के खिलाफ यह आपत्ति  बेबुनियाद है कि इसमें केवल प्रेम अर्थात इश्क-ओ-आशिकी की बात की गई है. रोमांस के मामले को ही पेश किया गया हैं. तथ्य यह है कि उर्दू साहित्य ने राष्ट्रीय एकता, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और त्योहारों के सांस्कृतिक पहलू को दृढ़ता से चित्रित किया है. उर्दू साहित्य में राष्ट्रीय एकता का तराना आज से ही नहीं, बल्कि बरसों पहले से गाया जाता रहा है. एक ओर गैर-मुस्लिम कवियों ने मुहम्मद रसूल की जिन्दगी को कविताओं में प्रस्तुत किया है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय संस्कृति को जेहन में रखते हुए मुस्लिम कवियों ने होली, दिवाली और राम के विषयों पर बहुत कुछ लिखा है, यही उर्दू साहित्य की खूबसूरती है. इसलिए उर्दू साहित्य के इस पहलू को अनदेखा नहीं किया जा सकता. मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों कवियों ने उर्दू साहित्य में उत्कृष्ट कविताएं लिखी हैं.

उर्दू साहित्य के ऐतिहासिक संदर्भ, शायरी के नमूने और वर्तमान युग में उर्दू बुद्धिजीवियों की बातचीत से पता चलता है कि उर्दू कवियों ने दीवाली की रोशनी से अमन और शांति का सबक देने की कोशिश की है. जितनी शायरी उतने ही दीपावली के रंग, किसी ने दीवाली को इश्क-ओ-मुहब्बत से जोड़ा है, तो किसी ने उससे से भूख और मेहनत को जोड़ कर पेश किया है. किसी ने नफरत की हवा के खिलाफ आवाज उठाई. साथ ही उन्होंने सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से दिवाली को जोड़ कर अपने देश की महानता को स्पष्ट किया है. कुछ कवियों ने केवल दीवाली की सुंदरता को ही चित्रित किया है. गोया हर कलाकार की विचारधारा अपने आप में महत्वपूर्ण है और उनकी विचारधारा उर्दू शायरी को सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध भी बनाती है. इन कवियों की दृष्टि से इस दीपावली को भी देखें, तो न केवल यह दीपावली सुन्दर दिखाई देगी, बल्कि सभ्यता और संस्कृतिक  बयान की वजह से उर्दू का सफर अत्यंत रुचक नजर आएग. हैप्पी दिवाली.

(लेखक साहित्यकार और उपन्यासकार हैं.)